शब्दालंकार किसे कहते हैं? परिभाषा | भेद | उदाहरण | Shabdaalankar Kise Kahate Hain

Shabdaalankar Kise Kahate Hain

इस आर्टिकल में हम अलंकार के पहले भाग यानी शब्दालंकार के बारे में विस्तार से समझेंगे। जैसा की आप जानते है की अलंकार के चार भेद होते है। और उन्ही भागों मे से एक शब्दालंकार भी है। हमने (अलंकार) के बारे में विस्तार से आर्टिकल लिखा है यदि आपने उसे नहीं पढ़ा तो, आप उसे जरुर पढ़े ताकी आपको अलंकार अच्छे से समझ आ जाये। और इस आर्टिकल में हम shabdaalankar in hindi को अच्छे से समझेंगे, हम यहा पर शब्दालंकार से सम्बन्धित कई सारे महत्वपूर्ण प्रश्नो के उत्तर को देखेंगे जैसे - शब्दालंकार किसे कहते हैं, शब्दालंकार की परिभाषा, शब्दालंकार के भेद, शब्दालंकार के उदाहरण आदि इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यहा पर विस्तार से मिल जायेंगे। अगर आप शब्दालंकार को अच्छे से समझना चाहते है तो, आप इस आर्टिकल को शुरू से अन्त तक पढ़े। तो चलिए अब shabdaalankar kise kahate hain विस्तार से समझे।


शब्दालंकार किसे कहते हैं (Shabdaalankar Kise Kahate Hain)

परिभाषा -- काव्य के शब्दगत चमत्कार को शब्दालंकार कहते है। अथवा जहाँ शब्दों के प्रयोग से सौन्दर्य में वृद्घि होती है और काव्य में चमत्कार आ जाता है, वहाँ शब्दालंकार माना जाता है।

पहचान -- अलंकारिक शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची प्रयोग करने पर अलंकार समाप्त हो जाता है।

शब्दालंकार कितने प्रकार के होते है (Shabdaalankar Kitne Prakar Ke Hote Hain)

अभी हमने ऊपर शब्दालंकार किसे कहते, शब्दालंकार की परिभाषा और शब्दालंकार की पहचान को विस्तार से जाना। अब हम शब्दालंकार के भेद के बारे में जानते है। शब्दालंकार कितने प्रकार के होते है इसके बारे में बात की जाए तो, शब्दालंकार सात प्रकार के होते है। यानी शब्दालंकार के 7 भेद होते है।

(1). अनुप्रास
(2). यमक
(3). श्लेष
(4). वक्रोक्ति
(5). पुनरुक्तिप्रकाश
(6). पुनरुक्तिवदाभास
(7). वीप्सा

1). अनुप्रास अलंकार

परिभाषा -- अनुप्रास अलंकार एक या अनेक वर्णों की पास-पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को 'अनुप्रास अलंकार' कहते हैं। अथवा जहाँ व्यंजन वर्णो की आवृत्ति एक या दो से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार  होता है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

चारु चंद्र की चंचल किरणें
खेल रही हैं जल-थल में
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है
अवनि और अम्बर तल में

यहाँ पहले पद में 'च' वर्ण की आवृत्ति कई बार हुई है अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार कितने प्रकार के होते हैं

हमने अनुप्रास अलंकार की परिभाषा को ऊपर अच्छे से समझ लिया अब हम अनुप्रास अलंकार के कितने प्रकार होते है इसके बारे में बात करते है। तो, अनुप्रास अलंकार मुख्य रुप से पाँच प्रकार के होते है।

(i) छेकानुप्रास
(ii) वृत्यानुप्रास
(iii) श्रुत्यनुप्रास
(iv) अन्त्यानुप्रास
(v) लाटानुप्रास

(i) छेकानुप्रास --- जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक ही क्रम में एक बार आवृत्ति हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है; जैसे --
"इस करुणा कलित हृदय में,
अब विकल रागिनी बजती"। 

यहाँ करुणा कलित में छेकानुप्रास है।

(ii) वृत्यानुप्रास --- काव्य में पाँच वृत्तियाँ होती हैं - मधुरा, ललिता, प्रौढ़ा, परुषा और भद्रा। कुछ विद्वानों ने तीन वृत्तियों को ही मान्यता दी है — उपनागरिका, परुषा और कोमला। इन वृत्तियों के अनुकूल वर्ण साम्य को वृत्यानुप्रास कहते हैं; जैसे -- 
'कंकन, किंकिनि, नूपुर, धुनि, सुनि'

यहाँ पर 'न' की आवृत्ति पाँच बार हुई है और कोमला या मधुरा वृत्ति का पोषण हुआ है। अतः यहाँ वृत्यानुप्रास है। 

(iii) श्रुत्यनुप्रास --- जहाँ एक ही उच्चारण स्थान से बोले जाने वाले वर्णों की आवृत्ति होती है, वहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार होता है; जैसे --
'तुलसीदास सीदति निसिदिन देखत तुम्हार निठुराई'

यहाँ 'त' , 'द' , 'स' , 'न' एक ही उच्चारण स्थान (दन्त्य) से उच्चरित होने वाले वर्णों की कई बार आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ श्रुत्यनुप्रास अलंकार है। 

(iv) अन्त्यानुप्रास अलंकार --- जहाँ पद के अन्त के एक ही वर्ण और एक ही स्वर की आवृत्ति हो, वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है; जैसे -- 
"जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर"।।
यहाँ दोनों पदों के अन्त में 'आगर' की आवृत्ति हुई है, अतः अन्त्यानुप्रास अलंकार है।

(v) लाटानुप्रास --- जहाँ समानार्थक शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति हो परन्तु अर्थ में अन्तर हो, वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है; जैसे -- 
"पूत सपूत, तो क्यों धन संचय ?
पूत कपूत, तो क्यों धन संचय" ?

यहाँ प्रथम और द्वितीय पंक्तियों में एक ही अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग हुआ है परन्तु प्रथम और द्वितीय पंक्ति में अन्तर स्पष्ट है, अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।

2). यमक अलंकार

जहाँ एक शब्द की आवृत्ति कई बार हो और प्रत्येक शब्द के अर्थ में भिन्नता हो तो वहाँ यमक अलंकार होता है। अथवा जहाँ एक शब्द या शब्द समूह अनेक बार आए किन्तु उनका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है।

यमक अलंकार के उदाहरण

"जेते तुम तारे, तेते नभ में न तारे हैं"

यहाँ पर 'तारे' शब्द दो बार आया है। प्रथम का अर्थ 'तारण करना' या 'उद्धार करना' है और द्वितीय 'तारे' का अर्थ 'तारागण' है, अतः यहाँ यमक अलंकार है।

"काली घटा का घमंड घटा"।

यहाँ 'घटा' शब्द की आवृत्ति भिन्न-भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'घटा' शब्द का अर्थ 'बादल' से तथा दुसरे का अर्थ 'कम होने' से है।

कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौराय नर, वा पाये बौराय

यहाँ 'कनक' शब्द की आवृत्ति भिन्न अर्थ में हुई है। पहले 'कनक' शब्द का अर्थ है 'धतूरा' दुसरे का अर्थ है 'सोना'।

3). श्लेष अलंकार

जहाँ एक शब्द का प्रयोग पंक्तियों में एक बार होकर भी उसका अर्थ एक से अधिक हो तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है अथवा जहाँ एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

श्लेष अलंकार के उदाहरण

"रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे, मोती मानुष चून।।"

यहाँ 'पानी' शब्द का प्रयोग एक बार हुआ है किन्तु उसके भिन्न अर्थ हैं। सीप में मोती, मानुज के लिए मान, चून यानी आटे के लिए जल।

4). वक्रोक्ति अलंकार

कविता में जब कही गई बात का अर्थ ध्वनि विकास के कारण भिन्न अर्थ में ग्रहण किया जाता है तो वह वक्रोक्ति अलंकार कहलाता है। अथवा जहाँ पर वक्ता द्वारा भिन्न अभिप्राय से व्यक्त किए गए कथन का श्रोता 'श्लेष' या 'काकु' द्वारा भिन्न अर्थ की कल्पना कर लेता है, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। 

वक्रोक्ति अलंकार के भेद

वक्रोक्ति अलंकार के दो भेद होते हैं – श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति

(i) श्लेष वक्रोक्ति ---- जहाँ शब्द के श्लेषार्थ के द्वारा श्रोता वक्ता के कथन से भिन्न अर्थ अपनी रुचि या परिस्थिति के अनुकूल अर्थ ग्रहण करता है, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है; जैसे --

"गिरजे तुव भिक्षु आज कहाँ गयो, 
जाइ लखौ बलिराज के द्वारे।
व नृत्य करै नित ही कित है,
ब्रज में सखि सूर-सुता के किनारे।
पशुपाल कहाँ? मिलि जाइ कहूँ,
वह चारत धेनु अरण्य मँझारे।।" 

(ii) काकु वक्रोक्ति ---- जहाँ किसी कथन का कण्ठ की ध्वनि के कारण दूसरा अर्थ निकलता है, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है; जैसे --

“मैं सुकुमारि, नाथ वन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।

5). पुनरुक्ति प्रकाश

काव्य में भाव पर जोर देने के लिए शब्द का अर्थ बदले बिना पुनरुक्ति होती है तो उसे पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार कहते है। अथवा इस अलंकार में कथन के सौन्दर्य के बहाने एक ही शब्द की आवृत्ति को पुनरुक्तिप्रकाश कहते हैं।

पुनरुक्ति प्रकाश के उदाहरण

"ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुरनारियाँ।"

यहाँ 'ठौर-ठौर' की आवृत्ति में पुनरुक्तिप्रकाश है। दोनों 'ठौर' का अर्थ एक ही है परन्तु पुनरुक्ति से कथन में बल आ गया है।

जब तें दर से मनमोहन जू,
तब तें आँखियाँ ये लगीं सों लगीं।
कुलकानि गई अंजि वाही धरी 
ब्रजराज के प्रेमी पगीं से पगीं।

यहाँ 'लगीं' और 'पगीं' दो-दो बार आने से भाव में वृद्धि होती है।

6). पुनरुक्तिवदाभास

काव्य में जब पुनरुक्ति न होने पर भी श्रोता को पुनरुक्ति का आभास हो तो वह पुनरुक्तिवदाभास अलंकार होता है। अथवा जहाँ कथन में पुनरुक्ति का आभास होता है, वहाँ पुनरुक्तिवदाभास अलंकार होता है;

पुनरुक्तिवदाभास के उदाहरण

"पुनि फिरि राम निकट सो आई।" 

यहाँ 'पुनि' और 'फिरि' का समान अर्थ प्रतीत होता है, परन्तु पुनि का अर्थ-पुनः (फिर) है और 'फिरि' का अर्थ-लौटकर होने से पुनरुक्तिावदाभास अलंकार है।

ग्रीष्म को भीषण प्रताप जग जाग्यो बातें,
सति के प्रभाव भाव भावना भुलानी के।
कहै रत्नाकर त्यौ जीवन भयौ है जल,
जाके बिना मानव सुखाय सब प्रानी के।।

यहाँ जीवन व जल में पुनरुक्ति का आभास होता है क्योकिं ये दोनो पर्याय है। किन्तु 'जीवन' का अर्थ प्राण है, जल नहीं। अतः यह पुनरुक्तिवदाभास अलंकार है।

7). वीप्सा

कविता में जब क्रोध तथा पीड़ा प्रकट करने वाले शब्दों की आवृत्ति होती है तो वह वीप्सा अलंकार होता है। अथवा जब किसी कथन में अत्यन्त आदर के साथ एक शब्द की अनेक बार आवृत्ति होती है तो वहाँ वीप्सा अलंकार होता है।

वीप्सा के उदाहरण

"हा! हा!! इन्हें रोकन को टोक न लगावो तुम।" 

यहाँ 'हा!' की पुनरुक्ति द्वारा गोपियों का विरह जनित आवेग व्यक्त होने से वीप्सा अलंकार है।

साँसे भरि आँसू भरि कहत दई-दई।

यहाँ रीझि, रहसि, हाँसि, दई आदि की आवृत्ति द्वारा क्रोध, करूणा व पीड़ा के भाव दिखाई पड़ते है।


यहा हमने शब्दालंकार किसे कहते हैं इसके बारे में विस्तार से जाना। हमने शब्दालंकार की परिभाषा, शब्दालंकार के उदाहरण, शब्दालंकार के भेद और उन सभी भेदों को विस्तार में से समझा। हमे आशा है की आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होगा। और हम उमीद करते है की इस आर्टिकल की सहायता से shabdaalankar kise kahate hain को समझने में आपको काफी मदद मिली होगी। अगर आपके मन में कोई सवाल हो तो, आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है और इस आर्टिकल को आप अपने दोस्तो के साथ शेयर जरुर करे।

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