बेरोजगारी पर निबंध : कारण एवं समाधान 2023 | Berojgari Par Nibandh

Essay On Unemployment In Hindi

इस लेख में हम बेरोजगारी पर निबंध को विस्तार से समझेंगे, यह निबंध कक्षा 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के छात्रों के लिए उपयोगी है। इसके साथ ही यदि आप बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो यह Berojgari par nibandh आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि बोर्ड परीक्षाओं में हिन्दी के विषय में "भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध" जैसे प्रश्न ज्यादातर पूछे जाते हैं, इसलिए अगर आप बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो आप इस निबंध को ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े।

और साथ ही अगर आपके स्कूल के टीचर ने आपसे होमवर्क के तौर पर बेरोजगारी पर निबंध लिखने को कहा है, तो आप इस लेख की मदद से अपना होमवर्क आसानी से पूरा कर सकते हैं। इसके अलावा यहां दिया गया unemployment essay in hindi उन सभी छात्रों के लिए भी बहुत ही उपयोगी है, जो किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।

ऐसा इसलिए क्योकी बहुत से प्रतियोगी परीक्षाओं में बेरोजगारी से सम्बन्धित प्रश्न भी पुछे जाते है जैसे की- बेरोजगारी का मतलब क्या है, बेरोजगारी से क्या होता है, बेरोजगारी की समस्या के कारण, बेरोजगारी का उद्देश्य क्या है और बेरोजगारी को कैसे दूर किया जा सकता है आदि। बेरोजगारी से सम्बंधित इस प्रकार के प्रश्न प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टीकोण से काफी महत्वपुर्ण है, और आपको इन सभी प्रश्नो के उत्तर इस निबंध में बिल्कुल विस्तार से मिल जायेंगे। इसलिए आप इस निबंध को पुरा अन्त तक अवश्य पढ़े, क्योकी इससे आपको परीक्षा में काफी सहायता मिल सकती है। तो, चलिये अब हम essay on unemployment in hindi को विस्तारपूर्वक से देखे।


बेरोजगारी की समस्या पर निबंध (Berojgari Ki Samasya Par Nibandh)

वर्तमान समय में बेरोजगारी एक वैश्विक समस्या बनी हुई है। चाहे विकसित देश हो या विकासशील देश, दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं को यह समान रूप से प्रभावित कर रही है। भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था में तो यह विस्फोटक रूप धारण किए हुए है। भारत में इसके प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि, पूँजी की कमी आदि हैं। यह समस्या आधुनिक समय में युवा वर्ग के लिए अत्यधिक निराशा का कारण बनी हुई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कहा था- "बिना उन्हें रोजगार मिले, जो रोजगार चाहते हैं, समाज के बुनियादी ढाँचे को दुरुस्त किए जाने की बात पर मैं यकीन नहीं कर सकता।" वास्तव में, आज बेरोजगारी न केवल भारत की, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक विकट समस्या हो गई है।

बेरोजगारी का मतलब क्या है

बेरोजगारी का अर्थ है - कार्यसक्षम होने के बावजूद एक व्यक्ति को उसकी आजीविका के लिए किसी रोजगार का न मिलना अर्थात् जब समाज में प्रचलित पारिश्रमिक दर पर भी काम करने के इच्छुक एवं सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य नहीं मिलता, तब ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार तथा ऐसी समस्या को बेरोजगारी की समस्या कहा जाता है।

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO) ने बेरोजगारी को इस प्रकार से परिभाषित किया है- "यह वह अवस्था है, जिसमें काम के अभाव में लोग बिना कार्य के रह जाते हैं। ये कार्यरत व्यक्ति नहीं हैं, किन्तु रोजगार कार्यालयों, मध्यस्थों, मित्रों, सम्बन्धियों आदि के माध्यम से या सम्भावित रोजगारदाताओं को आवेदन देकर या वर्तमान परिस्थितियों और प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने की अपनी इच्छा प्रकट कर कार्य तलाशते हैं।" रोजगार के अभाव में व्यक्ति असहाय हो जाता है। ऐसे में अनेक प्रकार के अवसाद उसे घेर लेते हैं, फिर तो न चाहते हुए भी कई बार वह ऐसे कदम उठा लेता है, जिसकी कानून अनुमति नहीं देता।

बेरोजगारी के आँकड़े के स्रोत और नवीनतम आँकड़े

भारत में बेरोजगारी के आँकड़े के स्रोत, भारत की जनगणना रिपोर्ट, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन, केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन की रोजगार एवं बेरोजगार सम्बन्धी रिपोर्ट तथा रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय के रोजगार कार्यालय में पंजीकृत आँकड़े हैं। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन के द्वारा वर्ष 2019 में जारी आँकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर 6.1% है, जो विगत 45 वर्षों में सर्वाधिक है। आँकड़ों के अनुसार महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में बेरोजगारी की दर अधिक है। 

देश स्तर पर महिलाओं की बेरोजगारी दर जहाँ 5.7% है, वहीं पुरुषों में यह दर 6.2% है। इस सन्दर्भ में शहरों की हालत गाँवों की अपेक्षा निम्न है। शहरों में बेरोजगारी की दर गाँवों की में 2.5% अधिक है। जहाँ शहरों में 7.8% शहरी युवा बेरोजगार हैं, वहीं गाँवों में यह आँकड़ा 5.3% है। और वर्तमान वर्ष मई 2022 में सीएमआईई के अनुसार देश में बेरोजगारी की दर 7.12% है। जिसमे से शहरों में बेरोजगारी की दर 8.21% है और वही गाँवों में 6.62% है।

भारत में बेरोजगारी के स्वरूप

▪︎ संरचनात्मक बेरोजगारी -- औद्योगिक क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं। संरचनात्मक बेरोजगारी दीर्घकालीन होती है। मूलत: भारत में बेरोजगारी का स्वरूप इसी प्रकार का है।

▪︎ अल्प रोजगार -- इसके अन्तर्गत ऐसे श्रमिक आते हैं, जिनको थोड़ा बहुत काम मिलता है और जिनके द्वारा वे कुछ अंशों तक उत्पादन में योगदान देते हैं, किन्तु इनको अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं मिलता। इसमें कृषि में लगे श्रमिक भी आते हैं, जिन्हें करने के लिए कम काम मिलता है।

▪︎ छिपी हुई बेरोजगारी अथवा अदृश्य बेरोजगारी -- इसके अन्तर्गत श्रमिक बाहर से तो काम पर लगे हुए प्रतीत होते हैं, किन्तु वास्तव में, उन श्रमिकों की उस कार्य में आवश्यकता नहीं होती अर्थात् यदि उन श्रमिकों को उस कार्य से निकाल दिया जाए, तो कुल उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इन श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता शून्य अथवा नगण्य होती है। कृषि में इस प्रकार की अदृश्य बेरोजगारी की प्रधानता है।

▪︎ खुली बेरोजगारी -- इससे तात्पर्य उस बेरोजगारी से है, जिसके अन्तर्गत श्रमिकों को बिना किसी कामकाज के रहना पड़ता है, उन्हें थोड़ा-बहुत भी काम नहीं मिलता है। भारत में बहुत से श्रमिक गाँवों से शहरों की ओर काम की खोज में आते हैं, किन्तु काम उपलब्ध न होने के कारण वहाँ बेरोजगार रहते हैं। इसके अन्तर्गत मुख्यतः शिक्षित बेरोजगार तथा साधारण (अदक्ष) बेरोजगार श्रमिकों को सम्मिलित किया जाता है।

▪︎ शिक्षित बेरोजगारी -- शिक्षित बेरोजगार ऐसे श्रमिक होते हैं, जिनको शिक्षित करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं तथा उनकी कार्यकुशलता (क्षमता) भी अन्य श्रमिकों से अधिक होती है, किन्तु उनको अपनी योग्यतानुसार काम नहीं मिलता तथा वे बेरोजगारी से ग्रसित हो जाते हैं। वर्तमान में देश के सामने शिक्षित बेरोजगारों की समस्या बहुत गम्भीर बनी हुई है। 

▪︎ घर्षणात्मक बेरोजगारी -- बाजार की दशाओं में परिवर्तन (माँग एवं पूर्ति की शक्तियों में परिवर्तन) होने से उत्पन्न बेरोजगारी को घर्षणात्मक बेरोजगारी कहते हैं। 

▪︎ मौसमी बेरोजगारी -- इसके अन्तर्गत किसी विशेष मौसम या अवधि में प्रतिवर्ष उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को सम्मिलित किया जाता है। भारत में कृषि में सामान्यत: 7-8 माह ही काम चलता है तथा शेष महीनों में खेती में लगे व्यक्तियों को बेकार बैठना पड़ता है। 

▪︎ शहरी बेरोजगारी -- शहरी क्षेत्रों में प्राय: खुले किस्म की बेरोजगारी पाई जाती है। इसमें औद्योगिक बेरोजगारी तथा शिक्षित बेरोजगारी को सम्मिलित किया जा सकता है।

▪︎ ग्रामीण बेरोजगारी -- गाँवों के लोग पहले आपस में ही काम का बंटवारा कर लेते थे। कोई कृषि कार्य में संलग्न रहता था, तो कोई गाँव के अन्य कार्यों को सम्पन्न करता था। वर्तमान में खेती की बदलती प्रवृत्ति तथा आधुनिक मशीनों के प्रयोग के कारण ग्रामीण बेरोजगारी देखी जाती है।

भारत में बेरोजगारी के कारण

(1) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि --- भारत में जनसंख्या की वृद्धि अत्यन्त तीव्र है। जिस दर से जनसंख्या वृद्धि हो रही है सरकार द्वारा उस दर से रोजगार उत्पन्न करना सम्भव नहीं हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है, जिससे कृषि जैसे पारम्परिक रोजगार में भी कमी हो रही है। जनसंख्या वृद्धि ने कृषि के क्षेत्र में जोतों के आकार को कम कर दिया है, जिससे उत्पादन क्षमता में कमी हो रही है। अत : कृषि की ओर से लोगों का ध्यान हट रहा है।

(2) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली --- भारत में आज भी लॉर्ड मैकाले द्वारा शुरू की गई शिक्षा प्रणाली लागू है। इस शिक्षा प्रणाली की शुरुआत अंग्रेज प्रशासकों की सहायता के लिए क्लर्क पैदा करने के लिए की गई थी। आज भी हम उसी परिपाटी पर चल रहे हैं। हमारे देश में आज भी व्यावसायिक शिक्षा तथा कौशलपूर्ण शिक्षा का अभाव है। ग्रामीण युवा वर्ग माध्यमिक या उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वयं को सरकारी नौकरी के योग्य समझने लगता है। 

उद्यमशीलता का अभाव होने के कारण वह किसी और दिशा में सोच नहीं पाता। समय निकल जाने पर उसे यह अनुभव होता है कि वह गलत दिशा में प्रयास कर रहा था। इसके अतिरिक्त भारतीय शिक्षा डिग्री की शिक्षा है, व्यवहार या कौशल की नहीं, जो रोजगार दे सके। वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने डिग्रीधारकों की संख्या में तेजी से विकास किया है, किन्तु रोजगार की व्यावहारिकता में नहीं।

(3) कृषि क्षेत्र में पिछड़ापन --- कृषि क्षेत्र में पिछड़ापन भी बेरोजगारी का एक प्रमुख कारक है। आज जीडीपी में कृषि का योगदान महज 16.2% ही है, किन्तु आज भी 50 से 55% लोग कृषि व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जिसका कारण कृषि का पिछड़ापन है। दूसरी ओर मौसमी कृषि के कारण अधिकांश समय तक किसान बेरोजगार ही रहते हैं। कृषि के क्षेत्र में पिछड़ेपन से औद्योगीकरण हेतु कच्चे माल का अभाव हो रहा है।

(4) मशीनीकरण --- श्रम अतिरेक देश होने के बावजूद भी भारत मशीन के प्रयोग पर अधिक बल दे रहा है, जिससे बेरोजगारी की दर में वृद्धि हो रही है। ऐसा उन देशों के लिए सहायक होता है, जहाँ जनसंख्या कम हो। भारत के सन्दर्भ में यह उचित नहीं है।

(5) धीमी विकास दर --- भारत की विकास दर उस तुलना में नहीं बढ़ रही है, जिस दर से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। जब अर्थव्यवस्था की गति ही धीमी है, तो अधिक रोगजार सृजन करना सम्भव नहीं हो सकता। 

(6) दोषपूर्ण योजनाएँ --- भारत में वर्ष 1951 से वर्ष 2017 तक 12 पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा विकास कार्य किए जाते रहे। सभी पंचवर्षीय योजनाओं के एजेण्डे का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि इसमें रोजगार के सृजन अथवा बेरोजगारी को कम करने की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया। इन योजनाओं में यह मान लिया गया कि विकास से बेरोजगारी स्वतः समाप्त हो जाएगी। 

इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय असमानता, स्वरोजगार की कमी तथा निर्धनता का कुचक्र आदि ऐसे कारण हैं, जिन्होंने बेरोजगारी में वृद्धि की है।

बेरोजगारी के दुष्परिणाम

बेरोजगारी के कई दुष्परिणाम होते हैं। बेरोजगारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। बेरोजगारी के कारण मानसिक अशान्ति की स्थिति में लोगों के चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध की ओर प्रवृत्त होने की पूरी सम्भावना रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी ही है। कई बार तो बेरोजगारी की भयावह स्थिति से तंग आकर लोग आत्महत्या भी कर बैठते हैं। युवा वर्ग की बेरोजगारी का लाभ उठाकर एक ओर जहाँ स्वार्थी राजनेता इनका दुरुपयोग करते हैं, वहीं दूसरी ओर धनिक वर्ग भी इनका शोषण करने से नहीं चूकते। ऐसी स्थिति में देश का राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण अत्यन्त दूषित हो जाता है।

बेरोजगारी को कैसे दूर किया जा सकता है

बेरोजगारी एक घातक समस्या है। इसके परिणाम बड़े ही भयंकर होते हैं। इसका निवारण व्यक्ति एवं समाज दोनों के हित में है। इसे दूर करने हेतु संगठित प्रयास की आवश्यकता है, मात्र सरकारी प्रयासों से ही यह सम्भव नहीं है। बेरोजगारी के निवारण में व्यक्ति, समाज और सरकार तीनों को सच्चा प्रयास करने की जरूरत है। इस सन्दर्भ में निम्न उपाय कारगर सिद्ध हो सकते हैं 

जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण
बेरोजगारी को दूर करने में जनसंख्या पर नियन्त्रण अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि तेजी से बढ़ती जनसंख्या, संसाधनों पर अत्यधिक भार डालती है, जिससे देश का विकास अवरुद्ध होता है, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव प्रत्येक क्षेत्र में अत्यन्त व्यापक होता है।
कृषि क्षेत्र का विकास
भारत एक कृषि प्रधान देश है। अतः कृषि के क्षेत्र में विकास होने से बेरोजगारी में कमी आ सकती है। कृषि में नवीन उपकरणों, कृत्रिम खादों, उन्नत बीजों, सिंचाई योजनाओं, कृषि योग्य नई भूमि जोड़ने, वृक्षारोपण, बाग-बगीचे लगाने व सघन खेती से रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। कृषि विकास से व्यक्ति की आय में वृद्धि होगी, जीवन स्तर ऊँचा उठेगा, इच्छा व क्षमता में विकास होगा। ये सब मिलकर बेरोजगारी को कम करेंगे।
शिक्षा प्रणाली में सुधार
भारत एक कृषि प्रधान देश है। अतः कृषि के क्षेत्र में विकास होने से बेरोजगारी में कमी आ सकती है। कृषि में नवीन उपकरणों, कृत्रिम खादों, उन्नत बीजों, सिंचाई योजनाओं, कृषि योग्य नई भूमि जोड़ने, वृक्षारोपण, बाग-बगीचे लगाने व सघन खेती से रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। कृषि विकास से व्यक्ति की आय में वृद्धि होगी, जीवन स्तर ऊँचा उठेगा, इच्छा व क्षमता में विकास होगा। ये सब मिलकर बेरोजगारी को कम करेंगे।
अर्थव्यवस्था में सुधार
बेरोजगारी की समस्या एक आर्थिक समस्या है। जब तक देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। यह महामारी तभी हटेगी, जब देश में औद्योगिक विकास का मार्ग प्रशस्त होगा। ऐसा होने पर ही देश आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होगा और अनेक बेरोजगार लोगों को रोजगार मिलेगा।
इसके अतिरिक्त रोजगार कार्यालयों की स्थापना, रचनात्मक कार्यों के प्रशिक्षण की व्यवस्था, बेरोजगारी बीमा योजना, गाँव तथा नगर सम्बन्धी बेरोजगारी दूर करने के प्रमुख उपाय हैं।

सरकार द्वारा बेरोजगारी दूर करने तथा रोजगार सृजन के उपाय

सरकार द्वारा बेरोजगारी को दूर करने एवं रोजगार के सृजन तथा युवाओं द्वारा स्वरोजगार उत्पन्न करने हेतु कई योजनाएँ एवं कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के सक्षम एवं इच्छुक व्यक्ति को एक वित्तीय वर्ष मैं कम-से-कम 100 दिनों तक रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (2006) का आन्ध्र प्रदेश से शुभारम्भ किया गया। इसके अतिरिक्त युवाओं हेतु रोजगार सृजन करने के लिए सरकार द्वारा छात्र स्टार्टअप नीति नवम्बर, 2016 से चलाई जा रही है। 

इस नीति का लक्ष्य तकनीकी आधारित छात्र स्टार्टअप की शुरुआत करना है और अगले दस वर्षों में रोजगार के अवसर पैदा करना है। नई मांग के अनुरूप युवाओं को स्किल इण्डिया के अन्तर्गत प्रशिक्षित किया जा रहा है। साथ ही युवाओं में स्वरोजगार को प्रोत्साहन हेतु स्टार्टअप इण्डिया, स्टैण्डअप इण्डिया एवं प्रधानमन्त्री मुद्रा बैंक योजना को चलाया जा रहा है। युवाओं को किसी कार्य में दक्ष बनाने हेतु कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके अन्तर्गत 2022 तक 500 मिलियन कुशल कार्मिक तैयार करना है।

प्रधानमन्त्री युवा योजना संचालित है, जिसके अन्तर्गत 2016 से 2021 तक की अवधि में 7 लाख से अधिक प्रशिक्षुओं को उद्यमशीलता का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त मेक इन इण्डिया, दीन दयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम संचालित किए गए हैं। इसके साथ ही भारत के युवाओं को रोजगार एवं स्वरोजगार हेतु प्रधानमन्त्री युवा रोजगार योजना 2019 तथा प्रधानमन्त्री स्वरोजगार योजना 2020 की शुरुआत गई है। साथ ही देश में बेरोजगारी कम करने तथा स्वरोजगार को बढ़ाने हेतु 12 मई, 2020 को घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत व्यापक प्रावधान किया गया है। 

की जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण कर, शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार करते हुए व्यावसायिक एवं व्यावहारिक शिक्षा पर बल देकर, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर एवं औद्योगीकरण द्वारा रोजगार के अधिक अवसर सृजित कर हम बेरोजगारी की समस्या का काफी हद तक समाधान कर सकते हैं। महात्मा गाँधी ने भी कहा था "भारत जैसा विकासशील देश लघु एवं कुटीर उद्योगों की अनदेखी कर विकास नहीं कर सकता।" ग्रामीण क्षेत्र के लिए अनेक रोजगारोन्मुख योजनाएँ चलाए जाने पर भी बेरोजगारी की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति के कई कारण हैं।

कभी-कभी योजनाओं को तैयार करने की दोषपूर्ण प्रक्रिया के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाता या ग्रामीणों के अनुकूल नहीं हो पाने के कारण भी कई बार ये योजनाएँ कारगर सिद्ध नहीं हो पातीं। प्रशासनिक कमियों के कारण भी योजनाएँ या तो ठीक ढंग से क्रियान्वित नहीं होतीं या ये इतनी देर से प्रारम्भ होती हैं कि इनका पूरा-पूरा लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त भ्रष्ट शासनतन्त्र के कारण जनता तक पहुँचने से पहले ही योजनाओं के लिए निर्धारित राशि में से दो-तिहाई तक राशि बिचौलिए खा जाते हैं। फलत: योजनाएँ या तो कागज तक सीमित रह जाती हैं या फिर वे पूर्णतः निरर्थक सिद्ध होती हैं।

निष्कर्ष

अतः बेरोजगारी की समस्या का समाधान तब ही सम्भव है, जब व्यावहारिक एवं व्यावसायिक रोजगारोन्मुखी शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर लोगों को स्वरोजगार अर्थात् निजी उद्यम एवं व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए प्रेरित किया जाए। आज देश की जनता को अपने पूर्व राष्ट्रपति श्री बराहगिरि वेंकट गिरि की कही बात- "प्रत्येक घर एक कुटीर उद्योग है और भूमि की प्रत्येक एकड़ एक चरागाह" से शिक्षा लेकर बेरोजगारी रूपी दैत्य का नाश कर देना चाहिए।

FAQ:- बेरोजगारी से सम्बंधित कुछ प्रश्न

प्रश्न -- भारत की वर्तमान बेरोजगारी दर क्या है?
उत्तर -- सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के डाटा के अनुसार जून 2023 में बेरोजगारी दर 8.45 फीसदी है।

प्रश्न -- भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगारी किस राज्य में है?
उत्तर -- भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर हरियाणा  राज्य में है, जो 37.3% है।

प्रश्न -- भारत में कुल कितने लोग बेरोजगार हैं?
उत्तर -- एक रिपोर्ट के अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या 5 करोड़ से ज्यादा है।

प्रश्न -- भारत में सबसे कम बेरोजगारी किस राज्य में है?
उत्तर -- भारत में सबसे कम बेरोजगारी दर छत्तीसगढ़ में है, जो 0.4% है।

बेरोजगारी पर निबंध PDF Download

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अंतिम शब्द

यहा पर हमने Berojgari Par Nibandh को बिल्कुल विस्तार से देखा, यह निबंध कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिये काफी उपयोगी है। तो अगर आप क्लास 6 से 12 तक के किसी भी कक्षा के छात्र है, तो आप इस बेरोजगारी की समस्या पर निबंध को अच्छे से जरुर पढ़े।

इसके अलावा यह निबंध कॉलेज में पढ़ रहे विद्यार्थियों के लिये भी बहुत ही महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है, क्योकी कई  बार कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों को प्रोजेक्ट वर्क में (बेरोजगारी) के ऊपर लिखने को दे दिया जाता है। ऐसे में यदि आप भी कॉलेज के छात्र है और आपको प्रोजेक्ट वर्क में बेरोजगारी के ऊपर लिखने को दिया गया है, तो आप इस यहा पर शेयर किये गए बेरोजगारी के निबंध की सहायता से आपन प्रोजेक्ट कार्य बहुत ही असानी से पुरा कर सकते हैं।

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