राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध 2024 | Essay On Rashtrabhasha Hindi [ PDF ]

Essay On Rashtrabhasha Hindi

इस आर्टिकल में हम राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध को बिल्कुल अच्छे से समझेंगे, यह निबंध विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं और सरकारी एग्ज़ाम की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए उपयोगी है। आप सभी जानते ही होंगे कि हमारे देश भारत में कई तरह की भाषाओं का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन सभी भाषाओं में हिन्दी भाषा, सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है और बहुत से छात्रों के मन में हमारे देश के राष्ट्रभाषा को लेकर बहुत से सवाल होते है। 

उन सभी सवालों के जवाब आपको इस राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध में बिल्कुल विस्तार से मिल जायेंगे। राष्ट्रभाषा को लेकर जिन महत्त्वपूर्ण सवालों की हम बात कर रहे है वो, कुछ प्रकार है- राष्ट्रभाषा क्या है, क्या भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है, राष्ट्रभाषा का महत्व, राष्ट्रभाषा हिंदी की विशेषता, राष्ट्रभाषा हिन्दी के समक्ष चुनौतियाँ, हिंदी को राष्ट्रभाषा क्यों कहा जाता है और राजभाषा क्या होता है आदि। 

राष्ट्रभाषा हिन्दी से सम्बंधित इस प्रकार के और भी बहुत से सवालों के जवाब आपको यहा पर इस निबंध में बिल्कुल विस्तार से मिल जायेंगे। तो, अगर आप वास्तव में essay on rashtrabhasha hindi को एकदम अच्छे से समझना चाहते हैं, तो इस लेख को पुरा अन्त तक जरुर पढ़े।

यहा पर हमने जो राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध को शेयर किया है, वो केवल प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिये ही नही बल्कि, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक तथा महाविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिये भी समान रुप से उपयोगी है। 

साथ ही छोटे वर्ग के कक्षा में पढ़ रहे छात्रों के लिये भी यह निबंध काफी उपयोगी साबित हो सकता है, ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार छोटे कक्षा के छात्रों को उनके स्कूल से होम वर्क या प्रोजेक्ट वर्क के रुप में राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध लिख कर लाने को दे दिया जाता है। ऐसे में छात्र इस लेख का सहारा ले सकते है, क्योकी यहा पर राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध 800 शब्दों में भी शेयर किया गया है, जिससे छात्र अपने विद्यालय से मिले हुए प्रोजेक्ट वर्क या फिर होम वर्क को बड़े ही असानी से पुरा कर सकते हैं। तो चलिए अब हम rashtrabhasha hindi par nibandh को एकदम विस्तार से देखें।

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध लेखन (Rashtrabhasha Hindi Par Nibandh)

महात्मा गाँधी के अनुसार, "राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। अगर हम भारत को राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हिन्दी ही हमारी राष्ट्रभाषा हो सकती है।" किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक प्रचलित एवं स्वेच्छा से आत्मसात् की गई भाषा को 'राष्ट्रभाषा' कहा जाता है। हिन्दी, बांग्ला, उर्दू , पंजाबी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, उड़िया इत्यादि भारत के संविधान द्वारा राष्ट्र की मान्य भाषाएँ हैं। इन सभी भाषाओं में हिन्दी का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि यह भारत की राजभाषा भी है। 

राजभाषा वह भाषा होती है, जिसका प्रयोग किसी देश में राज-काज को चलाने के लिए किया जाता है। हिन्दी को 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसके बावजूद सरकारी काम-काज में अब तक अंग्रेज़ी का व्यापक प्रयोग किया जाता है। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा तो है, किन्तु इसे यह सम्मान केवल सैद्धान्तिक रूप में प्राप्त है, वास्तविक रूप में राजभाषा का सम्मान प्राप्त करने के लिए इसे अंग्रेज़ी से संघर्ष करना पड़ रहा है।

वाल्टर कैनिंग ने कहा था- "विदेशी भाषा का किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र की राज-काज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है।" एक विदेशी भाषा होने के बावजूद अंग्रेज़ी में राज-काज को विशेष महत्त्व दिए जाने और राजभाषा के रूप में अपने सम्मान को प्राप्त करने हेतु हिन्दी के संघर्ष का कारण जानने के लिए सबसे पहले हमें हिन्दी की संवैधानिक स्थिति को जानना होगा। संविधान के अनुच्छेद -343 के खण्ड -1 में कहा गया है कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। 

संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होने वाले अंकों का रूप, भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। खण्ड -2 में यह उपबन्ध किया गया था कि संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक अर्थात् 26 जनवरी, 1965 तक संघ के सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी का प्रयोग होता रहेगा जैसा कि पूर्व में होता था। वर्ष 1965 तक राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के प्रयोग का प्रावधान किए जाने का कारण यह था कि भारत वर्ष 1947 से पहले अंग्रेज़ों के अधीन रहा था और तत्कालीन ब्रिटिश शासन में यहाँ इसी भाषा का प्रयोग राजकीय प्रयोजनों के लिए होता था। 

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अचानक राजकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का प्रयोग कर पाना व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं था, इसलिए वर्ष 1950 में संविधान के लागू होने के बाद से अंग्रेजी के प्रयोग के लिए पन्द्रह वर्षों का समय दिया गया और यह तय किया गया कि इन पन्द्रह वर्षों में हिन्दी का विकास कर इसे राजकीय प्रयोजनों के उपयुक्त कर दिया जाएगा, किन्तु ये पन्द्रह वर्ष पूरे होने के पहले ही हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने का दक्षिण भारत के कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने व्यापक विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। देश की सर्वमान्य भाषा हिन्दी को क्षेत्रीय लाभ उठाने के ध्येय से विवादों में घसीट लेने को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता।

राष्ट्रभाषा हिन्दी का महत्त्व

भारत में अनेक भाषा-भाषी लोग रहते हैं। भाषाओं की बहुलता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के संविधान में ही 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। हिन्दी, भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है और बांग्ला भाषा दूसरे स्थान पर विराजमान है। इसी तरह तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी इत्यादि भाषाएँ बोलने वालों की संख्या भी काफ़ी है। भाषाओं की बहुलता के कारण भाषायी वर्चस्व की राजनीति ने भाषावाद का रूप धारण कर लिया है।

इसी भाषावाद की लड़ाई में हिन्दी को हानि उठानी पड़ रही है और स्वार्थी राजनीतिज्ञ इसको इसका वास्तविक सम्मान दिए जाने का विरोध करते रहे हैं। देश की अन्य भाषाओं के बदले हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने का मुख्य कारण यह है कि यह भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के साथ-साथ देश की एकमात्र सम्पर्क भाषा भी है। ब्रिटिशकाल में पूरे देश में राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता था।

पूरे देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती हैं, किन्तु स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय राजनेताओं ने यह अनुभव किया कि हिन्दी एक ऐसी भारतीय भाषा है, जो दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश की सम्पर्क भाषा है और देश के विभिन्न भाषा,भाषी भी आपस में विचार विनिमय करने के लिए हिन्दी का सहारा लेते हैं। हिन्दी की इसी सार्वभौमिकता के कारण राजनेताओं ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया था।

हिन्दी, राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। इसकी लिपि देवनागरी है, जो अत्यन्त सरल है। पं. राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में- "हमारी नागरी लिपि दुनिया की सबसे वैज्ञानिक लिपि है।" हिन्दी में आवश्यकतानुसार देशी - विदेशी भाषाओं के शब्दों को सरलता से आत्मसात् करने की शक्ति है। यह भारत की एक ऐसी राष्ट्रभाषा है, जिसमें पूरे देश में भावात्मक एकता स्थापित करने की पूर्ण क्षमता है।

राष्ट्रभाषा हिन्दी के समक्ष चुनौतियाँ

आजकल पूरे भारत में सामान्य बोलचाल की भाषा के रूप में हिन्दी एवं अंग्रेज़ी के मिश्रित रूप हिंग्लिश का प्रयोग बढ़ा है। इसके कई कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में व्यावसायिक शिक्षा में प्रगति हुई है। अधिकतर व्यावसायिक पाठ्यक्रम अंग्रेज़ी भाषा में ही उपलब्ध हैं और विद्यार्थियों के अध्ययन का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही है। इस कारण से विद्यार्थी हिन्दी में पूर्णत: निपुण नहीं हो पाते। वहीं अंग्रेज़ी में शिक्षा प्राप्त युवा हिन्दी में बात करते समय अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग करने को बाध्य होते हैं, क्योंकि हिन्दी भारत में आमजन की भाषा है। इसके अतिरिक्त आजकल समाचार पत्रों एवं टेलीविज़न के कार्यक्रमों में भी ऐसी ही मिश्रित भाषा प्रयोग में लाई जा रही है, इन सबका प्रभाव आम आदमी पर पड़ता है।

भले ही हिंग्लिश के बहाने हिन्दी बोलने वालों की संख्या बढ़ रही है, किन्तु हिग्लिश का बढ़ता प्रचलन हिन्दी भाषा की गरिमा के दृष्टिकोण से गम्भीर चिन्ता का विषय है। कुछ वैज्ञानिक शब्दों; जैसे - मोबाइल, कम्प्यूटर साइकिल, टेलीविज़न एवं अन्य शब्दों; जैसे - स्कूल, कॉलेज, स्टेशन इत्यादि तक तो ठीक है, किन्तु अंग्रेजी के अत्यधिक एवं अनावश्यक शब्दों का हिन्दी में प्रयोग सही नहीं है। हिन्दी व्याकरण के दृष्टिकोण से एक समृद्ध भाषा है। यदि इसके पास शब्दों का अभाव होता, तब तो इसकी स्वीकृति दी जा सकती थी।

शब्दों का भण्डार होते हुए भी यदि इस तरह की मिश्रित भाषा का प्रयोग किया जाता है, तो यह निश्चय ही भाषायी गरिमा के दृष्टिकोण से एक बुरी बात है। भाषा संस्कृति की संरक्षक एवं वाहक होती है। भाषा की गरिमा नष्ट होने से उस स्थान की सभ्यता और संस्कृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अब्दुल कलाम का कहना है- "वर्तमान समय में विज्ञान के मूल कार्य अंग्रेज़ी में होते हैं, इसलिए आज अंग्रेज़ी आवश्यक है, किन्तु मुझे विश्वास है कि अगले दो दशकों में विज्ञान के मूल कार्य हमारी भाषाओं में होने शुरू हो जाएंगे और तब हम जापानियों की तरह आगे बढ़ सकेंगे।"

हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के सन्दर्भ में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था- "भारत की सारी प्रान्तीय बोलियाँ, जिनमें सुन्दर साहित्यों की रचना हुई है, अपने घर या प्रान्त में रानी बनकर रहें, प्रान्त के जन-गण के हार्दिक चिन्तन की प्रकाश-भूमि स्वरूप कविता की भाषा होकर रहें और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्य-मणि हिन्दी भारत-भारती होकर विराजती रहे।" 

प्रत्येक देश की पहचान का एक मजबूत आधार उसकी अपनी भाषा होती है, जो अधिक-से-अधिक व्यक्तियों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा के रूप में व्यापक विचार विनिमय का माध्यम बनकर ही राष्ट्रभाषा (यहाँ राष्ट्रभाषा का तात्पर्य है- पूरे देश की भाषा) का पद ग्रहण करती है। राष्ट्रभाषा के द्वारा आपस में सम्पर्क बनाए रखकर देश की एकता एवं अखण्डता को भी कायम रखा जा सकता है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का संकल्प महात्मा गाँधी के दर्शन में भी निहित पाया जाता है।

उन्होंने वर्ष 1918 में मध्य प्रदेश के इन्दौर में हिन्दी साहित्य समिति भवन की नींव रखते हुए संकल्प लिया था। इसी प्रकार 14 सितम्बर, 2019 को हिन्दी दिवस के अवसर पर केन्द्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि हिन्दी को दबाने की नहीं, बल्कि ऊपर उठाने की आवश्यकता है। इन्होंने कहा कि राष्ट्रभाषा सम्पूर्ण देश में सांस्कृतिक और भावात्मक एकता स्थापित करने का प्रमुख साधन है। अत: उन्होंने "एक भाषा एक देश" का आह्वान किया।

उन्होंने बताया कि आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम कोई भाषा कर सकती है, तो वह हिन्दी है। हालांकि इसको लेकर कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने असहमति जतायी। इस प्रकार यह वर्तमान में भी पूर्णतः स्वीकार्य नहीं है। इसके लिए सभी को अपने निजी हित को छोड़कर राष्ट्र हित को ध्यान में रखने की आवश्यकता है, जिससे दुनिया में भारत की पहचान बने।

निष्कर्ष 

अतः हिन्दी की लोकप्रियता एवं महत्ता को देखते हुए यह कहा जा सकता है, कि हिन्दी देश की सम्पर्क भाषा तो है। ही, इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान भी दिया जाना चाहिए, जिससे कि यह पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा बन सके। देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की कही यह बात आज भी प्रासंगिक है- जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। अतः आज देश के सभी नागरिकों को यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि वे हिन्दी को सस्नेह अपनाकर और सभी कार्य क्षेत्रों में इसका अधिक-से-अधिक प्रयोग कर इसे व्यावहारिक रूप से राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा बनने का गौरव प्रदान करेंगे।

राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध 800 शब्द में (Essay On Rashtrabhasha Hindi In 800 words)

राष्ट्रभाषा हिन्दी राष्ट्र की आत्मा है। भारत की एकरूपता की धुरी है। भारत की संस्कृति और सभ्यता की मूल चेतना को सूक्ष्मता से अभिव्यक्त करने का माध्यम है। राष्ट्रीय विचारों का कोश है। भारतीयता का प्रतीक है। स्वतन्त्र भारत के संविधान निर्माण के समय हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित करवाने के लिए असंख्य हिन्दी प्रेमियों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने प्रदर्शन किए, लाठियों का सामना किया, किन्तु भारत की आजादी के लिए सर्वस्व लुटाने वाले कांग्रेसी नेताओं की राजनीति को सौंप सूँघ गया। परतन्त्रता-काल में हिन्दी के हिमायती कांग्रेसी नेता राजनीति के चक्कर में फँस गए। 

फलतः संविधान के अनुच्छेद 343 में लिखा गया - 'संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा' , किन्तु अधिनियम के खंड (2) में लिखा गया 'इस संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा, जिसके लिए इसके लागू होने से तुरन्त पूर्व होता था।' अनुच्छेद की धारा (3) में व्यवस्था की गई — 'संसद् उक्त पन्द्रह वर्ष की कालावधि के पश्चात् विधि द्वारा- (क) अंग्रेजी भाषा का (अथवा) अंकों के देवनागरी रूप का ऐसे प्रयोजन के लिए प्रयोग उपबन्धित कर सकेगी जैसे कि ऐसी विधि में उल्लिखित हों। इसके साथ ही अनुच्छेद (1) के अधीन संसद् की कार्यवाही हिन्दी अथवा अंग्रेजी में सम्पन्न होगी।

26 जनवरी, 1965 के पश्चात् संसद् की कार्यवाही केवल हिन्दी (और विशेष मामलों में मातृभाष) में ही निस्पादित होगी, बशर्ते संसद् कानून बनाकर कोई अन्यथा व्यवस्था न करे। चाहिए तो यह था कि संविधान में हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा माना जाता। अंग्रेजी के सहयोग की बात ही नहीं आनी चाहिए थी। कारण, राष्ट्रभाषा राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक है। हमारे साथ स्वतन्त्र होने वाले पाकिस्तान ने उर्दू को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया। तुर्की के जनप्रिय नेता कमाल पाशा ने स्वतंत्र होने के तत्काल पश्चात् वहाँ तुर्की को राष्ट्रभाषा बना दिया। इतना ही नहीं अपने नाम के साथ 'पाशा' विदेशी शब्द हटाकर अपना नाम कमाल अतातुक कर दिया।

हमारे पश्चात् स्वतन्त्र होने वाले अनेक राष्ट्रों ने अपनी-अपनी राष्ट्रभाषा की घोषणा कर दी, किन्तु भारत के कर्णधार 'सबको खुश करने की प्रणाली पर चलते हैं। सबको खुश करने का अर्थ सबको नाराज करना होता है। वही हुआ। राजभाषा अधिनियम 1963 के अन्तर्गत हिन्दी के साथ अंग्रेजी के प्रयोग को सदैव के लिए प्रयोगशील बना दिया गया। संसद् में भी हिन्दी के साथ अंग्रेजी के प्रयोग को अनुमति मिल गई और कहा गया कि जब तक भारत का एक भी राज्य हिन्दी का विरोध करेगा, हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ नहीं किया जाएगा।

देश के हिन्दी हिमायतियों में नेहरू के विरुद्ध बात कहने का साहस ही नहीं था। राष्ट्रकवि, राष्ट्रीय लेखक, राष्ट्रीय झंडा फहराने वाले हिन्दी लेखकों, हिन्दी संस्थाओं के संचालकों को काठ मार गया। वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। वे नेहरू जी की भाषा में बोलने लगे, उन्हीं के अनुरूप विचार प्रकट करने लगे। हिन्दी हितैषियों को माँ भारती को पददलित होते देखकर भी लज्जा न आई।

हाँ, एकमात्र कांग्रेसी, माँ भारती का सच्चा सपूत सेठ गोविन्ददास ही इस अग्नि-परीक्षा में सफल हुआ। उसने डंके की चोट सीना तान कर राजभाषा अधिनियम 1963 के विरुद्ध मत दिया। वे संसद् में दहाड़ उठे, भले ही मुझे कांग्रेस छोड़नी पड़े, पर मैं आँखों देखा विष नहीं खा सकता। 'लोकतन्त्र के महान् समर्थक पण्डित जवाहरलाल नेहरू द्वारा हिन्दी को सिंहासनारूढ़ करने की अन्तिम शर्त लोकतन्त्र का अनादर है, जनतन्त्र के आधारभूत नियमों के विरुद्ध है, प्रजातंत्र का गला घोंटना है। लोकतन्त्र बहुमत की बात करता है, सबके साक्ष्य की नहीं। न सारे प्रांत कभी हिन्दी को चाहेंगे, न हिन्दी सिंहासनारूढ़ होगी। 

न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। परिणाम स्पष्ट है - 'रानी भई अब दासी, दासी अब महारानी थी।' वस्तुतः वह शर्त अनन्तकाल तक अंग्रेजी का वर्चस्व बनाए रखने का षड्यंत्र थी। कांग्रेसी शासकों ने अंग्रेजों से सीखा था - 'फूट डालो, राज्य करो।' यह सिद्धान्त शासन-संचालन की अचूक औषध है। भाषा के प्रश्न पर उत्तर-दक्षिण की बात खड़ी करके भारतीय समाज को विघटित कर दिया गया। दक्षिण संस्कृत भाषा, विद्वत्ता और अनुसंधान का गढ़ रहा है। हिन्दू - संस्कृति और सभ्यता, वैदिक-साहित्य और सूत्रों का अध्ययन और व्याख्या करने की क्षमता दक्षिण की बपौती रही है। दक्षिण के देवालय आज भी हिन्दू संस्कृति की पताका फहरा रहे हैं। 

आज भी वेदों के पण्डित तथा संस्कृतविद्वान् उत्तर की अपेक्षा दक्षिण भारत में अधिक हैं। वही दक्षिण संस्कृत की पुत्री हिन्दी का विरोध करे, यह बात समझ से परे है। हाँ, राजनीति द्वारा आरोपित विष-वृक्ष फूट के फल तो लाएगा ही। हिन्दी कहने को राष्ट्रभाषा है, किन्तु प्रांतीय भाषाएँ भी उसके इस अधिकार की अधिकारिणी बना दी गई हैं। अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी की प्रतीक अंग्रेजी आज भी भारत पर राज्य करती है। राज्य कार्यों में उसका ही वर्चस्व है।

राष्ट्रभाषा हिन्दी पर निबंध pdf

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FAQ: राष्ट्रभाषा हिन्दी के बारे में पुछे जाने वाले कुछ प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न -- राष्ट्रभाषा क्या है अपने शब्दों में लिखें?

उत्तर -- किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक प्रचलित एवं स्वेच्छा से आत्मसात् की गई भाषा को 'राष्ट्रभाषा' कहा जाता है। दुसरे शब्दों में, किसी भी राष्ट्र के अधिकाधिक क्षेत्रों में बोली जाने तथा समझें जाने वाली भाषा को राष्ट्रभाषा कहा जाता है। 

प्रश्न -- क्या भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है?

उत्तर -- भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी नही है, भारत की कोई भी राष्‍ट्रभाषा नहीं है। लेकिन सरकारी दफ्तरों में कामकाज के लिए एक भाषाई आधार बनाने के लिए हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न -- राजभाषा क्या होता है?

उत्तर -- राजभाषा हम उस भाषा को कहते है, जिसका प्रयोग किसी देश में राज-काज को चलाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न -- हिन्दी को राजभाषा का दर्जा कब मिला?

उत्तर -- हिन्दी भाषा को 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया।

अंतिम शब्द

यहा पर इस लेख के माध्यम से हमने essay on national language hindi को बहुत ही सहजता से समझा। इस निबंध में हमने राष्ट्रभाषा हिंदी से सम्बंधित बहुत से महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर को बिल्कुल संक्षेप मे देखा। यहा पर शेयर किया गया निबंध आपको कैसा लगा कमेंट के माध्यम से आप अपने विचार हमारे साथ जरुर साझा करें। हम आशा करते है की आपको यह निबंध जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की इस लेख की सहायता से राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध कैसे लिखें आप अच्छे से समझ गए होंगे। अगर आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल है, तो आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है। साथ ही इस rashtrabhasha hindi par nibandh को आप अपने सभी सहपाठी एवं मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करे।

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