दहेज प्रथा पर निबंध 2023 | Essay On Dowry System In Hindi

Dahej Pratha Par Nibandh

इस लेख में हम दहेज प्रथा पर निबंध को बिल्कुल विस्तार से समझेंगे। दहेज एक प्रकार का भुगतान होता है, जैसे संपत्ति या धन, जो शादी के समय दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को दिया जाता है।  हमारे देश में दहेज प्रथा काफी समय से चली आ रही है, जिसे रोकना हमारे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि हमारे देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला की मौत दहेज संबंधी कारणों से हो जाती है। इसीलिए इस लेख में हमने दहेज प्रथा पर एक निबंध आपके साथ साझा किया है ताकि दहेज के प्रति लोगों की मानसिकता बदल सके और अधिक से अधिक लोग दहेज के खिलाफ हो सकें।

इसके अलावा, यदि आप कॉलेज के छात्र हैं या किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो इस लेख में हमने आपके साथ जो dahej pratha par nibandh साझा किया है वह आपके लिए बहुत ही मददगार साबित हो सकता है, क्योंकि कई बार दहेज प्रथा पर निबंध कॉलेज के छात्रों को प्रोजेक्ट वर्क में लिखने को दिया जाता है, ऐसे में यदि आप भी कॉलेज के छात्रों में से है और आपको भी प्रोजेक्ट कार्य के रुप में dahej pratha par nibandh लिखने को मिला है, तो आप इस लेख में शेयर किये गए निबंध की सहायता से अपना प्रोजेक्ट वर्क बहुत ही असानी से पुरा कर सकते हैं। 

साथ ही अकसर प्रतियोगी परीक्षाओं में दहेज प्रथा के बारे में या इससे सम्बंधित बहुत से प्रश्न पुछे जाते है और अगर आप इस निबंध को अच्छे से पढ़ लेते है, तो इससे आपको परीक्षा में काफी सहायता मिल सकता है। अगर आप dowry system essay in hindi को संक्षेप में पढ़ना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल को अंत तक तक ध्यानपूर्वक से जरूर पढ़ें।


दहेज प्रथा पर निबंध हिन्दी में (Dahej Pratha Par Nibandh)

'दहेज' शब्द अरबी भाषा के 'जहेज़' शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ होता है - भेंट या सौगात। भेंट में काम सम्पन्न हो जाने पर स्वेच्छा से अपने परिजन या कुटुम्ब को कुछ उपहार अर्पित करने का भाव निहित रहता है। वास्तव में, दहेज 'कन्यादान' और 'स्त्रीधन' की प्राचीन हिन्दू परम्परा से सम्बन्धित है। विवाह के समय कन्यादान में वधू के पिता, जबकि स्त्रीधन में वर के पिता, कपड़े एवं गहने दूसरे सम्बन्धित पक्ष को देते हैं वह दहेज होता है। सांस्कारिक हिन्दू विवाह प्रणाली के अनुसार विवाह हमेशा के लिए सम्पन्न होता है, जिसे स्त्री-पुरुष के जीवित रहते भंग नहीं किया जा सकता अर्थात् हिन्दू समाज में विवाह एक संस्कार है, जो मृत्यु के साथ ही समाप्त हो सकता है, जबकि अन्य समाजों में विवाह एक समझौता है, इसलिए वहाँ इसे भंग करने का भी प्रावधान है।

प्राचीन भारतीय हिन्दू समाज में दहेज की प्रथा का स्वरूप स्वेच्छावादी था। कन्या के पिता तथा उसके पक्ष के सदस्य स्वेच्छा एवं प्रसन्नता से अपनी पुत्री को जो ' पत्रम् पुष्पम् फलम् तोयम् 'प्रदान करते थे, उसमें बाध्यता नहीं थी। वह सामर्थ्य के अनुसार दिया गया 'दान' था। तुलसीदास ने 'रामचरितमानस' में पार्वती के विवाह के दौरान उनके पिता हिमवान द्वारा दहेज दिए जाने का वर्णन किया है

"दासी दास तुरग रथ नागा। धेनु बसन मनि वस्तु विभागा।
अन्न कनक भाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना।।"

उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ है - सेविका, सेवक, घोड़े, रथ, हाथी, गायें, वस्त्र आदि बहुत प्रकार की वस्तुओं के साथ - साथ अनाज और सोने के बर्तन गाड़ियों में लदवाकर दहेज में दिए गए, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।

दहेज प्रथा का वर्तमान स्वरूप

आज दहेज का स्वरूप पूरी तरह परिवर्तित हो गया है। वर का पिता अपने पुत्र के विवाह में कन्या के पिता की सामर्थ्य - असामर्थ्य, शक्ति-अशक्ति, प्रसन्नता-अप्रसन्नता आदि का विचार किए बिना उससे दहेज के नाम पर धन वसूलता है। दहेज, विवाह बाज़ार में बिकने वाले वर का वह मूल्य है, जो उसके पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक स्थिति को देखकर निश्चित किया जाता है।

जिस प्रथा के अन्तर्गत कन्या का पिता अपनी सामर्थ्य से बाहर जाकर अपना घर-द्वार बेचकर, अपने शेष परिवार का भविष्य अन्धकार में धकेलकर दहेज देता है, वहाँ दहेज लेने वाले से उसके सम्बन्ध स्नेहपूर्ण कैसे हो सकते हैं ! 'मनुस्मृति' में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष बालों से दहेज लेना राक्षस विवाह के अन्तर्गत रखा गया है, जिसका वर्णन 'मनु' ने इस प्रकार किया है।

"कन्या प्रदानं स्वाच्छन्द्यादासुरो धर्म उच्येत।"

इस प्रकार यहाँ कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को धन आदि दिया जाना दानव धर्म बताया गया है। अतः वर्तमान समय में दहेज प्रथा भारतीय समाज में व्याप्त एक ऐसी कुप्रथा है, जिसके कारण कन्या और उसके परिजन अपने भाग्य को कोसते रहते हैं।

माता-पिता द्वारा दहेज की राशि न जुटा पाने पर कितनी कन्याओं को अविवाहित ही जीवन बिताना पड़ता है, तो कितनी ही कन्याएँ अयोग्य या अपने से दोगुनी आयु वाले पुरुषों के साथ व्याह दी जाती हैं। इस प्रकार, एक ओर दहेज रूपी दानव का सामना करने के लिए कन्या का पिता गलत तरीकों से धन कमाने की बात सोचने लगता है, तो दूसरी ओर कन्या भ्रूण हत्या जैसे पापों को करने से भी लोग नहीं चूकते हैं।

महात्मा गाँधी ने इसे 'हृदयहीन बुराई' कहकर इसके विरुद्ध प्रभावी लोकमत बनाए जाने की वकालत की थी। जवाहरलाल नेहरू ने भी इस कुप्रथा का खुलकर विरोध किया था। राजा राममोहन राय, महर्षि दयानन्द आदि समाजसेवकों ने भी इस घृणित कुप्रथा को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों का आह्वान किया था। प्रेमचन्द ने उपन्यास 'कर्मभूमि' के माध्यम से इस कुप्रथा के कुपरिणामों को देशवासियों के सामने रखने का प्रयास किया।

दहेज प्रथा उन्मूलन सम्बन्धी कानून एवं महिलाओं की स्थिति

भारत में दहेज निषेध कानून, 1961 और घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के लागू होने के बावजूद दहेज न देने अथवा कम दहेज देने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 5,000 बहुओं को मार दिया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान समय में भारत में लगभग प्रत्येक 100 मिनट में दहेज से सम्बन्धित एक हत्या होती है।

अधिकांश दहेज हत्याएँ पति के घर के एकान्त में और परिवार के सदस्यों के सहयोग से होती हैं, इसलिए अधिकांश मामलों में अदालतें प्रमाण के अभाव में दहेज हत्यारों को दण्डित भी नहीं कर पाती है। कभी-कभी पुलिस छानबीन करने में इतनी शिथिल हो जाती है कि न्यायालय भी पुलिस अधिकारियों की कार्य-कुशलता और सत्यनिष्ठा पर सन्देह प्रकट करते हैं।

अतः दहेज प्रथा अर्थात् दहेज प्रताड़ना से बचाव के लिए आईपीसी की धारा 498 ए में प्रावधान किया गया है। इसमें पति या उसके रिश्तेदारों के ऐसे सभी चर्ताव को शामिल किया गया है, जो किसी महिला को मानसिक या शारीरिक हानि पहुचाएँ या उसे आत्महत्या करने पर मजबूर करता हो। इसके लिए दोषी पाए जाने पर पति को अधिकतम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है। वर्ष 2015 में इससे सम्बन्धित 1,18,403 मामले सामने आए थे। अतः इसे लेकर वर्ष 2017-18 में सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्विचार कर शक्त बनाया है। दहेज हत्या पर समाजशास्त्रियों के निम्नलिखित विचार हैं।

☞ मध्यम वर्ग की स्त्रियों के उत्पीड़न की दर निम्न वर्ग या उच्च वर्ग की स्त्रियों से अधिक होती है।

☞ लगभग 70% पीड़ित महिलाएं 21-24 वर्ष आयु समूह की होती है अर्थात् वे केवल शारीरिक रूप से ही नहीं, अपितु सामाजिक एवं भावात्मक रूप से भी अपरिपक्व होती हैं।

☞ यह समस्या निम्न जाति की अपेक्षा उच्च जाति की अधिक है।

☞ हत्या से पहले युवा वधू को कई प्रकार से सताया एवं अपमानित किया जाता है, जो पीड़िता के परिवार के सदस्यों के सामाजिक व्यवहार के अव्यवस्थित स्वरूप को दर्शाता है।

☞ दहेज हत्या के कारणों में सबसे महत्त्वपूर्ण समाजशास्त्रीय कारक, अपराधी पर बातावरण का दबाव या सामाजिक तनाव है, जो उसके परिवार के आन्तरिक एवं बाह्य कारणों से उत्पन्न होता है।

☞ लड़की की शिक्षा के स्तर और दहेज के लिए की गई उसकी हत्या में कोई पारस्परिक सम्बन्ध नहीं होता।

☞ नववधू की हत्या में परिवार की रचना निर्णायक भूमिका निभाती है।

☞ अन्य महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक कारक ; जैसे - हत्यारे का सत्तावादी व्यक्तित्व, प्रबल प्रकृति और उसके व्यक्तित्व का असमायोजन है।

निष्कर्ष

दहेज सम्बन्धी कुप्रथा का चरमोत्कर्ष यदि दहेज हत्या है, तो इसके अतिरिक्त महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के अन्य स्वरूपों का प्रदर्शन भी सामने आता है, जिसमें पत्नी को पीटना, लैंगिक या अन्य दुर्व्यवहार, मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना आदि शामिल हैं।

भारत की पवित्र धरती से दहेज रूपी विष वृक्ष को समूल उखाड़ फेंकने के लिए देश के युवा वर्ग को आगे आना होगा। युवाओं के नेतृत्व में गाँव-गाँव और शहर-शहर में सभाओं का आयोजन करके लोगों को जागरूक करना होगा, ताकि वे दहेज लेने व देने जैसी बुराइयों से बच सकें। साथ ही युवाओं को यह प्रण लेना होगा कि हम ना दहेज लेंगे और ना देंगे।

ताकि समाज में लोगों का हृदय परिवर्तन हो सके। प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी इस कुप्रथा को करने में खुलकर सहयोग करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, समाज में फैली सामाजिक बुराई दहेज प्रथा के नाम पर नारियों पर हो रहे अत्याचार को हमें समाप्त करना होगा।

दहेज प्रथा पर निबंध Pdf

यहा पर दहेज प्रथा पर निबंध का पीडीएफ फ़ाईल भी शेयर किया गया है, जिसे आप बहुत ही असानी से डाउनलोड कर सकते हैं। और इस पीडीएफ की मदद से आप कभी भी जब चाहे दहेज प्रथा पर निबंध को पढ़ सकते हैं। Dahej Pratha Par Nibandh Pdf Download करने के लिये आप निचे दिये गए बटन पर क्लिक करे और फिर पीडीएफ को असानी से डाउनलोड करें।


अंतिम शब्द

यहा पर इस लेख में हमने Dahej Pratha Par Nibandh को एकदम विस्तार से समझा। हमने इस दहेज प्रथा के निबंध को लगभग 1000 शब्दों से ज्यादा में शेयर किया गया है, आप चाहे तो इस इस निबंध में से कुछ शब्दों को लेकर दहेज प्रथा पर निबंध 50 शब्दों में, दहेज प्रथा पर निबंध 100 शब्दों में, दहेज प्रथा पर निबंध 150 शब्दों में, दहेज प्रथा पर निबंध 200 शब्दों में, दहेज प्रथा पर निबंध 250 शब्दों में या फिर दहेज प्रथा पर निबंध 400 शब्दों में लिख सकते हैं।

और इसके साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिये यहा पर शेयर किया गया essay on dowry system in hindi काफी सहायक है। इसलिए अगर आप उन विद्यार्थियों में से है, जो इस समय किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है, तो आप इस दहेज प्रथा के निबंध को जरुर पढ़े क्योकी, आपको इससे काफी लाभ हो सकता है। इसके अलावा बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिये भी यह निबंध काफी महत्वपूर्ण है क्योकी अकसर बोर्ड की परीक्षा में हिन्दी के विषय में ऐसे निबंध पुछ लिये जाते है। 

यहा पर शेयर किया गया है यह निबंध आपको कैसा लगा, कमेंट के माध्यम से आप अपने विचार हमारे साथ जरुर साझा करें। हम आशा करते है की आपको यह निबंध जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की इस इस लेख की सहायता से दहेज प्रथा का निबंध कैसे लिखें? आप बिल्कुल अच्छे से समझ गए होंगे। यदि आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल है, तो आप नीचे कमेंट करके पुछ सकते है और साथ ही इस निबंध को आप अपने सभी सहपाठी तथा मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करे।

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