हिंदी दिवस पर निबंध 2023 | Essay On Hindi Diwas [ PDF ]

Essay On Hindi Diwas

इस लेख में हम हिंदी दिवस पर निबंध को विस्तार से देखेंगे। जो कक्षा 6, 7, 8, 9, 10 11 और 12 में पढ़ने वाले छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी हो सकता है। इसलिए, यदि आप कक्षा 6 से 12 तक किसी भी कक्षा के छात्र हैं और आप hindi diwas par nibandh की तलाश में हैं, तो यह लेख आपके लिए ही है। क्योंकि यहां हमने essay on hindi diwas को बिल्कुल विस्तार से सरल भाषा में साझा किया है, जिसे आप आसानी से पढ़ कर समझ सकते हैं।

इसके अलावा यह निबंध उन छात्रों के लिये भी फायदेमंद साबित हो सकता है जो, इस समय किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है। ऐसा इसलिए, क्योकी हिंदी दिवस से जुड़े कई ऐसे प्रश्न भी है जो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में पुछा जा सकता है। और इस निबंध में उन सभी प्रश्नों को सामिल किया गया है जैसे की, हिंदी दिवस का महत्व क्या है, हिंदी दिवस कब से शुरू हुआ, हिंदी हमारी मातृभाषा क्यों है आदि। ऐसे ही और भी बहुत से प्रश्नों के उत्तर आपको इस निबंध में विस्तार से मिल जायेंगे, इसलिए अगर आप hindi diwas par nibandh को एकदम अच्छे से समझना चाहते है, तो  इस लेख को पुरा जरुर पढ़े। 

इस निबंध में हम हिंदी दिवस से सम्बंधित इन बिंदुओं पर विस्तार से बात करेंगे (1) हिंदी दिवस का महत्व (2) संविधान के अनुसार हिंदी की स्थिति (3) राजनीति , प्रांतीमता और अंग्रेजी पत्रों का हिंदी पर प्रभाव (4) हिंदी का विरोध (5) उपसंहार।

नोट -- छात्रों की सुविधा के लिये, इस लेख के अन्त में हिंदी दिवस पर निबंध का पीडीएफ फ़ाईल भी दिया गया है, जिसे आप असानी से डाउनलोड कर सकते है।

हिंदी दिवस पर निबंध 2023 (Hindi Diwas Par Nibandh)

प्रतिवर्ष चौदह सितम्बर को मनाया जाने वाला हिन्दी दिवस हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने का गौरव और गर्वपूर्ण दिन है। हिन्दी के प्रति निष्ठा व्यक्त करने का दिन है। विश्व भर में हिन्दी चेतना जागृत करने का दिन है। हिन्दी की वर्तमान स्थिति का सिंहावलोकन कर उसकी प्रगति पर विचार करने का दिवस है। हिन्दी दिवस एक पर्व है। हिन्दी के हक में प्रदर्शिनी, मेले, गोष्ठी, सम्मेलन तथा समारोह आयोजन का दिन है। हिन्दी सेवियों को पुरस्कृत तथा सम्मानित करने का दिन है। 

सरकारी-अर्ध सरकारी कार्यालयों तथा बड़े उद्योगों में हिन्दी सप्ताह और हिन्दी पखवाड़ा द्वारा हिन्दी मोह प्रकट करने का दिवस है। संविधान सभा ने 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया। संविधान के अनुच्छेद 343 में लिखा गया 'संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अन्तरराष्ट्रीय रूप होगा' किन्तु अधिनियम के खंड (2) में लिखा गया 'इस संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा, जिसके लिए इसके लागू होने में तुरन्त पूर्व होता था।' 

अनुच्छेद की धारा (3) में व्यवस्था की गई – 'संसद् उक्त पन्द्रह वर्प की कालावधि के पश्चात् विधि द्वारा - (क) अंग्रेजी भाषा का (अथवा) अंकों के देवनागरी रूप का ऐसे प्रयोजन के लिए प्रयोग उपबन्धित कर सकेगी जैसे कि ऐसी विधि में उल्लिखित हो।' इसके साथ ही अनुच्छेद (1) के अधीन संसद की कार्यवाही हिन्दी अथवा अंग्रेजी में सम्पन्न होगी। 26 जनवरी, 1965 के पश्चात् संसद की कार्यवाही केवल हिन्दी (और विशेष मामलों में मातृभाषा) में ही निष्पादित होगी, बशर्ते संमद् कानून बनाकर कोई अन्यथा व्यवस्था न करे।

प्रभु राम को चौदहवर्ष का वनवास हुआ था और पाँडवों को बारह वर्ष का, किन्तु हिन्दी को 15 वर्ष का वनवास मिला। पाँडवों के वनवास के साथ एक वर्षीय अज्ञातवास की शर्त थी , उसी प्रकार हिन्दी के साथ समृद्धि की शर्त थी। महाभारत के दुर्योधन ने हट किया कि उसने पाँडवों को अज्ञातवास में पहचान लिया है, अतः उन्हें पुनः वनवास दिया जाए, पर उसकी गलतफहमी को किसी ने स्वीकार नहीं किया। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने हिन्दी के 15 वर्षीय वनवासी काल में हिन्दी की पहचान कर सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन करवा दिया।

'जब तक भारत का एक भी राज्य हिन्दी का विरोध करेगा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ नहीं किया जाएगा।' यह लोकतंत्र के मुँह पर तानाशाही का जोरदार तमाचा था जो माँ भारती के चेहरे को आज भी कलंकित पीड़ित कर रहा है। थी किसी कांग्रेसी राजनीतिज्ञ में हिम्मत जो पं. नेहरू का विरोध करता? माँ भारती के एक सच्चे सपूत कांग्रेसी सेठ गोविन्ददास ने ही संसद में इस संशोधन विधेयक के विरोध में मत दिया।

हिन्दी को उसका वर्चस्व प्राप्त न हो इसके लिए संविधानेतर कार्य भी जरूरी थे। पं. नेहरू तथा उनके कांग्रेसी प्रबल समर्थकों ने 'फूट डालो और राज्य करो' की नीति अपनाते हुए 'हिन्दी बनाम प्रांतीय भाषाओं का विवाद खड़ा कर दिया। भारत राष्ट्र को दो भागों में विभक्त कर दिया-उत्तर (हिन्दी पक्षधर) और दक्षिण (हिन्दी विरोधी)। हिन्दी उत्तर दक्षिण के विवाद में फँसकर 'सैंडविच' हो गई और अंग्रेजी इस उत्तर दक्षिण के झगड़ों में देश की एकता बनाए रखने के लिए एकमात्र विकल्प बन गई। 

प्रांतीयता के मोह ने राष्ट्रीयता को डस लिया। आज उसी विष का परिणाम है कि केन्द्रीय राजनीति पर प्रांतीयता हावी है। हिन्दी आज ईस्वी सन् 2000 में प्रवेश करते हुए भी वनवासिनी ही है। दूसरी ओर हिन्दी के प्रति अंग्रेजी - पत्रों और कूटनीतिज्ञों ने खुलकर व्यंग्य वाण मारे। उसे हिन्दी हिण्टर लैंड (हिन्दी का अन्दरूनी क्षेत्र), हिन्दी बैक वाटर्स (ठहरे हुए पानी जैसा हिन्दी क्षेत्र) काऊबेल्ट (गाय-बैलों का क्षेत्र) 'इंडियाज गटर' (देश की नाली) और टैकनीकल बैकवर्ड (तकनीकी दृष्टि से पिछड़ा हुआ) कहा जाता है।

हिन्दी भाषियों को 'धर्मान्ध जीलरस' तथा 'फेनेटिक' की संज्ञा दी गई है। सर्वश्री खुशवंतसिंह, रक्षत पुरी, अनीता मलिक और सुनील एडम्स जैसे विद्वान् और अंग्रेजी पत्रकार यह भूल जाते हैं कि हिन्दी वैज्ञानिक और व्यवस्थित भाषा है। यह पूरी तरह से ध्वन्यात्मक (फोनेटिक) है और इन्टरनेशनल फोनेटिक एल्फाबेट (अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला) के अत्यन्त समीप मानी जाती है। 

विश्व के सैंतीस देशों के 110 विश्वविद्यालयों में इसके उच्चस्तरीय अध्ययन की व्यवस्था है। - अनेक हिन्दी विरोधी और हिन्दी पक्षधर हिन्दी की क्लिष्टता का रोना रोते हैं। पर वे भूल जाते हैं कि बोलचाल और साहित्यिक भाषा में अन्तर होता है। भावाभिव्यक्ति और रसानुभूति साहित्यिक भाषा की शर्त है। यदि सरलीकरण के नाम पर हिन्दी के मूल रूप को ही बिगाड़ दिया जाए तो वह संस्कृत से कटकर अलग होने पर विकृत हो जाएगी, हिन्दी हिन्दी न रहेगी।

बीसवीं सदी के अंत में हिन्दी के सरलीकरण के नाम पर हिन्दी के विद्वानों, लेखकों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा हिन्दी का संस्कृत से मूलोच्छेदन हिन्दी को विकृत करने का कुत्सित षड्यंत्र है। हिन्दी विरोध दर्शाना और हिन्दी पक्ष से आँखें मूंद लेना आज के राजनेताओं की विवशता है। हिन्दी क्षेत्र में गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्री हिन्दी के कट्टर समर्थक रहे हैं। सत्ता प्राप्ति के पश्चात् वे हिन्दी को भूल गए।

हिन्दी के प्रति उनकी वचनबद्धता पर उनकी राजनीतिक व्यूह रचना भारी पड़ गई। मुसलमानों का सहयोग पाने के लिए हिन्दी प्रेम न्यौछावर कर दिया। हिन्दी के चापलूस, स्वार्थी और भ्रष्ट अधिकारियों ने हिन्दी के विकास और समृद्धि के नाम पर अदूरदर्शिता और विवेकहीनता का परिचय दिया है। राजकीय कोश के अरबों खरबों रुपए खर्च करके भी हिन्दी का जो भला हुआ है, वह आटे में नमक बराबर है। जब साधन भ्रष्ट होगा तो साध्य कैसे शुद्ध होगा? हिन्दी प्रचार के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए की हिन्दी पुस्तकें खरीदी जाती हैं।

इस खरीद का मानदंड है, 'जिसे पिया चाहे वही सुहागन' और 'काली कलूटी से प्रेम हो गया तो वह पद्मिनी लगती है। 'इसलिए कहना होगा, इस घर को आग लग गई, घर के चिराग से। 'इस राजकीय सोच का ही परिणाम है कि साहित्यिक पत्रिका 'धर्मयुग' ने दम तोड़ दिया 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान 'स्वर्ग सिधार गया। 'आलोचना' और 'साहित्य - संदेश' अंग्रेजी की भीड़ में खो गए। साहित्यिक कृतियाँ हजार-दो हजार छपते-छपते 250-500 तक रह गईं। 

बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अंग्रेजी को कल्पवृक्ष सिद्ध किया है तो दूरदर्शन ने हिन्दी की 'अर्थी' उठाने की कसम खाई हुई है। हिन्दी दिवस पर माँ भारती की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाकर, धूप-दीप जलाकर, उसका गुणगान और कीर्तन करके हम अपने को कृत-कृत्य समझते हैं, पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हेतु उसकी व्यावहारिक आरती उतारने के लिए दैनिक जीवन-शैली में अपनाने और सोच बनाने से हम कतराते हैं। जिस दिन यह चेतना भारत के जन-जन की आत्मा में जागेगी,उस दिन हिन्दी की प्राण प्रतिष्ठा होगी, तभी हिन्दी दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी।

हिंदी दिवस पर निबंध PDF Download

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अंतिम शब्द

यहा पर हमने हिंदी दिवस पर निबंध को बिल्कुल अच्छे से समझा, जोकि पूरे 1000 शब्दों में था, यह निबंध कक्षा 6 से 12 तक के क्लास में पढ़ने वाले एवं प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी करने वाले छात्रों के लिये सहायक है। साथ ही अगर अगर आप कॉलेज के छात्र है, तो आपके लिये भी यह निबंध उपयोगी हो सकता हैं। क्योकी बहुत बार कॉलेज के छात्रों उनके प्रोजेक्ट वर्क में हिंदी दिवस पर निबंध लिखने को दिया जाता है, ऐसे में यदि आपके कॉलेज से भी इस प्रकार का प्रोजेक्ट कार्य मिला है, तो आप यहा दिये गए निबंध की सहायता से अपना प्रोजेक्ट कार्य असानी से पूरा कर सकते हैं।

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