चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जीवन परिचय | C.V Raman Biography In Hindi

C.V Raman Biography In Hindi

चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जीवन परिचय, बायोग्राफी, जन्म, मृत्यु, राष्ट्रीयता, खोज, पुरस्कार, विज्ञान में योगदान, माता-पिता, पत्नी, बच्चे (Chandrasekhara Venkata Raman Ki Jivani, Biography, Birth, death, Award, Nationality, Discovery)

इस आर्टिकल में हम महान् भारतीय वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन जी की जीवनी को विस्तार से देखेंगे, हम यहा इनके व्यक्तिगत जीवन से सम्बंधित बहुत से प्रश्नो को बिल्कुल संक्षेप में समझेंगे जैसे की, चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म कब हुआ, चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म कहाँ हुआ, चंद्रशेखर वेंकटरमन का मृत्यु कब हुआ चंद्रशेखर वेंकटरमन के पिता का नाम क्या था, चंद्रशेखर वेंकट रमन के कितने बच्चे थे, चंद्रशेखर वेंकटरमन ने क्या खोजा था और चंद्रशेखर वेंकटरमन को नोबेल पुरस्कार कब मिला था आदि। इन सभी सवालों के जवाब आपको इस आर्टिकल में विस्तारपूर्वक से मिल जायेंगे। 

तो अगर आप chandrasekhara venkata raman ka jivan parichay अच्छे से समझना चाहते है तो, इस लेख को पुरा अन्त तक अवश्य पढ़े। भारत सदियों से ऐसे महापुरुषों की भूमि रहा है, जिनके कार्यों से पूरी मानवता का कल्याण हुआ है। ऐसे महापुरुषों की सूची में केवल समाज सुधारकों, साहित्यकारों एवं आध्यात्मिक गुरुओं के ही नहीं, बल्कि कई वैज्ञानिकों के भी नाम आते हैं। चन्द्रशेखर वेंकट रमन ऐसे ही एक महान् भारतीय वैज्ञानिक थे, जिनकी खोजों के फलस्वरूप विश्व को कई प्राकृतिक रहस्यों का पता लगा। तो चलिये अब हम डॉक्टर सी वी रमन का जीवन परिचय विस्तार से समझे।

नाम सी.वी रमन
पुरा नाम चन्द्रशेखर वेंकट रमन
जन्म तिथि 7 नवम्बर 1888
जन्म स्थान तिरुचिरापल्ली, तमिल नाडु
मृत्यु तिथि 21 नवंबर 1970
मृत्यु स्थल बैंगलोर, मैसूर राज्य (भारत)
आयु (मृत्यु के समय) 82 वर्ष
राष्ट्रीयता भारतीय
शिक्षा प्रेसीडेंसी कालिज
पिता चन्द्रशेखर अय्यर
माता पार्वती अम्मल
भाई चंद्रशेखर सुब्रह्मण्य अय्यर
पत्नी लोकसुंदरी अम्मल
बच्चे वेंकटरमन राधाकृष्णन, चन्द्रशेखर रामन्
पुरस्कार रॉयल सोसाइटी के फेलो (1924), माटेटुकी मेडल (1928), नाइट बैचलर (1930), ह्यूजेस मेडल (1930), भौतिकी में नोबेल पुरस्कार (1930), भारत रत्न (1954), लेनिन शांति पुरस्कार (1957)


चन्द्रशेखर वेंकटरमन का जीवन परिचय एवं शिक्षा (Chandrasekhara Venkata Raman Ka Jeevan Parichay)

चन्द्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवम्बर, 1888 को तमिलनाडु राज्य में तिरुचिरापल्ली नगर के निकट तिरुवनईकवल नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम चन्द्रशेखर अय्यर एवं माता का नाम पार्वती अम्माल था। चूँकि वेंकट रमन के पिता भौतिक विज्ञान एवं गणित के विद्वान् थे एवं विशाखापत्तनम में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त थे। अतः हम कह सकते हैं कि रमन को विज्ञान के प्रति गहरी रुचि एवं अध्ययनशीलता विरासत में मिली। एक वैज्ञानिक होने के बावजूद धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्तित्व उन पर अपनी माँ के स्पष्ट प्रभाव को दर्शाता है , जो संस्कृत की अच्छी जानकार एवं धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं।

रमन की प्रारम्भिक शिक्षा विशाखापत्तनम में हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे चेन्नई चले गए। वहाँ उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से वर्ष 1904 में स्नातक एवं वर्ष 1907 में भौतिकी में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। स्नातक में उन्होंने कॉलेज में प्रथम स्थान प्राप्त करते हुए गोल्ड मेडल प्राप्त किया था तथा स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी में विशिष्ट अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए थे। वर्ष 1906 में लन्दन की विख्यात वैज्ञानिक पत्रिका 'फिलॉसोफिकल मैग्जीन' में उनका एक लेख 'अनसिमेट्रिकल डि प्रैक्शन बैंडसड्यू टू रेक्टैंगुलर अपरचर' प्रकाशित हुआ। 

इसके बाद रमन का दूसरा शोध-पत्र विश्वविद्यालय पत्रिका 'नेचर' में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1907 में ही वे भारतीय वित्त विभाग द्वारा आयोजित परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर कलकत्ता में सहायक महालेखापाल के पद पर नियुक्त हुए। उस समय उनकी आयु मात्र 19 वर्ष थी। इतनी कम आयु में इतने उच्च पद पर नियुक्त होने वाले वे पहले भारतीय थे। सरकारी नौकरी के दौरान भी उन्होंने विज्ञान का साथ नहीं छोड़ा और कलकत्ता की भारतीय विज्ञान प्रचारिणी संस्था के संस्थापक डॉ. महेन्द्र लाल सरकार के सुपुत्र वैज्ञानिक डॉ. अमृतलाल सरकार के साथ अपना वैज्ञानिक शोध कार्य करते रहे। 

वर्ष 1911 में वे डाक-तार विभाग के अकाउंटेण्ट जनरल बने। इसी बीच उन्हें भारतीय विज्ञान परिषद् का सदस्य भी बनाया गया। वर्ष 1917 में विज्ञान को अपना सम्पूर्ण समय देने के लिए उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए। उस समय प्राचार्य का वह पद पालित पद के रूप में था।

चन्द्रशेखर वेंकट रमन का विज्ञान के क्षेत्र में योगदान

सरकारी नौकरी को छोड़कर भौतिक विज्ञान के प्राचार्य पद पर नियुक्त होने के पीछे उनका उद्देश्य अपने वैज्ञानिक अनुसन्धानों को अधिक समय देना था। अपने शोध और अनुसन्धान को गति प्रदान करने के उद्देश्य से उन्होंने कई विदेश यात्राएँ भी कीं। वर्ष 1921 में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रमण्डल के विश्वविद्यालयों की एक सभा में भाग लेने के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया। 

इसी समुद्र यात्रा के दौरान भूमध्य सागर के गहरे नीले जल ने उनका ध्यान अचानक ही अपनी ओर खींचा, फलस्वरूप उन्होंने जल, हवा, बर्फ आदि पारदर्शक माध्यमों के अणुओं द्वारा परिक्षिप्त होने वाले प्रकाश का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने अपने अनुसन्धानों से यह सिद्ध कर दिया कि पदार्थ के अन्दर एक विद्युत तरल पदार्थ होता है, जो सदैव कारण केवल पारदर्शक दवों में ही नहीं, भी अणुओं की गति के कारण प्रकाश किरणों के नाम से जाना जाता है।

इस खोज के फलस्वरूप पारदर्शक गतिमान रहता है। इसी तरल पदार्थ के पदार्थों और अपारदर्शी वस्तुओं में इसी प्रभाव को 'रमन प्रभाव' बल्कि बर्फ तथा स्फटिक जैसे का परिक्षेपण हुआ करता है। किरणों के यह रहस्य खुला कि आकाश नीला क्यों हैं ? इसके दिखाई देता है, वस्तुएँ बिभिन्न रंगों की क्यों दिखाई देती है और पानी पर हिमशैल हरे-नीले क्यों दिखाई देते अतिरिक्त इस खोज के फलस्वरूप विज्ञान जगत को असंख्य जटिल यौगिकों के अणु विन्यास को सुलझाने से सम्बन्धित अनेक लाभ हुए। 

इस खोज के महत्त्व को देखते हुए वर्ष 1930 में रमन को भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। रमन पहले एशियाई और अश्वेत थे, जिन्होंने विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था। रमन की रुचि संगीत में थी, इसलिए कलकत्ता विश्वविद्यालय की नौकरी के दौरान उन्होंने ध्वनि कम्पन एवं शब्द विज्ञान के क्षेत्र में भी रोचक बातों का पता लगाया था। 

उन्होंने ही पहली बार तबले और मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) की प्रकृति का पता लगाया। वर्ष 1934 में उन्होंने बंगलौर में भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना की तथा वर्ष 1948 से नवस्थापित रमन अनुसन्धान संस्थान, बंगलौर (बंगलुरु) में निदेशक पद पर आजीवन कार्य करते रहे। इस संस्थान में वे अपने जीवन के अन्तिम दिनों तक हीरों तथा अन्य रत्नों की बनावट के बारे में अनुसन्धान करते रहे। 

चन्द्रशेखर वेंकट रमन जी को मिले महत्त्वपूर्ण पुरस्कार एवं सम्मान

वर्ष 1929 में उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 16 वें सत्र की अध्यक्षता की थी। वर्ष 1930 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के अतिरिक्त चन्द्रशेखर वेंकट रमन की उपलब्धियों के लिए देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों एवं सरकारों ने उन्हें अनेक उपाधियाँ एवं स्कार देकर सम्मानित किया। ऑप्टिक्स के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 1924 में उन्हें रॉयल सोसायटी का 'फैलो' चुना गया और वर्ष 1929 में 'नाइट' की पदवी से विभूषित किया गया। 

सोवियत रूस का श्रेष्ठतम 'लेनिन शान्ति पुरस्कार' उन्हें प्रदान किया गया। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की। इसके अतिरिक्त इटली की विज्ञान परिषद् ने 'मेट्युसी पदक' , अमेरिका ने वर्ष 1941 में 'फ्रैंकलिन पदक' तथा इंग्लैण्ड ने 'ह्यूजेज पदक' प्रदान कर रमन को सम्मानित किया। वर्ष 1948 में भारत सरकार द्वारा 'राष्ट्रीय आचार्य' का सम्मान प्रदान किया गया।

वर्ष 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत किया गया। यह सम्मान कला, साहित्य, विज्ञान एवं खेल को आगे बढ़ाने के लिए की गई विशिष्ट सेवा और जन-सेवा में उत्कृष्ट योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने जो महान् अनुसन्धान किए थे, उनके लिए वे इस सम्मान के वास्तविक हकदार थे। 

उन्होंने 'रमन प्रभाव' की खोज 28 फरवरी, 1928 को की थी, इसलिए 28 फरवरी को 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय डाक-तार विभाग ने उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के महत्त्व को देखते हुए एक डाक टिकट जारी करके श्री रमन को सम्मानित किया। चन्द्रशेखर वेंकट रमन वैज्ञानिक एवं शिक्षक ही नहीं, बल्कि एक कुशल वक्ता तथा संगीत प्रेमी भी थे। 

उन्होंने अपना शोध-कार्य सदैव रचनात्मक कार्यों के लिए किया, ताकि मानवता का कल्याण हो सके। वे सैनिक कार्यों अथवा विनाशकारी शोध के विरुद्ध थे। उन्होंने जीवनभर विज्ञान की सेवा की। रमन अनुसन्धान संस्थान के निदेशक पद पर रहते हुए भारत माँ का यह सपूत एक बीमारी से ग्रस्त होने के कारण 19 नवम्बर, 1970 को सदा-सदा के लिए चिर निद्रा में सो गया। 

अपने संस्थान के प्रति उनके अनुराग को देखते हुए उनका दाह संस्कार संस्थान के प्रांगण में ही किया गया। भारत को वैज्ञानिक अनुसन्धान के क्षेत्र में अग्रसर करने में रमन के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने जो खोजें की थीं, आज उनका विस्तार विज्ञान की अनेक शाखाओं तक हो चुका है। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व भारतीय युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का बहुमूल्य स्रोत है।

FAQ : चन्द्रशेखर वेंकट रमन से सम्बंधित पुछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न -- डॉक्टर सीवी रमन कौन है?
उत्तर -- डॉक्टर सीवी रामन भारतीय भौतिक-शास्त्री थे।

प्रश्न -- सी वी रमन का पूरा नाम क्या है?
उत्तर -- चन्द्रशेखर वेंकट रमन

प्रश्न -- चंद्रशेखर वेंकटरमन का जन्म कब हुआ?
उत्तर -- 7 नवम्बर 1888 को

प्रश्न -- सी वी रमन का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर -- तिरुचिरापल्ली, तमिल नाडु

प्रश्न -- चंद्रशेखर वेंकटरमन का मृत्यु कब हुआ?
उत्तर -- 21 नवंबर 1970 को

प्रश्न -- चंद्रशेखर वेंकटरमन का मृत्यु कहाँ हुआ?
उत्तर -- बैंगलोर, मैसूर राज्य (भारत)

प्रश्न -- सी वी रमन के पिता का नाम क्या था?
उत्तर -- सी वी रमन के पिता का नाम चन्द्रशेखर अय्यर था

प्रश्न -- सी वी रमन के जीवनसाथी का नाम क्या था?
उत्तर -- सी वी रमन के जीवनसाथी का नाम लोकसुंदरी अम्मल था

प्रश्न -- सी वी रमन के कितने बच्चे थे?
उत्तर -- सी वी रमन के 2 बच्चे थे

प्रश्न -- सी वी रमन के बच्चों के नाम?
उत्तर -- वेंकटरमन राधाकृष्णन, चन्द्रशेखर रामन्

प्रश्न -- चंद्रशेखर वेंकटरमन ने क्या खोजा?
उत्तर -- चन्द्रशेखर वेंकटरमन ने रामन प्रभाव की खोज की थी

प्रश्न -- सीवी रमन को नोबेल पुरस्कार कब मिला था?
उत्तर -- सीवी रमन को 28 फरवरी 1928 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला था

Conclusion

यहा पर इस लेख में हमने cv raman biography in hindi को अच्छे से समझा, हमने यहा इनके जीवन से जुड़े बहुत से सवालों के जवाब जाने, जिससे की आपको चंद्रशेखर वेंकटरमन की जीवनी को बिल्कुल अच्छे से समझ में असानी हो। हम आशा करते है की आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा होगा और हमे उमीद है की इस लेख की सहायता से आपको c.v raman ka jivan parichay अच्छे से समझ आ गया होगा। अगर आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल हो तो, आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है। साथ ही इस चंद्रशेखर वेंकटरमन की बायोग्राफी को आप अपने मित्रों के साथ शेयर जरुर करे।

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