बाढ़ पर निबंध हिंदी में 2023 | Essay On Flood In Hindi [ PDF ]

Essay On Flood In Hindi

इस लेख में हम (बाढ़ पर निबंध) के बारे में विस्तार से समझेंगे, जोकी कक्षा 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है। तो, यदि आप कक्षा 5 से 12 तक किसी भी क्लास के छात्र हैं और essay on flood in hindi ढूंढ रहे हैं, तो यहां साझा किया गया बाढ़ पर निबंध आपके लिए ही है, आप इसे अच्छे से पढ़ सकते हैं।

इसके अलावा अगर आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं छात्रों में से है, तो आपके लिये भी यह Flood Essay In Hindi काफी मददगार साबित हो सकता है। क्योंकि बाढ़ से सम्बंधित बहुत से प्रश्न प्रतियोगी परीक्षा  में भी पूछे जाते हैं, ऐसे में अगर आप इस निबंध को अच्छे से पढ़े रहेंगे, तो इससे आपको परीक्षा में काफी मदद मिलेगी।

और अक्सर छोटी कक्षा के विद्यार्थियों को उनके स्कूल से होम वर्क के रूप में बाढ़ पर निबंध याद करके या लिख कर आने के लिए कहा जाता है। तो, अगर आप भी उन छात्रों में से हैं जिन्हें ऐसा होमवर्क मिला है, तो आप इस लेख में दिए गए बाढ़ पर निबंध की सहायता से अपना होमवर्क बहुत ही असानी से पूरा कर सकते हैं।

आपको बता दे की, इस बाढ़ के निबंध में हम बाढ़ से सम्बंधित ऐसे बहुत से महत्वपूर्ण प्रश्नों को समझेंगे, जो परीक्षाओं के लिये इम्पोर्टेन्ट है जैसे की- बाढ़ का प्रभाव, बाढ़ का कारण, भारत में बाढ़ की समस्या और समाधान, बाढ़ से बचाव के उपाय, बाढ़ के दुष्परिणाम आदि। तो अगर आप बिल्कुल विस्तार से Essay On Flood In Hindi को समझना चाहते है तो, इस लेख को आप पूरे अन्त तक अवश्य पढ़े।


बाढ़ पर निबंध इन हिंदी (Flood Essay In Hindi)

भारत हर प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों एवं मानव संसाधनों से सम्पन्न देश है। इसकी प्रचुर सम्पदा इसे अमेरिका, चीन व अन्य विकसित देशों की तरह आर्थिक दृष्टि से महाशक्ति बनाने के लिए पर्याप्त है, किन्तु भारत को समय-समय पर अनेक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, जो देश के आर्थिक विकास की गति को अवरुद्ध कर देता है। इन प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ एक प्रमुख प्राकृतिक आपदा है, जिसका सामना भारत को प्रत्येक वर्ष करना पड़ता है। 

चारों ओर जल-प्रलय का दृश्य, जिसमें खेत-के-खेत बहे जा रहे हों, मरे हुए मवेशियों की लाशें डूबती नजर आ रही हों, लोग अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में पानी में तैरते हुए नजर आ रहे हों, ये दृश्य बाढ़ की विभीषिका को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। अपेक्षित वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद भी प्राकृतिक आपदाओं पर मानव अब तक भी पूरी तरह नियन्त्रण कर पाने में कितना अक्षम है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बाढ़ के दौरान दिखाई पड़ता है।

बाढ़ एवं उसका प्रभाव क्षेत्र

बाढ़ की विभीषिका के बारे में चर्चा करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि बाढ़ वास्तव में, है क्या ? दरअसल, जब बरसात के मौसम में नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती है, तो इसके कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। नदियों का पानी तीव्र वेग के साथ निचले क्षेत्रों में भर जाता है। नदियों के आस-पास के क्षेत्रों में भी पानी जमा हो जाता है। नदी के आस-पास के क्षेत्रों में पानी जमा होने की यह स्थिति ही बाढ़ कहलाती है। 

प्रत्येक वर्ष जून से सितम्बर के महीने तक भारत में अत्यधिक वर्षा होती है। इसलिए इसी अवधि के दौरान देश के अधिकतर हिस्सों में बाढ़ का कहर देखने को मिलता है। बाढ़ की विभीषिका का दृश्य बहुत भयावह होता है। चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल होता है। लोग अपनी जान बचाने का विफल प्रयास करते नजर आते हैं। चारों ओर जल जमाव हो जाने के कारण पानी में तैरते हुए उनके लिए भागना भी कठिन हो जाता है। जल-प्रवाह तेज होने या नदियों के तटबन्ध टूटने से आई बाढ़ में लोगों को अपनी जान बचाने का भी मौका नहीं मिलता। मिट्टी तथा खपरैल से बने घर ताश के पत्तों की तरह बाढ़ के पानी में बहते नजर आते हैं।

चारों ओर चीख-पुकार की आवाजें सुनाई देती हैं। लोग जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की शरण लेते नजर आते हैं। ऊँचा स्थान न मिलने की स्थिति में लोगों को पेड़ों पर भी शरण लेने को विवश होना पड़ता है। खुले आसमान के नीचे बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में रहना मौत को दावत देने जैसा ही होता है।

ऐसी विपदा की स्थिति में नदी में जान बचाने के लिए तैरते साँप दुःख एवं भय को और बढ़ा देते हैं। सरकार द्वारा लोगों को बचाने के लिए नावों एवं हेलीकॉप्टरों से खाद्य सामग्री उन तक पहुँचाने का प्रबन्ध भी किया जाता है। लोग इन खाद्य सामग्रियों पर जानवरों की भाँति टूट पड़ते हैं। इस प्रकार, बाढ़ की विभीषिका मानव को पशु बनने के लिए विवश कर देती है। लोग अपनी जान बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।

जहाँ एक ओर बाढ़ अपने साथ कहर लाती है, वहीं बाढ़ से एक लाभ भी है। इसके साथ आने वाली उपजाऊ मिट्टी से नदियों के आस-पास का क्षेत्र उर्वर हो जाता है, किन्तु यह लाभ इससे होने वाली हानियों की तुलना में नगण्य है। इससे होने वाली हानियों की क्षतिपूर्ति करना बाद में काफी कष्टदायी होता है। बाढ़ से धन-जन की अपार हानि होती है। 

सड़कें टूट जाती हैं रेलमार्ग अवरुद्ध हो जाता है। सड़कों एवं रेलमार्गों के अवरुद्ध, होने से यातायात एवं परिवहन बाधित होता है, जिससे जन-जीवन ठप हो जाता है। इस प्रकार, एक ओर तो लोग बाढ़ से परेशान रहते हैं, दूसरी ओर उन तक खाद्य सामग्री की पहुँच भी मुश्किल हो जाती है। बाढ़ के कारण लाखों एकड़ क्षेत्र की फसल बर्बाद हो जाती है। 

बाढ़ में मवेशियों के बह जाने से पशु संसाधन की हानि तो होती ही है, साथ-ही-साथ कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बाढ़ में तटबन्ध टूटने की स्थिति में बड़ी-बड़ी बस्तियाँ अचानक उजड़ जाती हैं। इस तरह, बाढ़ के कारण लोगों को अपने घरों से भी हाथ धोना पड़ता है। जिस कारण लोग विस्थापित हो जाते हैं।

बाढ़ का कारण

▪︎ बाढ़ की इस विपदा से देश के जन और धन को बचाने के लिए आज यह आवश्यक हो गया है कि भारत में बाढ़ के प्रमुख कारणों पर गहन दृष्टि डालें, क्योंकि तभी बाढ़ से निपटने की दिशा में उठाया गया कोई कदम प्रभावकारी होगा।

▪︎ भारत में अत्यधिक वर्षा बाढ़ का एक प्रमुख कारण है, विशेष रूप से कम समय में अधिक वर्षा बहुत चिन्ता का विषय है। उदाहरणस्वरूप, जून 2013 में उत्तराखण्ड में हुई भारी वर्षा एवं तबाही का दृश्य आज भी लोगों के मन में डर पैदा कर देता है।

▪︎ इसके अतिरिक्त भारी वर्षा से नदी में उफान आना बाढ़ का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। कभी-कभी निरन्तर वर्षा से विस्तृत क्षेत्र का पानी छोटी नालियों, नालों से प्रवाहित होता हुआ अन्तत: नदी में मिल जाता है, जिससे नदियों का जल अपने किनारों को तोड़ता हुआ आस-पास के विस्तृत क्षेत्र को जलमग्न कर देता है।

▪︎ हिमगलन बढ़ जाना बाढ़ का तीसरा प्रमुख कारण है। इससे विशेष रूप से उत्तर भारत में हिमालय से निकलने वाली नदियों; जैसे – गंगा, यमुना, कोसी और ब्रह्मपुत्र इत्यादि में हिमालय के बर्फ के बहुत अधिक मात्रा में पिघलने से बाढ़ आती है। नदियों में पानी के बहाव से लाई गई मिट्टी या रेत देश में बाढ़ का एक अन्य प्रमुख कारण है। नदियों की तलहटी में पानी के बहाव से जमी हुई मिट्टी या रेत नदियों की जलवहन क्षमता को कम कर देती है, जिससे नदी के आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या पैदा हो जाती है।

▪︎ अवरुद्ध नालियाँ शहरी क्षेत्रों में विशेषत: महानगरों में बाढ़ का प्रमुख कारण हैं। उदाहरणस्वरूप दिसम्बर, 2015 में जल निकासी व्यवस्था की विफलता के कारण चेन्नई में आई बाढ़ तथा पटना में वर्ष 2019 में आई बाढ़ प्रमुख हैं।

▪︎ ग्लोबल वार्मिंग भी बाढ़ का एक प्रमुख कारण है। इसके कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और साथ ही पृथ्वी का वातावरण बदल रहा है, जिस कारण कहीं पर सूखा पड़ता है, तो कहीं पर बहुत अधिक मात्रा में वर्षा होती है। पृथ्वी का तापमान बढ़ जाने के कारण ग्लेशियरों पर बर्फ के रूप में जमा लाखों लीटर पानी पिघलने लगता है, जिसके कारण बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है।

▪︎ चक्रवातों के कारण होने वाली अत्यधिक वर्षा भी बाढ़ का एक प्रमुख कारण है। यह मुख्यत: तटीय क्षेत्रों में आती है।

बाढ़ के दुष्परिणाम

अधिक बाढ़ आने से भयंकर तबाही होती है। इसका लेखा-जोखा रखना इतना आसान नहीं होता, क्योंकि यह बहुत दिनों तक तबाही मचाती है। इसमें बाढ़ आने पर भी हानि होती है और बाढ़ का पानी सूख जाने पर भी। इसके दुष्परिणाम निम्न हैं

जन-हानि
बाढ़ के आने के कारण एक क्षेत्र विशेष पूरा पानी में डूब जाता है, जिस कारण वहाँ रहने वाले कई लोगों एवं पशुओं की मृत्यु हो जाती है।
धन-हानि
बाढ़ के प्रभाव के कारण चारों ओर जल ही जल होता है, जिससे वहाँ पर होने वाले उद्योग धन्धे बन्द हो जाते हैं, साथ ही कई लोगों की जीवनभर की पूँजी द्वारा बनाए गए मकान और इमारतें ढह जाती हैं और भी बहुत-सी कीमती वस्तुएँ खराब हो जाती हैं, जिससे आर्थिक हानि होती है।
फसलों का बर्बाद हो जाना
बाढ़ के कारण किसानों द्वारा बोई गई पूरी फसल खराब हो जाती है, जिस कारण खाने-पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं। किसानों की फसल नष्ट होने के कारण वे और भी गरीब हो जाते हैं, उनको खाने-पीने का भी अभाव हो जाता है।
जल का प्रदूषित होना
बाढ़ के कारण पानी में तरह-तरह के रसायनों और नाले का पानी मिल जाता है, जिसके कारण स्वच्छ जल की आपूर्ति नहीं हो पाती और वहाँ के लोग दूषित जल के कारण रोगग्रस्त या उनकी मृत्यु भी हो जाती है।
मिट्टी का कटाव
बाढ़ आने से खेतों की उपजाऊ मिट्टी बह जाती है, जिसके कारण बाढ़ के पश्चात वहाँ पर अच्छी फसल नहीं हो पाती है, साथ ही कई स्थानों पर बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते हैं।
सड़कों का टूटना
जिस क्षेत्र में बाढ़ आती है, वहाँ की सारी सड़कें बाढ़ के कारण या तो टूट जाती हैं या फिर बाढ़ के पानी के साथ बह जाती हैं, जिसके कारण वहाँ पर कई माह तक यातायात प्रभावित होता है। सड़कें नहीं होने के कारण लोगों को कई प्रकार की परेशानियाँ होती हैं।
चिकित्सा सुविधा का अभाव
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बाढ़ के पानी के कारण सभी अस्पताल पानी में डूब जाते हैं, जिसके कारण वहाँ पर चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं और बीमार लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं।
महामारी का खतरा
जब बाढ़ का पानी सूख जाता है, तब वहाँ पर मलेरिया, डेंगू एवं दूषित जल एवं भोजन से होने वाली कई बीमारियाँ होने का खतरा पैदा हो जाता है और अकसर बाढ़ के बाद ये बीमारियाँ अवश्य फैलती हैं, इसलिए सदैव सजग एवं सुरक्षित रहने का प्रयास करना चाहिए।

भारत में बाढ़ नियन्त्रण हेतु किए गए उपाय

भारत सरकार एवं राज्य सरकारें बाढ़ की विभीषिका को कम करने के लिए योजना काल से ही प्रयत्नशील हैं। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में इसके लिए अलग से धन की व्यवस्था की जाती है। इस दिशा में किए गए प्रयासों का संक्षिप्त विवरण निम्न है 

राष्ट्रीय बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम --- वर्ष 1954 में आई भीषण बाढ़ के बाद भारत सरकार ने एक राष्ट्रीय बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम की घोषणा की। यह कार्यक्रम तीन चरणों में विभाजित किया गया है - तात्कालिक, अल्पकालिक और दीर्घकालिक। इस योजना के अन्तर्गत अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाने और निचले क्षेत्रों में बसे लोगों को ऊँचाई वाले स्थानों पर लाने तथा जल निकास की उचित व्यवस्था का प्रावधान किया गया है।

जलाशयों का निर्माण --- जिन नदियों की निचली धाराओं में सर्वाधिक एवं विनाशकारी बाढ़ आती है, उन पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर जलाशयों में वर्षा के पानी को रोकने की व्यवस्था की गई है। इन वृहत् परियोजनाओं में महानदी पर हीराकुड बाँध, दामोदर नदी घाटी परियोजना, सतलुज पर भाखड़ा बाँध, व्यास नदी पर पोंग बाँध तथा ताप्ती नदी पर उकाई बाँध आदि प्रमुख हैं।

समुद्री क्षेत्रों में बाढ़ नियन्त्रण --- केरल, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के समुद्र तटीय क्षेत्रों में समुद्री बाढ़ आती है। समुद्री तटों पर क्षरण को रोकने के लिए कई परियोजनाएँ प्रारम्भ की गई हैं। केरल राज्य में सर्वाधिक प्रभावित 320 किमी लम्बे समुद्री तट को मार्च, 1990 के अन्त तक प्रतिरक्षित कर लिया गया था। इसी प्रकार कर्नाटक राज्य में मार्च, 1990 के अन्त तक 73.3 किमी लम्बे समुद्र तट को सामुद्रिक क्षरण से रोकने हेतु बचाव कार्य किए गए तथा वर्तमान में भी पहल जारी है।

बाढ़ का पूर्वानुमान एवं चेतावनी --- बाढ़ प्रबन्ध हेतु पूर्वानुमान लगाना और पहले से चेतावनी देना महत्त्वपूर्ण तथा किफायती उपायों में से एक है। भारत में यह कार्य वर्ष 1959 से ही किया जा रहा है।

ब्रह्मपुत्र बाढ़ नियन्त्रण बोर्ड --- ब्रह्मपुत्र और बराक नदी घाटी देश में बाढ़ से प्रभावित होने वाले प्रमुख क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में बाढ़ नियन्त्रण का मास्टर प्लान तैयार करने और इसे कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने संसद के एक अधिनियम द्वारा वर्ष 1980 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड गठित किया है।

बाढ़ प्रबन्धन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम --- इसे बाढ़ प्रबन्धन कार्यक्रम तथा नदी प्रबन्धन गतिविधियों और सीमावर्ती क्षेत्रों से सम्बन्धित कार्य योजना को विलय कर बनाया गया है। इसके अंतर्गत प्रभावी बाढ़ प्रबन्धन, भू-क्षरण से शहरों, गाँवों औद्योगिक प्रतिष्ठानों, समुद्र तटीय क्षेत्रों के क्षरण की रोकथाम की जाती है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन --- भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण एवं राष्ट्रीय आपदा मोचन बल का गठन किया गया है, जो बाढ़ में लोगों को बचाने में सहायता करता है एवं राहत सामग्रियाँ पहुँचाता है।

राष्ट्रीय जल नीति 2012 --- इसमें बाढ़ व सूखा दोनों के प्रबन्धन सम्बन्धी प्रावधान किए गए हैं। इसमें बाढ़ से निपटने हेतु प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली, तटबंधों सम्बन्धी प्रावधान, नदी बेसिन हेतु मॉडल विकसित करने आदि हेतु कई प्रावधान किए गए हैं।

नदी जोड़ो परियोजना --- यह जलापूर्ति के साथ बाढ़ नियन्त्रण में भी सहायक है। इसके तहत केन-बेतवा लिंक परियोजना को पूरा कर लिया गया है। 

इसके अतिरिक्त राज्य स्तर पर राज्य ने भी इस दिशा में कई पहल की हैं; जैसे - उड़ीसा द्वारा वर्ष 2019 में निर्मित बाढ़ अनुमान एटलस। यह बाढ़ प्रबन्धन हेतु नई रूपरेखा तैयार करने में सहायक है।

बाढ़ नियन्त्रण हेतु कुछ अन्य सुझाव

बाढ़ नियन्त्रण हेतु दो प्रकार के उपाय अपनाने होंगे

▪︎ निरोधात्मक उपायों का सम्बन्ध ऐसे दीर्घकालिक एवं स्थायी उपायों से होता है, जिन्हें अपनाने से बाढ़ एवं जल के आप्लावन की स्थिति उत्पन्न न होने देने में सहायता मिलेगी। इसके लिए नदियों, सहायक नदियों तथा नालों पर जगह-जगह चेक डैम बनाकर जलाशयों का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि वर्षा के जल नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में ही प्रभावपूर्ण ढंग से रोका जा सके। 

निरोधात्मक उपायों में दूसरे वर्ग में वे उपाय आते हैं, जिन्हें अपनाकर बाढ़ के पानी को क्षेत्र विशेष में प्रवेश करने से रोका जा सकता है। यह विधि नदियों के किनारे बसे नगरों, कस्बों, ग्रामों को बाढ़ की विभीषिका से बचाने के लिए अधिक उपयोगी होती है।

▪︎ बाढ़ नियन्त्रण का दूसरा पहलू बचाव एवं राहत तथा पुनर्वास कार्यों से सम्बन्धित है। उपग्रहों से प्राप्त चित्रों एवं अन्य पैरामीटरों का प्रयोग करके अब बहुत पहले से क्षेत्र विशेष में भारी वर्षा तथा बाढ़ आदि आने के बारे में चेतावनी दी जा सकती है। बाढ़ से घिरे लोगों को यथाशीघ्र निकालने एवं उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने, राहत सामग्री उपलब्ध कराने की व्यवस्था युद्ध स्तर पर की जानी चाहिए। बाढ़ के बाद महामारियों को रोकने के लिए उचित चिकित्सा प्रबन्ध किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष 

अत: बाढ़ प्राकृतिक आपदा हो सकती है और विकास प्रक्रिया के कतिपय दोषों के कारण इसका स्वरूप विकराल भी हो सकता है, लेकिन इस पर नियन्त्रण करने का कार्य कठिन होते हुए, भी असम्भव नहीं है। सुव्यवस्थित आयोजन एवं कार्यनीति को अपनाकर ऐसी स्थितियाँ पैदा की जा सकती हैं कि बाढ़ एवं जल प्लावन की स्थिति उत्पन्न ही न हो। अब तो ऐसी तकनीक का विकास हो गया है, जिसका प्रयोग करके दो या तीन दिन पूर्व ही अधिकाधिक वर्षा होने या बाढ़ आने की चेतावनी देकर लोगों को बाढ़ के खतरे से बचाया जा सकता है तथा बहुत बड़ी सीमा तक बाढ़ से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है। बशर्ते इसके लिए सफल एवं कुशल प्रबन्धकीय कार्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता होती है।

बाढ़ पर निबंध Pdf Download

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अंतिम शब्द

यहां पर हमने essay on flood in hindi को काफी विस्तार से देखा। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों और कक्षा 5 से 12 तक के छात्रों के लिए यहां साझा किया गया बाढ़ पर निबंध काफी उपयोगी है। यह लेख आपको कैसा लगा, कमेंट के माध्यम से आप अपना अनुभव हमारे साथ जरुर साझा करे। हम आशा करते है की आपको यह लेख पसंद आया होगा और इस लेख की सहायता से बाढ़ पर निबंध कैसे लिखें? आप बिल्कुल अच्छे से समझ गए होंगे। यदि आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल है, तो आप नीचे कमेंट करके पुछ सकते हैं। और साथ ही इस लेख को आप अपने सभी मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करें।

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