व्यंजन किसे कहते हैं? परिभाषा | भेद और उदारहण | Vyanjan Kise Kahate Hain
इस आर्टिकल में हम हिन्दी व्याकरण के एक बहुत ही महत्वपूर्ण Topic के बारे में विस्तार से जानेंगे जोकि है 'व्यंजन' यहा पर हम विस्तारपूर्वक समझेंगे की vyanjan kise kahate hain तथा vyanjan kitne hote hai अगर आप व्यंजन को अच्छे से समझना चाहते है तो, इस आर्टिकल को शुरू से अन्त तक पढ़े क्योकी इस आर्टिकल में हमने व्यंजन से सम्बन्धी सभी महत्वपुर्ण प्रश्नों के उत्तर दिये है जैसे की व्यंजन किसे कहते हैं, व्यंजन कितने होते है, व्यंजन की परिभाषा, व्यंजन के भेद, व्यंजन के उदाहरण आदि इस सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यहा विस्तार से मिल जायेंगे।
अगर आप बोर्ड के परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो आपके लिये व्यंजन को समझना काफी जरुरी और महत्वपूर्ण है क्योकी अकसर बोर्ड की परीक्षा में हिन्दी व्याकरण के विषय में व्यंजन से सम्बन्धी बहुत से प्रश्नों को पुछा जाता है जैसे की vyanjan kise kahate hain iske kitne bhed hain या vyanjan kise kahate hain udaharan sahit likhiye इस तरह के प्रश्न आपकी बोर्ड की परीक्षा के हिन्दी व्याकरण के विषय में अकसर पुछ लिये जाते है और यहा पर आपको इन सभी प्रश्नो के उत्तर विस्तार में मिल जायेंगे जिनकी मदद से आप व्यंजन को अच्छे से समझ सकेंगे।
और अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो भी आपके लिये ये आर्टिकल काफी सहयोगी साबित हो सकता है क्योकी बहुत से प्रतियोगी परीक्षा में भी व्यंजन से सम्बन्धित प्रश्नों को पुछा जाता है ऐसे में अगर आप व्यंजन को अच्छे से समझे रहेंगे तो आपको इससे किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में काफी मदद मिलेगी। तो चलिये अब हम vyanjan in hindi को विस्तार से समझे।
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व्यंजन किसे कहते हैं (Vyanjan Kise Kahate Hain)
परिभाषा --- जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से नहीं निकलती, वरन् उसमें पूर्ण या अपूर्ण अवरोध होता है, व्यंजन कहलाती हैं। दूसरे शब्दों में, वे ध्वनियाँ जो बिना स्वरों की सहायता लिए उच्चारित नहीं हो सकती हैं, व्यंजन कहलाती हैं; जैसे — क = क् + अ ।
व्यंजन कितने प्रकार के होते है (Vyanjan Kitne Hote Hai)
अभी हमने व्यंजन की परिभाषा को समझ लिया, अब हम समझते है की व्यंजन कितने होते है यानी की व्यंजन कितने प्रकार के होते है। तो, सामान्यतया व्यंजन छ: प्रकार के होते है जो निम्न है।
1). स्पर्श व्यंजन
2). ऊष्म व्यंजन
3). उत्क्षिप्त व्यंजन
4). संयुक्त व्यंजन
5). अनुनासिक व्यंजन
6). अन्त:स्थ व्यंजन
अब हम इन सभी व्यंजनों के परिभाषा को एक-एक करके समझते है।
(1). स्पर्श व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का कोई-न-कोई भाग मुख के किसी-न-किसी भाग को स्पर्श करता है, स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं। क से लेकर म तक 25 व्यंजन स्पर्श हैं। इन्हें पाँच-पाँच के वर्गों में विभाजित किया गया है। अत : इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहते हैं;
जैसे — क से ङ तक क वर्ग, च से ञ तक च वर्ग, ट से ण तक ट वर्ग, त से न तक त वर्ग, और प से म तक प वर्ग।
(2). ऊष्म व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्प व्यंजन कहलाते हैं। श, ष, स और ह ऊष्म व्यंजन हैं।
(3). उत्क्षिप्त व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उल्टी हुई नोंक तालु को छूकर झटके से हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं। ड़, ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन हैं।
(4). संयुक्त व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं; जैसे =
क् + ष = क्ष (उच्चारण की दृष्टि से क् + छ = क्ष)
त् + र = त्र
ज् + ञ = ज्ञ (उच्चारण की दृष्टि से ग् + य = ज्ञ)
श् + र = श्र
(5). अनुनासिक व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है, अनुनासिक व्यंजन कहलाते हैं। ङ, ञ, ण, न और म अनुनासिक व्यंजन हैं।
(6). अन्तःस्थ व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाता है फिर भी वायु स्वरों की भाँति बीच से निकल जाती है, उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि अन्तःस्थ व्यंजन कहलाती है। य, र, ल, व अन्तःस्थ व्यंजन हैं।
व्यंजनों का उच्चारण
अभी तक हमने व्यंजन की परिभाषा और व्यंजन कितने होते है इसके बारे में विस्तार से जाना अब हम व्यंजनों के उच्चारण को अच्छे से समझते है। उच्चारण स्थान की दृष्टि से हिन्दी व्यंजनों को आठ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जो निन्म है।
1). कण्ठ्य व्यंजन --- जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा के पिछले भाग से कोमल तालु का स्पर्श होता है, कण्ठ्य ध्वनियाँ (व्यंजन) कहलाते हैं। क, ख, ग, घ, ङ कण्ठ्य व्यंजन हैं।
2). तालव्य व्यंजन --- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग कठोर तालु को स्पर्श करता है, तालव्य व्यंजन कहलाते हैं। च, छ, ज, झ, ञ और श, य तालव्य व्यंजन हैं।
3). मूर्धन्य व्यंजन --- कठोर तालु के मध्य का भाग मूर्धा कहलाता है। जब जिह्वा की उल्टी हुई नोंक का निचला भाग मूर्धा से स्पर्श करता है, ऐसी स्थिति में उत्पन्न ध्वनि को मूर्धन्य व्यंजन कहते हैं। ट, ठ, ड, ढ, ण मूर्धन्य व्यंजन हैं।
4). दन्त्य व्यंजन --- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की नोंक ऊपरी दाँतों को स्पर्श करती है, दन्त्य व्यंजन कहलाते हैं। त, थ, द, ध, स दन्त्य व्यंजन हैं।
5). ओष्ठ्य व्यंजन --- जिन व्यंजनों के उच्चारण में दोनों ओष्ठों द्वारा श्वास का अवरोध होता है, ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। प, फ, ब, भ, म ओष्ठ्य व्यंजन हैं।
6). दन्त्योष्ठ्य व्यंजन --- जिन व्यंजनों के उच्चारण में निचला ओष्ठ दाँतों को स्पर्श करता है, दन्त्योष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। 'व' दन्त्योष्ठ्य व्यंजन है।
7). वर्त्स्य व्यंजन --- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा ऊपरी मसूढ़ों (वर्ल्स) का स्पर्श करती है, वर्त्स्य व्यंजन कहलाते हैं; जैसे — न, र, ल।
8). स्वरयन्त्रमुखी या काकल्य व्यंजन --- जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्दर से आती हुई श्वास, तीव्र वेग से स्वर यन्त्र मुख पर संघर्ष उत्पन्न करती है, स्वरयन्त्रमुखी व्यंजन कहलाते हैं; जैसे — ह।
उपरोक्त आठ वर्गों के विभाजन के अतिरिक्त व्यंजनों के उच्चारण हेतु उल्लेखनीय बिन्दु निम्नलिखित हैं।
(1). घोषत्व के आधार पर घोष का अर्थ स्वरतन्त्रियों में ध्वनि का कम्पन है।
(i) अघोष -- जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन न हो, अघोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक 'वर्ग' का पहला और दूसरा व्यंजन वर्ण अघोष ध्वनि होता है; जैसे — क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ।
(ii) घोष -- जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियों में कम्पन हो, वह घोष व्यंजन कहलाते हैं। प्रत्येक 'वर्ग' का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ व्यंजन वर्ण घोष ध्वनि होता है; जैसे — ग, घ, ड़, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण।
(2). प्राणत्व के आधार पर यहाँ ' प्राण ' का अर्थ हवा से है।
(i) अल्पप्राण -- जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले, अल्पप्राण व्यंजन होते हैं। प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ व्यंजन वर्ण अल्पप्राण ध्वनि होता है जैसे — क, ग, ड़, च, ज, ञ आदि।
(ii) महाप्राण -- जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले महाप्राण व्यंजन होते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा व्यंजन वर्ण महाप्राण ध्वनि होता है, जैसे - ख, घ, छ, झ, ठ, ढ आदि।
(3). उच्चारण की दृष्टि से ध्वनि ( व्यंजन ) को तीन वर्गों में बाँटा गया है।
(i) संयुक्त ध्वनि -- दो-या-दो से अधिक व्यंजन ध्वनियाँ परस्पर संयुक्त होकर 'संयुक्त ध्वनियाँ' कहलाती हैं; जैसे — प्राण, घ्राण, क्लान्त, क्लान, प्रकर्ष इत्यादि। संयुक्त ध्वनियाँ अधिकतर तत्सम शब्दों में पाई जाती हैं।
(ii) सम्पृक्त ध्वनि -- एक ध्वनि जब दो ध्वनियों से जुड़ी होती है, तब यह 'सम्पृक्त ध्वनि' कहलाती है; जैसे — 'कम्बल'। यहाँ 'क' और 'ब' ध्वनियों के साथ म् ध्वनि संयुक्त (जुड़ी) है।
(iii) युग्मक ध्वनि -- जब एक ही ध्वनि द्वित्व हो जाए, तब यह 'युग्मक ध्वनि' कहलाती है; जैसे— अक्षुण्ण, उत्फुल्ल, दिक्कत, प्रसन्नता आदि।
यहा पर हमने vyanjan kise kahate hain और vyanjan kitne hote hai इसके बारे में विस्तार से समझा। अगर आप बोर्ड के परीक्षा की तैयारी कर रहे हो या किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हो व्यंजन को समझना आपके लिये काफी महत्वपुर्ण है। क्योकी इससे सम्बंधीत प्रश्नो को परीक्षा में जरुर पुछा जाता है और इस आर्टिकल में हमने आपके साथ व्यंजन से सम्बन्धित उन सभी महत्वपुर्ण प्रश्नो के उत्तर को शेयर किये है जो परीक्षाओं में पुछे जाते है।
हमे आशा है की आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होगा और हम उमीद करते है की इस आर्टिकल की सहायता से vyanjan kise kahate hain को समझने में आपको काफी मदद मिली होगी। अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है और इस आर्टिकल को आप अपने मित्रों के साथ शेयर जरुर करे।
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