जल संकट पर निबंध हिंदी में | Essay On Water Crisis In Hindi

Essay On Water Crisis In Hindi

इस लेख में हम जल संकट पर निबंध (essay on water crisis in hindi) को एकदम विस्तार से देखेंगे। यह निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के विद्यार्थियों के लिए काफी उपयोगी है। ऐसे में अगर आप कक्षा 5 से 12 तक के किसी भी क्लास के छात्र हैं, और आप जल संकट पर निबंध की तलाश में हैं, तो यह लेख आपके लिए ही है, क्योंकि यहां पर हमने जल संकट पर निबंध हिंदी में बिल्कुल विस्तार से शेयर किया है, जिसे आप असानी से पढ़ कर समझ सकते है।

इसके अलावा अगर आप उन छात्रों में से हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, तो जल संकट पर यह निबंध आपके लिए भी फायदेमंद हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जल संकट से सम्बंधित बहुत से ऐसे है प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं जैसे की- जल संकट के कारण, जल के प्रमुख स्रोत, भारत में जल संकट को समझाइए, जल संकट की स्थिति और जल संकट के उपाय आदि। इस प्रकार के जल संकट से जुड़े और भी बहुत से प्रश्नों के उत्तर इस निबंध में आपको विस्तार से मिल जायेंगे, जोकि प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टिकोण से काफी इम्पोर्टेन्ट है। तो चलिए अब हम jal sankat par nibandh को एकदम विस्तार से समझें।


भारत में जल संकट पर निबंध (Jal Sankat Par Nibandh)

आज भारत ही नहीं, पूरा विश्व जल संकट की पीड़ा से त्रस्त है। आज मानव मंगल ग्रह पर जल की खोज में लगा हुआ है, लेकिन भारत सहित अनेक विकासशील देशों में आज भी पीने योग्य शुद्ध जल बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध है। दुनिया के क्षेत्रफल का लगभग 71% भाग जलयुक्त है, परन्तु पीने योग्य मीठा जल मात्र 3% ही है, शेष भाग खारा जल है। इसमें भी मात्र 1% मीठे जल का ही वास्तव में, हम उपयोग कर पाते हैं। सामान्यत: मीठे जल का 52% झीलों और तालाबों में, 38% मृदा, 8% वाष्प, 1% नदियों और 1% वनस्पति में निहित है। आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण और जनसंख्या विस्फोट से जल का प्रदूषण और जल की खपत बढ़ने के कारण जलचक्र बिगड़ता जा रहा है। 

वास्तव में, पृथ्वी पर जल की उपलब्धता के कारण ही प्राणियों का अस्तित्व और पदार्थों में उपयोगिता का गुण विद्यमान है, कहा भी जाता है - जल ही जीवन है। जल के बिना न तो मनुष्य का जीवन सम्भव है और न ही वह किसी कार्य को संचालित कर सकता है। एक क्षेत्र विशेष के अन्तर्गत जल उपयोग की माँगों को पूरा करने हेतु उपलब्ध जल संसाधनों की कमी को ही जल संकट कहते हैं। विश्व के सभी महाद्वीपों में रहने वाले लगभग 3 बिलियन लोग प्रत्येक वर्ष में कम-से-कम 30 दिन जल संकट का सामना करते हैं। लगभग 1.5 बिलियन से अधिक लोगों के पास स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता नहीं होती है।

वैश्विक परिदृश्य में जल संकट

जल संसाधनों की बढ़ती माँग, जलवायु परिवर्तन और तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के कारण जल की उपलब्धता में कमी देखी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार एशिया का मध्य-पूर्व क्षेत्र, उत्तरी अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र, पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान और स्पेन आदि देशों में वर्ष 2040 तक अत्यधिक जल तनाव की स्थिति होने की सम्भावना है। इसके साथ ही भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों को भी उच्च जल तनाव का सामना करना पड़ सकता है।


भारत में जल संकट की स्थिति

कमजोर मानसून के कारण भारत के लगभग 33 करोड़ लोग या देश की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या गम्भीर सूखे से प्रभावित है। भारत के लगभग 50% क्षेत्र सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं। विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में जल संकट की गम्भीर स्थिति बनी हुई है । वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल प्रबन्धन सूचकांक (Composite Water Management Index) रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद) और इन शहरों में निवासरत् लगभग 10 करोड़ लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक देश की 40% आबादी को पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा और वर्ष 2050 तक जल संकट की वजह से देश की जीडीपी को लगभग 6% हानि होगी।

जल के प्रमुख स्रोत

पृथ्वी पर जल के अनेक स्रोत हैं; जैसे - वर्षा, नदियाँ, झील, पोखर, झरने, भूमिगत स्रोत इत्यादि। पिछले कुछ वर्षों में सिंचाई एवं अन्य कार्यों के लिए भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग के कारण भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आई है। सभी स्रोतों से प्राप्त जल मनुष्य के लिए उपयोगी नहीं होता। औद्योगीकरण के कारण नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है, इन्हीं कारणों से मानव जगत में पेयजल की समस्या उत्पन्न हो गई है। अत: जल संकट के कई कारण हैं।

भारत में जल संकट के कारण

▪︎ भारत में जल संकट की समस्याओं को मुख्यतः दक्षिण और उत्तर-पश्चिमी भागों में इंगित किया जाता है। इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ पर कम वर्षा होती है। चेन्नई तट पर दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा नहीं हो पाती है। इस प्रकार उत्तर-पश्चिम में मानसून पहुँचते-पहुँचते कमजोर पड़ने लगता है, जिससे वर्षा की मात्रा में कमी आने लगती है।

▪︎ मानसून की अनियमितता और अस्थिरता भी भारत में जल संकट का बड़ा कारण है। हाल के वर्षों में अल-निनो के प्रभाव के कारण वर्षा कम हुई, जिसके कारण जल संकट की स्थिति पैदा हो गई है।

▪︎ भारतीय कृषि पारिस्थितिकी ऐसी फसलों के अनुकूल है, जिनके उत्पादन में अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है; जैसे - चावल, गन्ना, गेहूँ, जूट, कपास इत्यादि। इन फसलों वाले क्षेत्रों में जल संकट की समस्या विशेष रूप से विद्यमान है।

▪︎ भारतीय नगरों में जल संसाधन के पुनर्प्रयोग के गम्भीर प्रयास नहीं किए जाते हैं। यही कारण है कि नगरीय क्षेत्रों में जल संकट की समस्या चिन्ताजनक स्थिति में पहुँच गई है। नगरों में जल के पुनर्प्रयोग के स्थान पर उन्हें सीधे नदी में प्रवाहित करा दिया जाता है।

▪︎ जल संरक्षण के सम्बन्ध में जागरूकता का अभाव भी भारत में जल संकट का एक प्रमुख कारण है। जल का दुरुपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है; जैसे - घर की धुलाई, गाड़ी की धुलाई, टोंटी को बिना काम के खुला छोड़ देना इत्यादि।

▪︎ भारत में कानून के अन्तर्गत भूमि के मालिक को जल का भी मालिकाना हक दिया जाता है, जबकि भूमिगत जल साझा संसाधन है।

▪︎ साफ एवं स्वच्छ जल का प्रदूषित होना भी जल संकट को बढ़ा रहा है, क्योंकि जल संरक्षण, जल का सही ढंग से प्रयोग, जल का पुन: प्रयोग और भूजल रिचार्जिंग पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

भारत में जल संकट के समाधान हेतु किए गए प्रयास

जल प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम 1974 --- मानव उपयोग के लिए जल की गुणवत्ता को बनाए रखने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा जल प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम, 1974 लागू किया गया है, जिसे वर्ष 1988 में पुनः संशोधित किया गया।

राष्ट्रीय जल नीति, 1987 --- सर्वप्रथम वर्ष, 1987 में एक राष्ट्रीय जल नीति स्वीकार की गई। इस नीति के अन्तर्गत जलस्रोतों के न्यायोचित दोहन एवं समान वितरण के साथ जल संरक्षण की विभिन्न योजनाएँ चलाई गईं। जल संसाधनों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए व जल संकट को दूर करने के उद्देश्य से विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं। जिनमें गंगा कार्य योजना (1985), यमुना कार्य योजना, राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्य योजना (1995) व राष्ट्रीय झील संरक्षण कार्य योजना आदि प्रमुख हैं।

राष्ट्रीय जल नीति, 2002 --- राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् द्वारा 1 अप्रैल, 2002 को राष्ट्रीय जल नीति, 2002 को स्वीकृति प्रदान की गई। इस नीति में जल संरक्षण के परम्परागत तरीकों और माँगों के प्रबन्धन को महत्त्वपूर्ण तत्त्व के रूप में स्वीकार किया गया, साथ - ही साथ इसमें पर्याप्त संस्थागत प्रबन्धन के जरिए जल के पर्यावरण पक्ष उसकी मात्रा एवं गुणवत्ता के पहलुओं का भी समन्वय किया गया। राष्ट्रीय जल नीति 2002 में नदी जल एवं नदी भूमि सम्बन्धी अतिरिक्त विवादों को निपटाने के लिए नदी बेसिन संगठन गठित करने पर भी बल दिया गया।

राष्ट्रीय जल बोर्ड --- राष्ट्रीय जल नीति के कार्यान्वयन की प्रगति की समीक्षा करने और इसकी जानकारी समय-समय पर राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् को देने के लिए जल संसाधन मन्त्रालय के सचिव की अध्यक्षता में भारत सरकार ने सितम्बर, 1990 में राष्ट्रीय जल बोर्ड का गठन किया।

राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय (एम आर सीडी) --- राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, राज्य सरकारों को सहायता देकर राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एम आर सी पी) एवं राष्ट्रीय झील संरक्षण योजना (एन एस सी पी) के अन्तर्गत नदी एवं झील कार्य योजनाओं के क्रियान्वयन में लगा हुआ है। नदियाँ हमारे देश में पानी का मुख्य स्रोत हैं। अतः पानी की गुणवत्ता में सुधार लाकर ही उसे प्रयोग करने व पीने योग्य बनाया जा सकता है व जल संकट से बचा जा सकता है।

भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण की सलाहकार परिषद् का गठन --- सरकार ने वर्ष 2006 में जल संसाधन मन्त्री की अध्यक्षता में भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण की सलाहकार परिषद् का गठन किया। इस परिषद् का मुख्य कार्य सभी हितधारियों में भूजल की कृत्रिम पुनर्भरण की संकल्पना को लोकप्रिय बनाया है।

भूमि जल संवर्धन पुरस्कार और राष्ट्रीय जल पुरस्कार --- जल संसाधन मन्त्रालय ने वर्ष 2007 में 18 भूमि जल संवर्धन पुरस्कार शुरू किए, जिसमें एक राष्ट्रीय जल पुरस्कार भी है। इन पुरस्कारों को प्रदान करने का एकमात्र उद्देश्य लोगों को वर्षा जल का संचयन और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के जरिए भूमि जल संवर्धन के लिए प्रेरित करना है।

मिशन क्लीन गंगा --- गंगा नदी को बचाने हेतु वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया था। इसकी प्रथम बैठक में गंगा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए 'मिशन क्लीन गंगा' नामक महत्त्वाकांक्षी परियोजना आरम्भ करने का निर्णय लिया गया। इस मिशन का मुख्य लक्ष्य सीवेज जल का शोधन करना और औद्योगिक कचरे को गंगा में मिलने से रोकना है, ताकि निकट भविष्य में जल संकट से बचा जा सके।

राष्ट्रीय जल नीति 2012 --- इस नीति में नदी के एक भाग को पारिस्थितिकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संरक्षित करने का प्रावधान है। इसमें प्रावधान किया गया है, कि गंगा नदी में वर्ष भर जल स्तर को बनाए रखने के लिए एक स्थान पर पानी जमा को रोकना होगा, जिससे नागरिकों को स्वच्छता और स्वास्थ्य हेतु पीने योग्य पानी की आपूर्ति हो सके। भारत सरकार ने नई जल नीति का मसौदा तैयार करने हेतु नवम्बर, 2019 में मिहिर शाह समिति का गठन किया।

राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उपमिशन --- 22 मार्च, 2017 को इस मिशन की शुरुआत केन्द्र सरकार द्वारा की गई। पेयजल में आर्सेनिक एवं फ्लोराइड की समस्याओं से निपटने हेतु इस मिशन की शुरुआत की गई, जिसका उद्देश्य हर घर को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना है।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम पुनर्संरचना --- इसको नवम्बर, 2017 में स्वीकृति प्रदान की गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य फ्लोराइड और आर्सेनिक प्रभावित समस्त ग्रामीण जनसंख्या को मार्च, 2021 तक स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना है। इसके अतिरिक्त जल संकट की समस्या से निजात पाने हेतु जल संरक्षण को प्रोत्साहित एवं प्रेरित किया जा रहा है।

जल शक्ति अभियान --- इसकी शुरुआत जुलाई, 2019 में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य महात्मा गाँधी ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना और ग्रामीण विकास मंत्रालय के एकीकृत जल संभरण प्रबन्धन कार्यक्रम के साथ-साथ जल शक्ति मंत्रालय द्वारा संचालित जल पुनर्भरण और वनीकरण योजनाओं के अंतर्गत जल संचयन संरक्षण गतिविधियों में तेजी लाना है।

जल जीवन मिशन --- इसकी शुरुआत अगस्त, 2019 में हुई। इसका उद्देश्य भारत की जल सुरक्षा सुनिश्चित करना, पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना तथा वर्ष 2024 तक हर घर में स्वच्छ पानी की आपूर्ति करना आदि है।

अटल भू-जल योजना --- इसकी शुरुआत दिसम्बर, 2019 में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य जल संकट के समाधान हेतु प्राथमिकता वाले 7 राज्यों (गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश) में जन भागीदारी के माध्यम से भू-जल प्रबन्धन में सुधार लाना है।

जल संकट के समाधान हेतु अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास

जल संकट के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास के रूप में यूनाइटेड नेशन्स वर्ल्ड वाटर डेवलपमेण्ट रिपोर्ट 2017 द्वारा अपशिष्ट जल प्रबन्धन हेतु 4R रणनीति सुझाई गई है, जिसमें रिड्यूसिंग, रिमूविंग, रियूजिंग और रिकवरी शामिल हैं। इसके अन्तर्गत अपशिष्ट जल प्रवाह को न्यूनतम करने, अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियों की कम लागत वाली विकेन्द्रीकृत प्रणाली अपनाने, जल की उपलब्धता बढ़ाने एवं जल की कमी को पूरा करने तथा अपशिष्ट जल से जैव ईंधन, बायोगैस, ऊष्मा और विद्युत उत्पादन के रूप में ऊर्जा पुनः प्राप्ति करने की बात कही गई है।

वर्तमान में सतत विकास पर्यावरण नीति और अन्तर्राष्ट्रीय विकास का मार्गदर्शक सिद्धान्त बन गया। अतः सतत् विकास लक्ष्य 6 के अंतर्गत वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिए पानी की उपलब्धता और स्थायी प्रबन्धन करना निर्धारित किया गया है। अत: इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जल संरक्षण सम्बन्धी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियाँ, कार्यक्रम व योजना बनाई है, जो संचालित है।

निष्कर्ष 

मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का सन्तुलन बिगाड़ा है और अपने लिए भी खतरे की स्थिति उत्पन्न कर ली है। अब प्रकृति का श्रेष्ठतम प्राणी होने के नाते उसका कर्त्तव्य बनता है कि वह जल संकट की समस्या के समाधान के लिए जल संरक्षण पर बल दे। जल मनुष्य ही नहीं पृथ्वी के हर प्राणी के लिए आवश्यक है, इसलिए जल को जीवन की संज्ञा दी गई है।

यदि जल की समुचित मात्रा पृथ्वी पर न हो, तो तापमान में वृद्धि के कारण भी प्राणियों का जीना कठिन हो जाएगा। इस समय जल प्रदूषण एवं अन्य कारणों से उत्पन्न जल संकट के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है, इसलिए अपने अस्तित्व की ही नहीं, बल्कि पृथ्वी की रक्षा के लिए भी उसे इस जल संकट का समाधान शीघ्र ही करना होगा और इस समस्या के समाधान के लिए उसे जल-संरक्षण के महत्त्व को स्वीकार करते हुए इसके लिए आवश्यक कार्यों को अंजाम देना होगा, तभी मानव सहित सभी जीवों को स्वच्छ जल उपलब्ध हो पाएगा और उनका अस्तित्व सुरक्षित रह पाएगा।

जल संकट पर निबंध Pdf

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अंतिम शब्द

यहा पर हमने जल संकट पर निबंध को बिल्कुल विस्तार से समझा। इस लेख में हमने जो essay on water crisis in hindi आपके साथ शेयर किया है, वो कक्षा 5 से 12 के बिच में किसी भी क्लास के स्टूडेंट के लिये सहायक है। और साथ ही उच्च स्तर की परीक्षा यानी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को भी यहा पर शेयर किये गए जल संकट पर निबंध से काफी मदद मिल सकता है। हमें आशा है कि आपको यह निबंध जरुर पसंद आया होगा और हम उमीद करते है की इस लेख की सहायता से जल संकट पर निबंध कैसे लिखें? आप बिल्कुल अच्छे से समझ गए होंगे। यदि आपके मन में इस निबंध से सम्बंधित कोई प्रश्न हो, तो आप नीचे कमेंट करके पुछ सकते है। साथ ही इस निबंध को आप अपने भाई, बहन और मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करे।

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