संधि किसे कहते हैं [ परिभाषा, भेद एवं उदारहण ]
इस लेख में हम संधि किसे कहते हैं एकदम विस्तार से समझेंगे। संधि से जुड़े प्रश्न कक्षा 9 से 12 तक के हिन्दी व्याकरण की परीक्षा में पुछे जाते है, इसलिए कक्षा 9वीं से 12वीं तक के सभी छात्रों के लिये यह लेख काफी महत्वपुर्ण एवं उपयोगी है, क्योकी इस लेख में हम संधि से जुड़े सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर को समझेंगे।
और साथ ही यहा पर इस लेख में शेयर किये गए (संधि) की सम्पूर्ण जानकारी उन सभी विद्यार्थियों के लिये भी बहुत ही महत्वपूर्ण है जो- प्रतियोगी परीक्षा, प्रवेश परीक्षा या सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे है।
ऐसा इसलिए क्योकी विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी व्याकरण के (संधि) से सम्बंधित बहुत से प्रश्न पुछे जाते है। ऐसे में यदि आप भी उन्हीं छात्रों में से है, जो प्रतियोगी परीक्षा या प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो आपके लिये यह लेख काफी उपयोगी साबित हो सकता है।
यहा हम (संधि) से सम्बंधित उन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को बिल्कुल विस्तार से समझेंगे जो प्रतियोगी परीक्षा, प्रवेश परीक्षा या कक्षा 9 से 12 तक के हिन्दी व्याकरण के परीक्षा में पुछे जा सकते है
जैसे की- संधि किसे कहते हैं, संधि-विच्छेद किसे कहते हैं, संधि की परिभाषा क्या होती है, संधि के उदाहरण या संधि कितने प्रकार के होते हैं आदि। इस प्रकार के (संधि) से जड़े और भी बहुत से प्रश्नों के उत्तर आपको इस लेख में एकदम विस्तार से मिल जायेंगे।
तो अगर आप sandhi kise kahate hain बिल्कुल अच्छे से समझना चाहते है, तो इस लेख को पूरा अन्त तक ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़ें।
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संधि किसे कहते हैं (Sandhi Kise Kahate Hain)
परिभाषा --- दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को सन्धि कहते हैं। इस प्रकार एक ही वाग्धारा में उच्चारित दो समीपस्थ ध्वनियों के परस्पर प्रभाव या विकार को सन्धि यानी जोड़ कहा जाता है। जैसे --
▪︎ वाचनालय = वाचन + आलय।
इसमें वाचन की अन्तिम ध्वनि अ और आलय की आदि ध्वनि आ का उच्चारण यदि एक ही स्वर में किया जाये तो दोनों ध्वनियाँ प्रबाहवित होकर मात्र आ हो जाती हैं। अतः इसे ही सन्धि कहेंगे।
अथवा (दुसरे शब्दों में)
दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनके रूप और उच्चारण में जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं। जैसे --
▪︎ गण + ईश गणेश (अ + ई = ए)
यहाँ 'गण' शब्द का 'अ' (अंतिम स्वर) एवं 'ईश' शब्द का 'ई' (शुरूवाला स्वर) दोनों स्वरों के मिलने से 'ए' स्वर की उत्पत्ति हुई जिससे 'गणेश' शब्द बना। यह नया शब्द (गणेश) 'गण' और 'ईश' के उच्चारण एवं रूप से भिन्न है। यह भिन्नता या परिवर्तन संधि के कारण है।
संधि-विच्छेद किसे कहते हैं
जिन अक्षरों के बीच संधि हुई है यदि उन्हें संधि के पहलेवाले रूप में अलग-अलग करके रखा जाए, तो उसे 'संधि-विच्छेद' कहा जाएगा। जैसे --
संधि | संधि-विच्छेद |
---|---|
गणेश | गण + ईश |
दिगम्बर | दिक् + अम्बर |
संधि के कितने भेद होते है (Sandhi Ke Bhed)
संधि तीन प्रकार की होती है
(1). | स्वर-संधि |
(2). | व्यंजन-संधि |
(3). | विसर्ग-संधि |
स्वर संधि किसे कहते हैं
दो स्वरों के आपस में मिलने से जो रूप-परिवर्तन होता है, उसे स्वर-संधि कहते हैं। जैसे --
▪︎ भाव + अर्थ = भावार्थ।
यहाँ 'भाव' शब्द का अंतिम स्वर 'अ' (व = व् + अ) एवं 'अर्थ' शब्द का पहला स्वर 'अ' , दोनों स्वरों के मिलने (अ + अ) से 'आ' स्वर की उत्पत्ति हुई, जिससे 'भावार्थ' शब्द का निर्माण हुआ। स्वरों के ऐसे मेल को स्वर-संधि कहते हैं।
स्वर संधि के भेद
स्वर-संधि के पाँच भेद हैं
(1). | दीर्घ-संधि |
(2). | गुण-संधि |
(3). | वृद्धि-संधि |
(4). | यण-संधि |
(5). | अयादि-संधि |
(1) दीर्घ-संधि --- ह्रस्व स्वर (अ, इ, उ) या दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) के आपस में मिलने से यदि सवर्ण या उसी जाति के दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) की उत्पत्ति हो, तो उसे दीर्घ-संधि कहेंगे। जैसे --
अ + अ = आ | भाव + अर्थ = भावार्थ |
---|---|
अ + आ = आ | पुस्तक + आलय = पुस्तकालय |
आ + अ = आ |
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी |
आ + आ = आ | प्रतीक्षा + आलय = प्रतीक्षालय |
इ + इ = ई | कवि + इन्द्र = कवीन्द्र |
इ + ई = ई | गिरि + ईश = गिरीश |
ई + इ = ई | मही + इन्द्र = महीन्द्र |
ई + ई = ई | नदी + ईश = नदीश |
उ + उ = ऊ | भानु + उदय = भानूदय |
उ + ऊ = ऊ | अबु + ऊर्मि = अंबूर्मि |
ऊ + उ = ऊ | वधू + उत्सव = वधूत्सव |
ऊ + ऊ = ऊ | भू + ऊर्जा = भूर्जा |
(2) गुण-संधि --- यदि 'अ' या 'आ' के बाद इ / ई , उ / ऊ , ऋ स्वर आते हैं, तो दोनों के मिलने से क्रमशः 'ए' , 'ओ' तथा 'अर्' हो जाते हैं। इसी को गुण संधि कहते हैं। जैसे --
अ + इ = ए | देव + इन्द्र = देवेन्द्र |
---|---|
अ + ई = ए | गण + ईश = गणेश |
आ + इ = ए | यथा + इष्ट = यथेष्ट |
आ + ई = ए | महा + ईश = महेश |
अ + उ = ओ | ज्ञान + उदय = ज्ञानोदय |
अ + ऊ = ओ | शीत + ऊष्म = शीतोष्म |
आ + उ = ओ | महा + उत्सव = महोत्सव |
आ + ऊ = ओ | गंगा + ऊर्मि गंगोर्मि |
अ + ऋ = अर् | सप्त + ऋषि = सप्तर्षि |
आ + ऋ = अर् | महा + ऋषि = महर्षि |
(3) वृद्धि-संधि --- यदि अ/आ के बाद ए/ऐ हो , तो 'ऐ' में और अ/आ के बाद ओ/औ हो, तो 'औ' में बदलना वृद्धि-संधि कहलाती है। जैसे --
अ + ए = ऐ |
एक + एक = एकैक |
---|---|
आ + ए = ऐ | तथा + एव = तथैव |
अ + ओ = औ | वन + ओषधि = वनौषधि |
आ + ओ = औ | महा + ओषध = महौषध |
(4) यण-संधि --- यदि इ, ई, उ, ऊ या ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो, इ/ई का -- 'य' ; उ/ऊ का -- 'व्' और ऋ का -- ' र ' हो जाना यण-संधि कहलाती है। जैसे --
इ + अ = य | यदि + अपि = यद्यपि |
---|---|
इ + आ = या | इति + आदि = इत्यादि |
ई + आ = या | नदी + आगम = नद्यागम |
इ + उ = यु | उपरि + उक्त = उपर्युक्त |
इ + ऊ = यू | वि + ऊह = व्यूह |
इ + ए = ये | प्रति + एक = प्रत्येक |
उ + अ = व | अनु + अय = अन्वय |
उ + आ = वा | सु + आगत = स्वागत |
उ + ए = वे | अनु + एषण = अन्वेषण |
उ + इ = वि | अनु अन्विति |
ऋ + आ = रा | पितृ + आदेश = पित्रादेश |
(5) अयादि-संधि --- ए, ऐ, ओ तथा औ के बाद यदि कोई भिन्न स्वर आए, तो 'ए' का -- अय् , 'ऐ' का -- आय् , 'ओ' का -- अव् तथा 'औ' का -- आव् हो जाना अयादि-संधि कहलाती है। जैसे --
ए + अ = अय | ने + अन = नयन |
---|---|
ऐ + अ = आय | गै + अक = गायक |
ऐ + इ = आयि | नै + इका = नायिका |
ओ + अ = अव | पो + अन = पवन |
ओ + इ = अवि | पो + इत्र पवित्र |
औ + अ = आव | पौ + अक = पावक |
औ + इ = आवि | नौ + इक = नाविक |
व्यंजन संधि किसे कहते हैं
यदि व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण या स्वर वर्ण की संधि से व्यंजन में कोई विकार उत्पन्न हो, तो वह व्यंजन-संधि कहलाती है। जैसे --
▪︎ सत् + गति = सद्गति [व्यंजन वर्ण (त्) + व्यंजन वर्ण (ग)]
▪︎ वाक् + ईश = वागीश [व्यंजन वर्ण (क्) + स्वर वर्ण (ई)]
व्यंजन-संधि में अक्षरों में परिवर्तन इस प्रकार होते हैं
(1) -- यदि क् , च् , ट् , त् , प् व्यंजन के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तीसरा (ग, ज, ड, द, ब) या चौथा वर्ण (घ, झ, ढ, ध, भ) हो अथवा य, र, ल, व वर्गों में कोई एक हो, तो 'क्' का -- ग् , 'च' का -- ज् , 'ट्' का -- ड् , 'त्' का -- द् एवं 'प्' का ब् हो जाता है। अर्थात्, तीसरा वर्ण आता है। जैसे --
▪︎ दिक् + अम्बर = दिगम्बर -- (क् का -- ग्) -- तीसरा
▪︎ दिक् + गज = दिग्गज -- (क् का -- ग्) -- तीसरा
▪︎ अच् + अन्त = अजन्त -- (च् का -- ज्) -- तीसरा
▪︎ जगत् + आनंद = जगदानंद -- (त् का -- द् ) -- तीसरा
▪︎ सत् + बुद्धि = सद्बुद्धि -- (त् का -- द्) -- तीसरा
(2) -- यदि क् , च् , ट् , त् , प् के बाद 'न' या 'म' आए, तो पहले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का पंचमाक्षर (ङ् , ञ् , ण , न् , म्) शुद्ध रूप में आता है। जैसे --
▪︎ वाक् + मय = वाङ्मय -- (क् के स्थान पर -- ङ्)
▪︎ षट् + मास = षण्मास -- (ट् के स्थान पर -- ण)
▪︎ जगत् + नाथ = जगन्नाथ -- (त् के स्थान पर -- न्)
▪︎ अप् + मय = अम्मय -- (प् के स्थान पर -- म्)
(3) -- यदि 'त्' या 'द्' के बाद कोई भी व्यंजन अक्षर (च, ज, ट, ड, द, न, ल) आए, तो उस आनेवाले व्यंजन के साथ वही व्यंजन उसमें हल् (शुद्ध व्यंजन) के रूप में एक और जुड़ जाता है तथा 'त्' या 'द्' लुप्त हो जाता है। जैसे --
▪︎ उत् + चारण = उच्चारण ('च' के कारण एक और 'च' जुड़ा)
▪︎ शरद् + चन्द्र = शरच्चन्द्र ('च' के कारण एक और 'च' जुड़ा)
▪︎ सत् + जन = सज्जन ('ज' के कारण एक और 'ज्' जुड़ा)
▪︎ विपद् + जाल = विपज्जाल ('ज' के कारण एक और 'ज्' जुड़ा)
(4) -- यदि 'त्' या 'द्' के बाद 'श्' हो, तो 'त्' या 'द्' का च् और 'श्' का छ् हो जाता है। जैसे --
▪︎ उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट ('त्' का 'च्' और 'शि' का 'छि')
▪︎ सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र ('त्' का 'च' और 'शा' का 'छा')
(5) -- यदि 'त्' या 'द्' के बाद 'ह' या 'घ' हो, तो 'त्' या 'द्' के स्थान पर 'द्' और 'ह' के स्थान पर -- 'धू' हो जाता है। लेकिन 'म्' का -- 'घ' ही रह जाता है। जैसे --
▪︎ उद् + हरण = उद्धरण ('द्' का 'द्' और 'ह' का ध्)
▪︎ तत् + हित = तद्धित ('त्' का 'द्' और 'हि' का 'धि')
▪︎ उत् + घाटन = उद्घाटन ('घु' का 'घू' ही रह गया)
(6) -- लेकिन त् / द् के बाद यदि ' झ'हो , तो त् / द् का -- 'ज्' हो जाता है। जैसे --
▪︎ उद् + झटिका = उज्झटिका ( 'द्' का -- 'ज्' )
(7) -- यदि ह्रस्व स्वर के बाद 'छ' आए, तो 'छ' -- 'च्छ' में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ छत्र + छाया = छत्रच्छाया (अ + छा = अच्छा)
▪︎ परि + छेद = परिच्छेद (इ + ई = इच्छे)
(8) -- यदि 'ष' के बाद 'त' या 'थ' आए, तो 'त' का -- 'ट' तथा 'थ' का 'ठ' हो जाता है। जैसे --
▪︎ उत्कृष् + त = उत्कृष्ट ('त' का 'ट')
▪︎ पृष् + थ = पृष्ठ ('थ' का 'ठ')
(9) -- यदि 'म्' के बाद अंतःस्थ व्यंजन (य, र, ल, व) या ऊष्ण व्यंजन (श, ष, स, ह) आए, तो 'म्' अनुस्वार ( . ) में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ सम् + योग = संयोग
▪︎ सम् + शय = संशय
▪︎ सम् + रक्षण = संरक्षण
▪︎ सम् + सार संसार
▪︎ सम् + लाप = संलाप
▪︎ सम् + हार संहार
नोट
(1) -- यदि 'म्' के बाद कोई स्पर्श व्यंजन आए, तो 'म्' के बदले उसी वर्ग का पंचमाक्षर लिखा जा सकता है। जैसे --
▪︎ सम् + कल्प = संकल्प / सङ्कल्प / सङ्कल्प
▪︎ सम् + चय = संचय / सञ्चय / सञ्चय
(2) -- यदि 'म्' के बाद 'म' हो, तो अनुस्वार न देकर द्वित्व का प्रयोग करें। जैसे --
▪︎ सम् + मति = सम्मति ('संमति' लिखना गलत है)
विसर्ग संधि किसे कहते हैं
विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन की संधि, विसर्ग संधि कहलाती है। जैसे --
दुः + आत्मा = दुरात्मा -- ( : + आ )
दुः + गन्ध = दुर्गन्ध -- ( : + ग )
विसर्ग संधि के निम्नलिखित नियम हैं
नियम (1) -- विसर्ग के पहले कोई स्वर ('अ' या 'आ' को छोड़कर) आए और विसर्ग के बाद कोई स्वर रहे अथवा वर्ग के तीसरे चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग -- 'र' में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ निः + अर्थक = निरर्थक -- ( निः = न् + इ + :)
▪︎ दुः + आत्मा = दुरात्मा -- (दुः = द् + उ + :)
▪︎ निः + धन = निर्धन
▪︎ दुः + जन = दुर्जन
▪︎ आशीः + वाद = आशीर्वाद
विसर्ग के पहले 'अ' हो और उसके बाद यदि कोई स्वर हो, तो भी विसर्ग का 'र्' हो जाता है। जैसे --
▪︎ पुनः + अवलोकन = पुनरावलोकन
▪︎ पुनः + इच्छा = पुनरिच्छा
नियम (2) -- यदि विसर्ग के पहले 'इ' या 'उ' हो, तो 'क' , 'ख' , 'प' , या 'फ' के रहने पर विसर्ग का 'ए' हो जाता है। जैसे --
▪︎ दु: + कर्म = दुष्कर्म
▪︎ निः + कपट = निष्कपट
▪︎ दु: + प्रकृति = दुष्प्रकृति
▪︎ निः + फल = निष्फल
लेकिन 'दुः' के बाद 'ख' हो, तो विसर्ग ज्यों का-त्यों रहता है। जैसे -- दु: + ख = दुःख
लेकिन 'अ' अथवा 'आ' के बाद विसर्ग हो और उसके बाद क, ख, प, फ आए, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रह जाता है। जैसे --
▪︎ पयः + पान = पयःपान
▪︎ प्रातः + कमल = प्रातःकमल
नियम (3) -- यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और बाद में 'अ', वर्गीय व्यंजन के तीसरे, चौथे, पाँचवें अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई एक हो, तो विसर्ग 'ओ' में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
▪︎ मनः + मोहक = मनोमोहक
▪︎ अधः + गति = अधोगति
▪︎ मनः + योग = मनोयोग
▪︎ पयः + धारा = पयोधारा
नियम (4) -- विसर्ग के बाद 'च' या 'छ' हो तो विसर्ग -- 'श्' में, 'ट' या 'ठ' हो, तो 'ष' में और 'त' या 'थ' हो तो 'स्' में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ निः + चय = निश्चय (: + च = श्च)
▪︎ निः + छल = निश्चल (: + छ + श्छ)
▪︎ निः + ठुर = निठुर (: + ठु = छु)
▪︎ निः + तार = निस्तार (: + ता = स्ता)
▪︎ धनु : + टंकार = धनुष्टंकार (: + हं = ष्टं)
नियम (5) -- विसर्ग के बाद 'श्' , 'ष' या 'स्' हो, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रह जाता है अथवा उसके स्थान पर विसर्ग के आगेवाला वर्ण एक और हलंत रूप में आ जाता है। जैसे --
▪︎ दुः + शासन = दुःशासन अथवा दुश्शासन
▪︎ निः + संतान = निःसंतान अथवा निस्संतान
नियम (6) -- यदि 'अ' अथवा 'आ' के बाद विसर्ग हो और उसके बाद क, ख अथवा प, फ आए, तो विसर्ग ज्यों-का-त्यों रह जाता है या कुछ शब्दों में यह विसर्ग 'स्' बन जाता है। जैसे --
▪︎ रजः + कण = रजःकण
▪︎ पुरः + कार = पुरस्कार
▪︎ पयः + पान = पयःपान
▪︎ भाः + पति = भास्पति
नियम (7) -- यदि रेफ (रे) के बाद र हो, तो 'र्' लोप हो जाता है और उसके पूर्व का ह्रस्व दीर्घ में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ निर् + रस = नीरस
▪︎ निर् + रोग = नीरोग
▪︎ निर् + रज = नीरज
▪︎ निर + रुज = नीरुज
नोट -- निर् में निहित 'र्' के बदले आप विसर्ग भी दे सकते हैं। जैसे --
▪︎ निः + रस = नीरस
▪︎ निः + रोग = नीरोग
▪︎ निः + रज = नीरज
▪︎ निः + रुज = नीरुज
नियम (8) -- यदि विसर्ग के पहले और बाद 'अ' हो, तो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर 'ओकार' हो जाता और बादवाले 'अ' के स्थान पर लुप्ताकार ( ऽ ) का चिह्न लग जाता है। जैसे --
▪︎ प्रथमः + अध्यायः = प्रथमोऽध्यायः
▪︎ यशः + अभिलाषी = यशोऽभिलाषी
▪︎ मनः + अभिलषित = मनोऽभिलषित
▪︎ मनः + अनुकूल = मनोऽनुकूल
यह ध्यान रखें कि अभी तक जिन नियमों की चर्चा की गयी है, वे संस्कृत के नियम हैं। इसके अलावा संधि से सम्बद्ध हिन्दी के भी अपने कुछ नियम हैं। इनकी संक्षिप्त चर्चा नीचे की जा रही है
हिन्दी की संधि
(1). महाप्राणीकरण
शब्द के अंत में अल्पप्राण ध्वनि के आगे यदि 'ह' ध्वनि हो, तो यह अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण हो जाती है। जैसे --
▪︎ कब + ही = कभी
▪︎ जब + ही = जभी
▪︎ अब + ही = अभी
(2). लोप के नियम
कभी-कभी दो शब्दों में से किसी एक ध्वनि (स्वर या व्यंजन) का लोप हो जाता है। जैसे --
▪︎ यहाँ + ही = यहीं
▪︎ वहाँ + ही = वहीं
▪︎ यह + ही = यही
▪︎ वह + ही = वही
▪︎ किस + ही = किसी
▪︎ जिस + ही = जिसी
▪︎ नाक + कटा = नकटा
▪︎ दूध + हाँडी = दुधौड़ी
(3). आगम के नियम
कभी-कभी दो स्वरों के बीच 'य' का आगमन हो जाता है। जैसे --
▪︎ मुनि + ओं = मुनियों
▪︎ तिथि + ओं = तिथियों
▪︎ नदी + ओं = नदियों
▪︎ छड़ी + ओं = छड़ियों
(4). ह्रस्वीकरण
सामासिक पदों में पूर्वपद का दीर्घ स्वर प्रायः ह्रस्व स्वर में बदल जाता है। जैसे --
▪︎ हाथ + कड़ी = हथकड़ी ('हा' के बदले 'ह')
▪︎ हाथी + सार = हथिसार ('थी' के बदले 'थि')
▪︎ बहू + एँ = बहुएँ ('हू' के बदले 'हु')
▪︎ डाकू + ओं = डाकुओं ('कू' के बदले 'कु')
(5). सादृश्यीकरण
दो भिन्न ध्वनियाँ एकरूप हो जाती हैं। जैसे --
▪︎ पोत + दार = पोद्दार ।
(6). स्वर-परिवर्तन
विशेष रूप से यह सामासिक पदों में देखने को मिलता है। जैसे --
▪︎ पानी + घट = पनघट
▪︎ घोड़ा + दौड़ = घुड़दौड़
FAQ:- संधि से सम्बंधित पुछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न -- संधि किसे कहते हैं उसके कितने भेद होते हैं?
उत्तर -- दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को सन्धि कहा जाता हैं, इसके 3 भेद होते हैं।
प्रश्न -- संधि किसे कहते हैं संधि के कितने भेद होते हैं प्रत्येक के दो दो उदाहरण दीजिए?
उत्तर -- दो अक्षरों के आपस में मिलने से उनके रूप और उच्चारण में जो परिवर्तन होता है उसे संधि कहा जाता हैं। संधि के तीन भेद होते है- स्वर-संधि, व्यंजन-संधि और विसर्ग-संधि, प्रत्येक के दो दो उदाहरण निम्न है-
▪︎ भाव + अर्थ = भावार्थ।
▪︎ परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
▪︎ सत् + गति = सद्गति
▪︎ वाक् + ईश = वागीश
▪︎ दुः + आत्मा = दुरात्मा
▪︎ दुः + गन्ध = दुर्गन्ध
प्रश्न -- संधि किसे कहते हैं तथा कितने प्रकार की होती है स्वर संधि के 5 प्रकार दस उदाहरण के साथ लिखिए?
उत्तर -- दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार सन्धि कहलाते है, यह तीन प्रकार के होते है। स्वर संधि के 5 प्रकार दस उदाहरण के साथ निम्न है- (1) दीर्घ-संधि, (2) गुण-संधि, (3) वृद्धि-संधि, (4) यण-संधि, (5) अयादि-संधि
• पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
• गिरि + ईश = गिरीश
• गण + ईश = गणेश
• महा + उत्सव = महोत्सव
• तथा + एव = तथैव
• महा + ओषध = महौषध
• नदी + आगम = नद्यागम
• सु + आगत = स्वागत
• पौ + अक = पावक
• पो + अन = पवन
निष्कर्ष
कक्षा 9वीं से 12वीं तक के सभी छात्रों के लिये यहा पर इस लेख में दिये गए (संधि) की संपूर्ण जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है, इसलिए इन कक्षाओं के सभी छात्र इस लेख को ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े। साथ ही जो विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिये भी हिन्दी व्याकरण के (संधि) को समझना काफी महत्वपूर्ण है, क्योकी संधि से जड़े बहुत से बहुविकल्पिय प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पुछे जाते है।
यहा पर इस लेख में शेयर किये गए संधि की सम्पुर्ण जानकारी आपको कैसी लगी, कमेंट के माध्यम से आप अपने विचार हमारे साथ जरुर साझा करे। हम आशा करते है की आपको यह लेख जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की इस लेख की सहायता से sandhi kise kahate hain आप बिल्कुल अच्छे से समझ गए होंगे। यदि आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल है, तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। और इसके अलावा आप इस लेख को अपने क्लास के सभी मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करे।
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