व्यंजन सन्धि, परिभाषा, नियम एवं उदाहरण | Vyanjan Sandhi Kise Kahate Hain
इस आर्टिकल में हम व्यंजन संधि किसे कहते हैं बिल्कुल विस्तारपूर्वक से समझेंगे। जैसा की आप सभी जानते है सन्धि के प्रमुख तीन भाग होते है, जिससे से पहला भाग है स्वर सन्धि और हमने स्वर सन्धि पर एक बेहतरीन लेख लिखा है जहा पर स्वर सन्धि से सम्बंधित सभी प्रश्नों को हमने एकदम विस्तार से समझा है, यदि आपने उस लेख को नही पढ़ा तो आप उसे भी अवश्य पढ़े।
और इस लेख में हम सन्धि के दुसरे भाग यानी की व्यंजन संधि को बिल्कुल अच्छे से समझने वाले है। यह लेख उन विद्यार्थियों के लिये काफी उपयोगी है, जो इस समय किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है। क्योकी विभिन्न प्रतियोगीता परीक्षाओं में व्यंजन संधि से सम्बंधित बहुत से प्रश्न पुछे जाते है। इसलिए यदि आप भी उन्हीं छात्रों में से है जो, कॉम्पिटिटिव एग्जाम एवं सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है तो, इस लेख को आप गम्भीरतापुर्वक से जरुर पढ़े।
इस लेख में हम व्यंजन सन्धि से जुड़े उन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर को समझने का प्रयास करेंगे। जो किसी भी कॉम्पिटिटिव एग्जाम में पुछे जा सकते है जैसे की- व्यंजन संधि की परिभाषा, व्यंजन संधि का उदाहरण कौन सा है, व्यंजन संधि के कितने नियम होते हैं आदि। इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यहा पर एकदम विस्तार से मिल जायेंगे। यदि आप वास्तव में vyanjan sandhi kise kahate hain अच्छे से समझना चाहते है तो, इस लेख को पुरा अन्त तक अवश्य पढ़े।
व्यंजन सन्धि किसे कहते हैं (Vyanjan Sandhi Kise Kahate Hain)
परिभाषा -- व्यंजन के साथ व्यंजन या स्वर का मेल होने से जो विकार होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं। दुसरे शब्दो में, व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन आने से जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते है।
व्यंजन सन्धि के नियम
अभी हमने व्यंजन सन्धि की परिभाषा के माध्यम से यह, समझ लिया की व्यंजन सन्धि किसे कहा जाता है। अब हम बात करते है व्यंजन सन्धि के सभी नियमों के बारे में क्योकी बिना नियम को जाने आप व्यंजन सन्धि के शब्दों को नही बना पायेंगे, इसलिए इसके नियम को समझना आपके लिये बेहद महत्वपूर्ण है। यहा पर सभी नियम के साथ उनके कुछ उदाहरण भी दिये गए है, जिससे की आपको नियम को समझने में असानी हो। व्यंजन सन्धि के प्रमुख नियम कुछ इस प्रकार हैं -
नियम (1) यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क् , च् , ट् , त् , प् के आगे कोई स्वर अथवा किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण अथवा य , र , ल , व आए तो क् , च् , ट् , त् , प् के स्थान पर उसी वर्ग का तीसरा अक्षर अर्थात् क के स्थान पर ग , च के स्थान पर ज , ट के स्थान पर ड , त के स्थान पर द और प के स्थान पर 'ब' हो जाता है; जैसे --
दिक् + अम्बर | दिगम्बर |
वाक् + ईश | वागीश |
अच् + अन्त | अजन्त |
षट् + आनन | षडानन |
सत् + आचार | सदाचार |
सुप् + सन्त | सुबन्त |
उत् + घाटन | उद्घाटन |
तत् + रूप | तद्रूप |
नियम (2) यदि स्पर्श व्यंजनों के प्रथम अक्षर अर्थात् क् , च् , ट् , त् , प् के आगे कोई अनुनासिक व्यंजन आए तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है; जैसे --
वाक् + मय | वाङ्मय |
षट् + मास | षण्मास |
उत् + मत्त | उन्मत्त |
अप् + मय | अम्मय |
नियम (3) जब किसी ह्रस्व या दीर्घ स्वर के आगे छ् आता है तो छ् के पहले च् बढ़ जाता है। जैसे --
परि + छेद | परिच्छेद |
आ + छादन | आच्छादन |
लक्ष्मी + छाया | लक्ष्मीच्छाया |
पद + छेद | पदच्छेद |
गृह + छिद्र | गृहच्छिद्र |
नियम (4) यदि म् के आगे कोई स्पर्श व्यंजन आए तो म् के स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे --
शम् + कर | शंकर |
सम् + चय | संचय |
घम् + टा | घण्टा |
सम् + तोष | सन्तोष |
स्वयम् + भू | स्वयंभू |
नियम (5) यदि म के आगे कोई अन्तस्थ या ऊष्म व्यंजन आए अर्थात् य् , र् , ल् . व् , श , ष , स , ह् आए तो म अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे --
सम् + सार | संसार |
सम् + योग | संयोग |
स्वयम् + वर | स्वयंवर |
सम् + रक्षा | संरक्षा |
नियम (6) यदि त् और द् के आगे ज् या झू आए तो 'ज्' , 'झ' , 'ज' में बदल जाते हैं। जैसे --
उत् + ज्वल | उज्ज्वल |
विपद् + जाल | विपज्जाल |
सत् + जन | सज्जन |
सत् + जाति | सज्जाति |
नियम (7) यदि तू , द् के आगे श् आए तो त् द् का च् और श् का छ् हो जाता है। यदि त् , द् के आगे ह आए तो त् का द् और ह का ध हो जाता है। जैसे --
सत् + चित | सच्चित |
तत् + शरीर | तच्छरीर |
उत् + हार | उद्धार |
तत् + हित | तद्धित |
नियम (8) यदि च् या ज् के बाद न आए तो नू के स्थान पर या याज्जा हो जाता है। जैसे --
यज् + न | यज्ञ |
याच् + न | याञ्जा |
नियम (9) यदि अ, आ को छोड़कर किसी भी स्वर के आगे स् आता है तो बहुधा स् के स्थान पर घ् हो जाता है। जैसे --
अभि + सेक | अभिषेक |
वि + सम | विषम |
नि + सेध | निषेध |
सु + सुप्त | सुषुप्त |
नियम (10) ष् के पश्चात् त या थ आने पर उसके स्थान पर क्रमश: ट और उ हो जाता है। जैसे --
अभि + सेक | आकृष्ट |
तुष् + त | तुष्ट |
पृष् + थ | पृष्ठ |
षष् + थ | षष्ठ |
नियम (11) ऋ , र , ष के बाद 'न' आए और इनके मध्य में कोई स्वर क वर्ग, प वर्ग, अनुस्वार य , व , ह में से कोई वर्ण आए तो 'न' = 'ण' हो जाता है। जैसे --
भर + अन | भरण |
भूष + अन | भूषण |
राम + अयन | रामायण |
परि + मान | परिमाण |
ॠ + न | ॠण |
व्यंजन संधि किसे कहते हैं वीडियो के माध्यम से समझे
FAQ: व्यंजन संधि के प्रश्न उत्तर
प्रश्न -- व्यंजन संधि की परिभाषा क्या है?
उत्तर -- व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन संधि कहा जाता है।
प्रश्न -- व्यंजन संधि के कितने नियम होते हैं?
उत्तर -- व्यंजन संधि के प्रमुख ग्यारह नियम होते है, सभी नियम को इस लेख में विस्तार से समझाया गया है।
प्रश्न -- व्यंजन संधि के 10 उदाहरण
उत्तर -- व्यंजन संधि के 10 उदाहरण निम्न है-
1). सत् + आचार = सदाचार
2). षट् + मास = षण्मास
3). पद + छेद = पदच्छेद
4). घम् + टा = घण्टा
5). सम् + सार = संसार
6). उत् + ज्वल = उज्ज्वल
7). उत् + हार = उद्धार
8). अभि + सेक = अभिषेक
9). पृष् + थ = पृष्ठ
10). परि + मान = परिमाण
निष्कर्ष
यहा पर हमने हिन्दी व्याकरण के सन्धि के दुसरे भाग के बारे में सम्पुर्ण जानकारी प्राप्त करी जोकि है (व्यंजन संधि), इस लेख के माध्यम से व्यंजन संधि किसे कहते हैं हमने बिल्कुल अच्छे से समझा। बहुत से ऐसे प्रतियोगी परीक्षाएं होते है, जिनमें व्यंजन संधि के प्रश्न भी सामिल रहते है, ऐसे में यदि आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो व्यंजन संधि को समझना आपके लिये काफी लाभदायक साबित हो सकता हैं। क्योकी अगर आपको, व्यंजन संधि क्या होता है और इसे कैसे पहचानते है पता होगा। तो, व्यंजन संधि से सम्बंधित परिक्षा में पुछे गये प्रश्न को हल करने में आपको काफी असानी होगी।
हम आशा करते है की आपको यह लेख जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की, इस आर्टिकल की सहायता से vyanjan sandhi kise kahate hain आपको अच्छे से समझ में आ गया होगा। यदि आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई प्रश्न है तो, आप नीचे कमेंट करके पुछ सकते हैं। साथ ही इस Vyanjan Sandhi को आप अपने सभी सहपाठी एवं मित्रों के साथ शेयर जरुर करे।
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