रस किसे कहते है? परिभाषा | भेद और उदारहण | Ras Kise Kahate Hain
इस आर्टिकल में हम हिन्दी व्याकरण के रस के बारे में विस्तार से समझेंगे। यहा पर आपको ras in hindi से सम्बन्धित कई सारी महत्त्वपूर्ण प्रश्नो के उत्तर मिलेंगे जैसे की ras kise kahate hain, रस की परिभाषा, रस के प्रकार और रस के उदाहरण इन सभी प्रश्नो को हम यहा पर विस्तारपूर्वक समझेंगे। यदि आप कक्षा 10 या 12 के छात्र है या फिर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो, आपके लिये ये आर्टिकल काफी महत्वपुर्ण है क्योकी कक्षा 10 या 12 के हिन्दी के परीक्षा में रस से प्रश्न पुछे जाते है ऐसे में अगर आप रस को अच्छे से पढ़े रहेंगे तो, आप अपने हिन्दी के परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर पायेंगे। और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी रस से सम्बन्धित प्रश्न पुछ लिये जाते है तो अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे तो आपके लिये इसे समझना काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए आप इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े ताकी आपको ras in hindi अच्छे से समझ आ जाये।
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रस किसे कहते है (Ras Kise Kahate Hain)
परिभाषा --- रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है। दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य के द्वारा सहृदयों के हृदय में जिस आनन्द भाव का संचार होता है वह रस कहलाता हैं। अथवा साहित्य को पढ़ने, सुनने या नातकादि को देखने से जो आनन्द की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहते है।
रस के कितने अंग होते है (Ras Ke Kitne Ang Hote Hain)
अभी हमने रस की परिभाषा को स्पष्ट रुप से समझा अब हम रस के अंगों के बारे में समझते है। रस के मुख्य रुप से चार अंग माने जाते है यानी की रस के चार अंग होते है, जो निम्न प्रकार है।
(1). स्थायी भाव
(2). विभाव
(3). अनुभाव
(4). संचारी भाव
स्थायी भाव
परिभाषा --- सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रुप से विद्यमान रहते है, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं। अथवा हृदय में मूलरूप से विद्यमान रहने वाले भावों को स्थायी भाव कहते हैं। ये चिरकाल तक रहने वाले तथा रस रूप में सृजित या परिणत होते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ है - रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निवेंद।
विभाव
परिभाषा --- जो व्यक्ति वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं।
(i) आलम्बन विभाव --- जिन वस्तुओं या विषयों पर आलम्बित होकर भाव उत्पन्न होते हैं , उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं ; जैसे — नायक - नायिका। आलम्बन के भी दो भेद हैं
(अ) आश्रय -- जिस व्यक्ति के मन में रति आदि भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय कहते हैं।
(ब) विषय -- जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय कहते हैं।
(ii) उद्दीपन विभाव --- आश्रय के मन में भावों को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाह्य चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं; जैसे — शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के मन में आकर्षण (रति भाव) उत्पन्न होता है। उस समय शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन का सुरम्य, मादक और एकान्त वातावरण दुष्यन्त के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करता है, अतः यहाँ शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन का एकान्त वातावरण आदि को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।
अनुभाव
परिभाषा --- आलम्बन तथा उद्दीपन के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव जागृत या उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाएँ होती हैं, उन्हें अनुभाव कहते हैं। अनुभाव चार प्रकार के माने गए हैं — कायिक, मानसिक, आहार्य और सात्विक। सात्विक अनुभाव की संख्या आठ है, जो निम्न प्रकार है (i) स्तम्भ (ii) स्वेद (iii) रोमांच (iv) स्वर-भंग (v) कम्प (vi) विवर्णता (रंगहीनता) (vii) अक्षु (viii) प्रलय (संज्ञाहीनता)
संचारी भाव
परिभाषा --- आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहते हैं। इनके द्वारा स्थायी भाव और तीव्र हो जाता है। संचारी भावों की संख्या 33 है - हर्ष, विषाद, त्रास, लज्जा (व्रीड़ा), ग्लानि, चिन्ता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, विबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न, स्मृति, मद, उन्माद, अवहित्था, अपस्मार, व्याधि, मरण। आचार्य देव कवि ने 'छल' को चौतीसवाँ संचारी भाव माना है।
रस के प्रकार (Ras Kitne Prakar Ke Hote Hain)
अभी हमने रस की परिभाषा और रस के अंगों को अच्छे समझ लिया अब हम इसके प्रकार को समझते है।आचार्य भरतमुनि ने नाटकीय महत्त्व को ध्यान में रखते हुए आठ रसों का उल्लेख किया - शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स एवं अद्भुत आचार्य मम्मट और पण्डितराज जगन्नाथ ने रसों की संख्या नौ मानी है - शृंगार, हास, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत और शान्त। आचार्य विश्वनाथ ने वात्सल्य को दसवाँ रस माना है तथा रूपगोस्वामी ने 'मधुर' नामक ग्यारहवें रस की स्थापना की, जिसे भक्ति रस के रूप में मान्यता मिली। वस्तुतः रस की संख्या नौ ही हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित है -
(1). शृंगार
(2). हास
(3). करुण
(4). वीर
(5). रौद्र
(6). भयानक
(7). बीभत्स
(8). अद्भुत
(9). शान्त
1). शृंगार रस
आचार्य भोजराज ने 'शृंगार' को 'रसराज' कहा है। शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का पारस्परिक आकर्षण है, जिसे काव्यशास्त्र में रति स्थायी भाव कहते हैं। जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रति स्थायी भाव आस्वाद्य हो जाता है तो उसे शृंगार रस कहते हैं। शृंगार रस में सुखद और दुःखद दोनों प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं, इसी आधार पर इसके दो भेद किए गए हैं - संयोग शृंगार और वियोग शृंगार।
(i) संयोग शृंगार
जहाँ नायक-नायिका के संयोग या मिलन का वर्णन होता है, वहाँ संयोग शृंगार होता है।
उदाहरण"चितवत चकित चहूँ दिसि सीता।कहँ गए नृप किसोर मन चीता।।लता ओर तब सखिन्ह लखाए।श्यामल गौर किसोर सुहाए।थके नयन रघुपति छबि देखे।पलकन्हि हूँ परिहरी निमेषे।।अधिक सनेह देह भई भोरी।सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।।लोचन मग रामहि उर आनी।दीन्हें पलक कपाट सयानी।।"
यहाँ सीता का राम के प्रति जो प्रेम भाव है वही रति स्थायी भाव है राम और सीता आलम्बन विभाव, लतादि उद्दीपन विभाव, देखना, देह का भारी होना आदि अनुभाव तथा हर्ष, उत्सुकता आदि संचारी भाव हैं, अतः यहाँ पूर्ण संयोग शृंगार रस है।
(ii) वियोग या विप्रलम्भ शृंगार
जहाँ वियोग की अवस्था में नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन होता है, वहाँ वियोग या विप्रलम्भ शृंगार होता है।
उदाहरण"कहेउ राम वियोग तब सीता।मो कहँ सकल भए विपरीता।।नूतन किसलय मनहुँ कृसानू।काल-निसा-सम निसि ससि भानू।।कुवलय विपिन कुंत बन सरिसा।वारिद तपत तेल जनु बरिसा।।कहेऊ ते कछु दुःख घटि होई।काहि कहीं यह जान न कोई।।"
यहाँ राम का सीता के प्रति जो प्रेम भाव है वह रति स्थायी भाव, राम आश्रय, सीता आलम्बन, प्राकृतिक दृश्य उद्दीपन विभाव, कम्प, पुलक और अश्रु अनुभाव तथा विषाद, ग्लानि, चिन्ता, दीनता आदि संचारी भाव हैं, अतः यहाँ वियोग शृंगार रस है।
2). हास्य रस
विकृत वेशभूषा, क्रियाकलाप, चेष्टा या वाणी देख-सुनकर मन में जो विनोदजन्य उल्लास उत्पन्न होता है, उसे हास्य रस कहते हैं। हास्य रस का स्थायी भाव हास है।
उदाहरण"जेहि दिसि बैठे नारद फूली।सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।।पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।देखि दसा हरिगन मुसकाहीं।।"
यहाँ स्थायी भाव हास, आलम्बन वानर रूप में नारद, आश्रय दर्शक, श्रोता उद्दीपन नारद की आंगिक चेष्टाएँ, जैसे - उकसना, अकुलाना बार-बार स्थान बदलकर बैठना अनुभाव हरिगण एवं अन्य दर्शकों की हँसी और संचारी भाव हर्ष, चपलता, उत्सुकता आदि हैं, अतः यहाँ हास्य रस है।
3). करुण रस
दुःख या शोक की संवेदना बड़ी गहरी और तीव्र होती है, यह जीवन में सहानुभूति का भाव विस्तृत कर मनुष्य को भोग भाव से धनाभाव की ओर प्रेरित करता है। करुणा से हमदर्दी, आत्मीयता और प्रेम उत्पन्न होता है जिससे व्यक्ति परोपकार की ओर उन्मुख होता है। इष्ट वस्तु की हानि, अनिष्ट वस्तु का लाभ, प्रिय का चिरवियोग, अर्थ हानि, आदि से जहाँ शोकभाव की परिपुष्टि होती है, वहाँ करुण रस होता है। करुण रस का स्थायी भाव शोक है।
उदाहरण"सोक विकल एब रोवहिं रानी।रूप सीलु बल तेज बखानी।।करहिं विलाप अनेक प्रकारा।परहिं भूमितल बारहिं बारा।।"
यहाँ स्थायी भाव शोक, दशरथ आलम्बन, रानियाँ आश्रय, राजा का रूप तेज बल आदि उद्दीपन रोना, विलाप करना अनुभाव और स्मृति, मोह, उद्वेग कम्प आदि संचारी भाव हैं, अतः यहाँ करुण रस है।
4). वीर रस
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में निहित 'उत्साह' स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे वीर रस कहा जाता है। उत्साह स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तब वीर रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण"मैं सत्य कहता हूँ सखे ! सुकुमार मत जानो मुझे।यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानो मुझे।हे सारथे ! हैं द्रोण क्या ? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझसे कभी।।"
यहाँ स्थायी भाव उत्साह आश्रय अभिमन्युद्ध आलम्बन द्रोण आदि कौरव पक्ष, अनुभाव अभिमन्यु के वचन और संचारी भाव गर्व, हर्ष, उत्सुकता, कम्प मद, आवेग, उन्माद आदि हैं, अतः यहाँ वीर रस है।
5). रौद्र रस
रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति, देश, समाज या धर्म का अपमान या अपकार करने से उसकी प्रतिक्रिया में जो क्रोध उत्पन्न होता है, वह विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है और तब रौद्र रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण"माखे लखन कुटिल भयीं भौहें।रद-पट फरकत नयन रिसौहै।।कहि न सकत रघुबीर डर, लगे वचन जनु बान।नाइ राम-पद-कमल-जुग, बोले गिरा प्रमान।।"
यहाँ स्थायी भाव क्रोध, आश्रय लक्ष्मण, आलम्बन जनक के वचन उद्दीपन जनक के वचनों की कठोरता, अनुभाव भौंहें तिरछी होना, होंठ फड़कना, नेत्रों का रिसौहैं होना संचारी भाव अमर्ष-उग्रता, कम्प आदि हैं, अतः यहाँ रौद्र रस है।
6). भयानक रस
भयप्रद वस्तु या घटना देखने सुनने अथवा प्रबल शत्रु के विद्रोह आदि से भय का संचार होता है। यही भय स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में परिपुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तो वहाँ भयानक रस होता है।
उदाहरण"एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय।विकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।"
यहाँ पथिक के एक ओर अजगर और दूसरी ओर सिंह की उपस्थिति से वह भय के मारे मूच्छित हो गया है। यहाँ भय स्थायी भाव, यात्री आश्रय, अजगर और सिंह आलम्बन, अजगर और सिंह की भयावह आकृतियाँ और उनकी चेष्टाएँ उद्दीपन, यात्री को मूर्च्छा आना अनुभाव और आवेग, निर्वेद, दैन्य, शंका, व्याधि, त्रास, अपस्मार आदि संचारी भाव हैं, अतः यहाँ भयानक रस है।
7). बीभत्स रस
वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है। अनेक विद्वान् इसे सहृदय के अनुकूल नहीं मानते हैं, फिर भी जीवन में जुगुप्सा या घृणा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियाँ तथा वस्तुएँ कम नहीं हैं। अतः घृणा का स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है तब बीभत्स रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण"सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।गीध जाँघ को खोदि खोदि कै मांस उपारत।स्वान आंगुरिन काटि-काटि कै खात विदारत।।"
यहाँ राजा हरिश्चन्द्र श्मशान घाट के दृश्य को देख रहे हैं। उनके मन में उत्पन्न जुगुप्सा या घृणा स्थायी भाव, दर्शक (हरिश्चन्द्र) आश्रय, मुर्दे, मांस और श्मशान का दृश्य आलम्बन, गीध, स्यार, कुत्तों आदि का मांस नोचना और खाना उद्दीपन, दर्शक/राजा हरिश्चन्द्र का इनके बारे में सोचना अनुभाव और मोह, ग्लानि आवेग, व्याधि आदि संचारी भाव हैं, अत: यहाँ बीभत्स रस है।
8). अद्भुत रस
अलौकिक, आश्चर्यजनक दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय उत्पन्न होता है। यही विस्मय जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तो अद्भुत रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण"अम्बर में कुन्तल जाल देख,पद के नीचे पाताल देख,मुट्ठी में तीनों काल देख,मेरा स्वरूप विकराल देख,सब जन्म मुझी से पाते हैं,फिर लौट मुझी में आते हैं।"
यहाँ स्थायी भाव विस्मय, ईश्वर का विराट् स्वरूप आलम्बन, विराट् के अद्भुत क्रियाकलाप उद्दीपन, आँखें फाड़कर देखना, स्तब्ध, अवाक् रह जाना अनुभाव और भ्रम, औत्सुक्य, चिन्ता, त्रास आदि संचारी भाव हैं, अतः यहाँ अद्भुत रस है।
9). शान्त रस
अभिनवगुप्त ने शान्त रस को सर्वश्रेष्ठ माना है। संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है परिणामतः मनुष्य भौतिक तथा लौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है, इसी को निर्वेद कहते हैं। जो विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होकर शान्त रस में परिणत हो जाता है।
उदाहरण"सुत वनितादि जानि स्वारथरत न करु नेह सबही ते।अन्तहिं तोहि तजेंगे पामर ! तू न तजै अबही ते।।अब नाथहिं अनुराग जाग जड़, त्यागु दुरदसा जीते।बुझे न काम अगिनि 'तुलसी' कहुँ विषय भोग बहु घी ते।।"
यहाँ स्थायी भाव, निर्वेद आश्रय, सम्बोधित सांसारिक जन आलम्बन, सुत वनिता आदि अनुभाव, सुत वनितादि को छोड़ने को कहना संचारी भाव धृति, मति विमर्श आदि हैं, अतः यहाँ शान्त रस है। शास्त्रीय दृष्टि से नौ ही रस माने गए हैं लेकिन कुछ विद्वानों ने सूर और तुलसी की रचनाओं के आधार पर दो नए रसों को मान्यता प्रदान की है - वात्सल्य और भक्ति।
यहा पर हमने रस किसे कहते हैं इसके बारे में विस्तार से जाना। हमने रस से सम्बंधित यहां जोभी महत्वपुर्ण पश्नो को समझा उससे परिक्षा में आपको काफी सहायता मिलेगी और अगर आप बोर्ड के परिक्षा की तैयारी कर रहे है तो, आपके लिये रस को समझना काफी जरुरी है क्योकी अगर आप रस के सभी महत्वपुर्ण प्रश्नों को समझे रहेंगे जैसे की ras kise kahate hain, ras ki paribhasha, ras ke udaharan और ras ke prakar आदि तो आप अपने बोर्ड की परिक्षा में हिन्दी के विषय में अच्छे अंक प्राप्त कर सकेंगे क्योकी रस के प्रश्नों को बोर्ड के हिन्दी के परिक्षा में पुछे जाते है।
हमे आशा है की आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होगा और हम उमीद करते है की आपको इस आर्टिकल की सहायता से रस किसे कहते हैं समझने में काफी मदद मिली होगी। अगर आपका कोई सवाल हो तो, आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है और इस आर्टिकल को आप अपने दोस्त, सहपाठी के साथ शेयर जरुर करे।
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