आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय | Acharya Ramchandra Shukla Ka Jivan Parichay
इस आर्टिकल में हम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय बिल्कुल विस्तार से देखेंगे। यह जीवन परिचय उन विद्यार्थियों के लिये काफी उपयोगी है जो, इस समय कक्षा 10 या 12 में पढ़ रहे है। क्योकी बोर्ड के परीक्षा में हिन्दी के प्रश्न पत्र में जीवन परिचय लिखने का प्रश्न भी सामिल रहता है, जिसमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का भी जीवन परिचय पुछा जा सकता है। ऐसे में यदि आप इनके जीवन परिचय को अच्छे से पढ़ें रहेंगे तो, आपको इससे परिक्षा में काफी मदद मिलेगी और आप हिन्दी के विषय में अच्छे अंक भी प्राप्त कर पायेंगे।
इस जीवनी के हम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के जीवन से जुड़े उन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को समझेंगे जो आपके बोर्ड के परीक्षा में पुछे जा सकते है जैसे की, रामचन्द्र शुक्ल का जन्म कब और कहां हुआ था, आचार्य रामचंद्र शुक्ल की माता-पिता का नाम क्या था, आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली, आचार्य रामचंद्र शुक्ल किस युग के लेखक थे, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कृतियाँ, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का साहित्य में स्थान और आचार्य रामचंद्र शुक्ल की मृत्यु कब और कहां हुई आदि। इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यहा पर बिल्कुल विस्तार से देखने को मिल जायेंगे। इसलिए आप इस लेख को ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े।
आपको बता दे की रामचंद्र शुक्ल की यह जीवनी न केवल बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिये ही सहायक है, बल्कि प्रतियोगी परीक्षा एवं सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिये भी यह जीवनी काफी उपयोगी है क्योकी बहुत से प्रतियोगी परीक्षाओं में रामचंद्र शुक्ल के जीवन से जुड़े प्रश्न पुछे जाते है, तो अगर आप भी उन छात्रों में से है, जो इस समय किसी कंपीटीटिव एग्जाम की तैयारी कर रहा है। तो इस जीवनी को आप पुरा जरुर पढ़े ताकी आपको इससे परीक्षा में मदद मिल सके।
तो अगर आप वास्तव में acharya ramchandra shukla ka jeevan parichay एकदम अच्छी तरह से समझना चाहते है तो, इस लेख को पुरा अन्त तक जरुर पढ़े। आइये अब हम रामचन्द्र शुक्ल की सम्पुर्ण जीवनी को बिल्कुल विस्तारपूर्वक से देखें।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जीवनी (Acharya Ramchandra Shukla Biography)
पूरा नाम | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल |
अन्य नाम | आचार्य शुक्ल |
जन्म तिथि | 4 अक्टूबर 1884 |
जन्म स्थान | आगोना नामक ग्राम, बस्ती जिला |
मृत्यु तिथि | वाराणसी |
मृत्यु स्थान | वाराणसी |
आयु (मृत्यु के समय) | 56 वर्ष |
मृत्यु का कारण | हृदय गति रुक जाने से |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय |
व्यवसाय | लेखक, निबंधकार, उपन्यासकार, विद्वान, इतिहासकार, आलोचक |
भाषा | संस्कृत मिश्रित शुद्ध परिमार्जित खड़ी बोली |
शैली | सामासिक शैली है |
निबन्ध | चिन्तामणि भाग 1 और 2, विचार वीथी |
आलोचना | सूरदास, रस मीमांसा काव्य में रहस्यवाद |
पिता का नाम | चंद्रबली शुक्ला |
माता का नाम | विभाषी |
पत्नी का नाम | सावित्री देवी |
बच्चों के नाम | दुर्गावती शुक्ला, गोकुल चंद्र शुक्ला, केशव चंद्र शुक्ला, विद्या शुक्ला, कमला शुक्ला |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय (Acharya Ramchandra Shukla Ka Jivan Parichay)
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म बस्ती जिले के आगोना नामक ग्राम में सन् 1884 में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रबलि शुक्ल था। जो अरबी, फारसी भाषा के प्रेमी थे। इसलिए उनकी आठवीं कक्षा तक शिक्षा उर्दू , फारसी में हुई परन्तु हिन्दी के प्रति इनका बड़ा अनुराग था। इण्टर परीक्षा पास करने के बाद मिर्जापुर के मिशन स्कूल में कला के अध्यापक हो गये। अध्यापन कार्य करते हुए हिन्दी, उर्दू, संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य का गहन अध्ययन किया जो आगे चलकर उनके लिए बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ।
इनकी कुशाग्र बुद्धि और साहित्य सेवा से प्रभावित होकर सन् 1908 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इनको 'हिन्दी शब्द सागर' के सह-सम्पादक का कार्य भार सौंप दिया जिसे इन्होनें बड़ी कुशलता से निभाया। इन्होनें काफी समय तक 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' का सम्पादन किया। कुछ समय तक यह काशी विश्वविद्यालय में भी हिन्दी के अध्यापक रहे और सन् 1936 में बाबू श्यामसुन्दर दास के अवकाश ग्रहण करने पर हिन्दी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। इन्होंने सम्पूर्ण जीवन काल में बड़ी तत्परता तथा तल्लीनता के साथ हिन्दी-साहित्य की सेवा की। साँस रोग से पीड़ित होने के कारण हृदय गति रुक जाने से सन् 1941 में इनका देहावसान हो गया।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय
हिन्दी साहित्य में आचार्य शुक्ल जी का प्रवेश कवि और निबन्धकार के रूप में हुआ। इन्होंने अंग्रेजी और बंगला भाषा के कुछ सफल अनुवाद किये। बाद में आलोचना के क्षेत्र में पदार्पण किया और हिन्दी के युगप्रवर्तक आलोचक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। इन्होंने सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार की आलोचनाएँ लिखीं। यह मनोवैज्ञानिक निबन्धों के भी प्रणेता हैं। चिन्तामणि के निबन्ध इसी कोटि के हैं।
तुलसी, जायसी और सूर पर इन्होंने लम्बी व्यावहारिक आलोचनाएँ लिखी हैं। इन्होंने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखकर लेखन की परम्परा का सूत्रपात किया। इस प्रकार शुक्ल जी उच्चकोटि के निबन्धकार श्रेष्ठ आलोचक गम्भीर विचारक और कुशल साहित्य-इतिहास के लेखक थे। निबन्ध के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं। अत: इनको निबन्ध सम्राट कहा जाये तो कोई अत्युक्ति न होगी। इसलिए इनका नाम हिन्दी साहित्याकाश में सितारे की भाँति दैदीप्यमान है और रहेगा।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कृतियाँ
हिन्दी साहित्य में शुक्ल जी का आगमन कवि और निबन्धकार के रूप में हुआ किन्तु बाद में आप समालोचक हो गये। इसीलिए आपकी रचनाओं में विविधता है। आपकी प्रमुख रचनाएँ निम्नांकित हैं
निबन्ध -- चिन्तामणि भाग 1 और 2, विचार वीथी।
इतिहास -- हिन्दी साहित्य का इतिहास -- यह हिन्दी साहित्य का प्रथम वैज्ञानिक प्रमाणिक इतिहास है।
आलोचना -- सूरदास, रस मीमांसा काव्य में रहस्यवाद।
सम्पादित -- जायसी ग्रन्थावली, भ्रमर गीतसार, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दी शब्द सागर, तुलसी ग्रन्थावली।
काव्य -- बुद्ध चरित्र, अभिमन्यु वध।
अनुदित -- आदर्श जीवन, कल्पना का आनन्द, विश्व प्रपंच, मेगस्थनीज का भारतवर्षीय विवरण।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने साहित्य में सर्वत्र संस्कृत मिश्रित शुद्ध परिमार्जित खड़ी बोलो को अपनाया है। आपकी रचनाओं में एक भी व्यर्थ का शब्द मिलना कठिन है। वाक्य के गठन में एक भी शब्द निकाला, बढ़ाया या इधर-उधर नहीं किया जा सकता है। यद्यपि शुक्ल जी की भाषा प्रौढ़, तत्सम शब्द प्रधान परिष्कृत तथा पूर्ण साहित्यिक है फिर भी उसे दुरूह नहीं कहा जा सकता। उसमें भावानुकूलता, सरलता तथा सुन्दर प्रवाह सर्वत्र विद्यमान है। उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग आपने न के बराबर ही किया है। जहाँ कहीं ऐसे शब्द आये हैं वहाँ उनका कोई विशेष प्रयोजन ही है। आपकी भाषा में व्याकरण चिन्हों की सतर्कता सर्वत्र विद्यमान है। कथन में ओज लाने हेतु आलंकारिक भाषा का प्रयोग आपने किया है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की शैली
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की शैली सामासिक है। कम-से-कम शब्दों में बड़ी-से-बड़ी बात कहना शुक्ल जी की शैली की विशेषता है। आपकी शैली के विविध रूप निम्नलिखित हैं।
(1) आलोचनात्मक शैली --- गम्भीर तथा आलेचनात्मक निबन्धों में शुक्ल जी ने इस शैली को अपनाया है।
(2) वर्णनात्मक शैली --- इस शैली में भाषा सुबोध तथा व्यावहारिक है।
(3) व्यंग्यात्मक शैली --- गम्भीर निबन्धों में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग कर उसमें हास्य-व्यग्य की झलक प्रदान की है।
(4) विचारात्मक शैली --- विचार प्रधान निबन्धों में इस शैली का प्रयोग है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का हिन्दी साहित्य में स्थान
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के युग प्रणेता साहित्यकारों की कोटि में आते हैं। ये श्रेष्ठ आलोचक, गम्भीर विचारक और उच्च कोटि के निबन्धकार थे। निबन्ध के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं। अत : इन्हें निबन्ध सम्राट कहा जाये तो कोई अत्युक्ति न होगी। इन्होंने अपनी अलौकिक प्रतिभा से हिन्दी साहित्य जगत को आलोकित कर नवीन मार्ग पर अग्रसरित किया और उसे उच्च शिखर पर लाकर खड़ा कर दिया। इसलिए इनका नाम हिन्दी साहित्याकाश में सितारे की भाँति दैदीप्यमान है और रहेगा।
FAQ: आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रश्न उत्तर
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल कौन थे?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हिन्दी साहित्य के एक भारतीय इतिहासकार थे। इन्हें आचार्य शुक्ल के नाम से जाना भी जाता है।
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म कब हुआ?
उत्तर -- 4 अक्टूबर 1884 में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म हुआ था।
प्रश्न -- आचार्य रामचन्द्र का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर -- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म उत्तर प्रदेश के, बस्ती जिला के आगोना नामक ग्राम में हुआ।
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की माता का नाम?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की माता जी का नाम विभाषी था।
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता का नाम?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता जी का नाम चंद्रबली शुक्ला था।
प्रश्न -- रामचंद्र शुक्ल किस युग के लेखक हैं?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल शुक्ल युग के लेखक थे।
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचना कौन सी है?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचना निम्न है - चिंतामणि, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिन्दी शब्द सागर, हिन्दी साहित्य का इतिहास आदि।
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की मृत्यु वाराणसी में 2 फ़रवरी 1941 में हुई थी।
प्रश्न -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की मृत्यु कैसे हुई थी?
उत्तर -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल की मृत्यु दिल की धड़कन रुकने के कारण हुई थी।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय pdf
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निष्कर्ष
यहा पर इस लेख में हमने आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जीवनी को एकदम अच्छे से समझा। यह जीवन परिचय बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिये काफी महत्वपुर्ण है। इसलिए जो छात्र इस समय बोर्ड के परीक्षा की तैयारी कर रहा है उनके लिये बेहतर यही है की, इस जीवनी को अच्छे से पढ़े और समझे। ताकी अगर इनका जीवन परिचय परीक्षा में पुछे तो, आप इसे लिखने में असमर्थ न हो।
इसी के साथ हम आशा करते है की आपको यह जीवनी जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की, इस लेख की सहायता से आपको, आचार्य रामचंद्र का जीवन परिचय कैसे लिखें बिल्कुल अच्छे से समझ में आ गया होगा। अगर आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल है तो, आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। और साथ ही इस acharya ramchandra shukla ki jivani को आप अपने सहपाठी एवं मित्र के साथ शेयर जरुर करे।
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