नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Subhash Chandra Bose Biography In Hindi

सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

इस आर्टिकल में हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी कहानी (subhash chandra bose biography in hindi) को पूरे विस्तार से समझेंगे। अगर आप सुभाष चंद्र बोस की जीवनी की तलाश में है तो, आप बिल्कुल सही जगह पर आए है। क्योकी इस लेख में आपको सुभाष चंद्र बोस के जीवन से सम्बन्धित जितने भी महत्वपूर्ण प्रश्न है वो सभी विस्तार से मिल जायेंगे। जैसे की सुभाष चंद्र बोस का पूरा नाम, सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब और कहां हुआ था, सुभाष चंद्र बोस के माता पिता का नाम और सुभाष चंद्र बोस के कुछ प्रसिध्द नारे आदि।

ऐसे ही बहुत से सवालों के जवाब को इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे जिससे की आपको सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय अच्छे से समझ आ जाये। तो अगर आप subhash chandra bose ka jivan parichay बिल्कुल अच्छे से समझना चाहते है तो, आपको इस आर्टिकल को पुरा शुरू से अन्त तक पढ़ना होगा। चलिये अब हम पूरे विस्तारपूर्वक से सुभाष चंद्र बोस की जीवनी को समझते हैं।


सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (Subhash Chandra Bose Biography In Hindi)

भारतीय इतिहास में सुभाषचन्द्र बोस एक महान् व्यक्ति एवं बहादुर स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में विख्यात हैं। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनके द्वारा दिया गया नारा “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा” उनकी क्रान्तिकारी सोच को दर्शाता है। सुभाषचन्द्र बोस के अतिरिक्त भारतीय इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ, जो एक साथ महान् सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने वाला हो। महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह को 'नेपोलियन की पेरिस यात्रा' की संज्ञा देने वाले सुभाषचन्द्र बोस एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनके पाँव लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटे तथा उन्होंने जो स्वप्न देखा उसे पूरा किया।

नाम सुभाष चंद्र बोस
उपनाम नेताजी
जन्म तिथि 23 जनवरी 1897
जन्म स्थान उड़ीसा प्रान्त के कटक शहर में
मृत्यु 18 अगस्त 1945 (उम्र 48)
माता प्रभावती देवी
पिता जानकीनाथ बोस
भाई शरत चंद्र बोस
पत्नी एमिली शेंकल
बच्चे अनिता बोस फाफ
शिक्षा बी० ए० (आनर्स)
शिक्षा प्राप्त की कलकत्ता विश्वविद्यालय से
धर्म हिन्दू
राष्ट्रीयता भारतीय

सुभाषचन्द्र बोस का जीवन परिचय (Subhash Chandra Bose Ka Jivan Parichay)

महान् व्यक्तित्व सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रान्त के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता जानकीनाथ बोस एक प्रसिद्ध सरकारी वकील थे, जिनके पूर्वज पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले के केदालिया गाँव के निवासी थे। सुभाषचन्द्र की प्रारम्भिक शिक्षा कटक में ही हुई थी। आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।

उनके पिता चाहते थे कि बोस प्रशासनिक अधिकारी बनें, अपने पिता के इस स्वप्न को साकार करने के उद्देश्य से कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी ए करने के बाद वे इंग्लैण्ड चले गए और वर्ष 1920 में भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया। उस समय आईसीएस की परीक्षा पास करना आसान नहीं था। इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को प्राप्त करने के बाद भी उन्हें अंग्रेज़ों के अधीन कार्य करना स्वीकार नहीं था।

अत : उन्होंने यह नौकरी करने से इनकार कर दिया और देश के स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गए। अंग्रेज़ों के विरुद्ध अपने संघर्ष की शुरुआत करते हुए सुभाषचन्द्र बोस, देशबन्धु चितरंजन दास के सहयोगी बन गए। प्रिंस ऑफ़ वेल्स के स्वागत के बहिष्कार में उन्हें प्रथम बार गिरफ्तार कर 6 माह की सजा दी गई। वर्ष 1924 में जब देशबन्धु कलकत्ता के मेयर बने, तब सुभाषचन्द्र को उन्होंने चीफ़ एक्जीक्यूटिव ऑफ़िसर बनाया।

उनके स्वतन्त्रता उन्मुखी कार्यक्रमों एवं क्रियाकलापों से भयभीत होकर सरकार ने उन्हें उसी वर्ष फिर गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया, पर वह उन्हें अधिक समय तक कैद नहीं रख सकी और 15 मई, 1927 को उन्हें रिहा कर दिया गया। इस समय तक वे देश के प्रखर नेता बन चुके थे और उनकी प्रसिद्धि देश की सीमा को लाँघकर जर्मनी, जापान, अमेरिका, सोवियत रूस जैसे देशों तक पहुँच चुकी थी।

26 जनवरी, 1930 को कलकत्ता के मेयर पद पर रहते हुए नेताजी ने आज़ादी के दिन की घोषणा के साथ विशाल जुलूस निकाला, जिसके कारण उन्हें फिर गिरफ़्तार कर असहनीय यातनाएँ दी गईं। जेल में उनका स्वास्थ्य जब अत्यधिक बिगड़ गया, तो सरकार ने उन्हें इस शर्त पर रिहा किया कि वे रिहा होने के बाद सीधे यूरोप चले जाएँगे। अत: वे रिहा होने के तुरन्त बाद अपने सम्बन्धियों से मिले बिना ही वायुयान द्वारा स्विट्जरलैण्ड चले गए।

यह वास्तव में सरकार की सोची-समझी चाल थी। उन्हें रिहा नहीं किया गया था, बल्कि निर्वासन दिया गया था और यह बात तब स्पष्टत: सिद्ध हो गई जब अपने पिता की मृत्यु पर स्वदेश लौटते ही गिरफ्तार कर उन्हें उनके घर में ही नज़रबन्द कर दिया गया। लगभग एक माह तक वे इसी तरह नज़रबन्द रहे, इस दौरान उन्हें किसी राजनीतिक चर्चा में भाग नहीं लेने दिया गया। 

अतः वे पुनः यूरोप लौट गए। विदेश में रहते हुए देश की सेवा करना बहुत कठिन था और ब्रिटिश सरकार ने उनसे स्पष्ट कह दिया था कि भारत में वे केवल जेलों में ही रह सकते हैं, फिर भी वे स्वदेश लौटे, इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें पुन: गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी से देशभर में क्रान्ति की लहर फैल गई, पर सरकार टस से मस नहीं हुई। इसी बीच उनके बिगड़ते हुए स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें पहले की तरह पुनः रिहा कर दिया गया।

सुभाषचन्द्र बोस जी का योगदान (Subhash Chandra Bose Ka Yogdan)

सुभाषचन्द्र बोस अपने राजनीतिक जीवन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े थे। वर्ष 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में वे गाँधीजी द्वारा नामजद उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया के विरुद्ध अध्यक्ष पद का चुनाव जीतने में सफल रहे। पट्टाभि सीतारमैया की पराजय को गाँधीजी ने अपनी पराजय बताया। 

सुभाषचन्द्र बोस गाँधीजी का बहुत सम्मान करते थे। अत: दक्षिणपन्थी कांग्रेसियों के असहयोग को देखते हुए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और फॉरवर्ड ब्लॉक नामक नई पार्टी की स्थापना की। बंगाल में उठ रही क्रान्ति को देखते हुए उन्हें वर्ष 1941 में फिर गिरफ्तार कर लिया गया और उनके घर पर उन्हें नज़रबन्द करते हुए उन पर कड़ा पहरा लगा दिया गया, फिर भी वे यहाँ से भेष बदलकर भागने में सफल हुए। यहाँ से भागकर वे काबुल होते हुए जर्मनी पहुँचे। 

उस समय जर्मनी का शासक तानाशाह हिटलर था। उसने उनका यथेष्ट सम्मान किया और दक्षिण-पूर्वी एशिया जाने की उनकी योजना को समर्थन व सहयोग भी दिया। जून, 1943 में सुभाषचन्द्र जापान चले गए, वहाँ से फिर वे सिंगापुर के लिए रवाना हुए, जहाँ उसी वर्ष 4 जुलाई को रासबिहारी बोस उन्हें आज़ाद हिन्द फ़ौज का सेनापति बना दिया।

21 अक्टूबर, 1943 को अन्ततः सुभाषचन्द्र बोस ने सिंगापुर में ही आज़ाद भारत की अस्थायी सरकार की घोषणा कर दी। जापान, इटली, चीन, जर्मनी, फिलीपींस, कोरिया , मांचुको और आयरलैण्ड देशों की सरकारों ने उनकी सरकार को मान्यता दी। बाद में उन्होंने बर्मा (म्यांमार) में रंगून को अपनी अस्थायी सरकार की राजधानी बनाया और अण्डमान-निकोबार द्वीप को जीतकर वहाँ अनुशासित एवं व्यवस्थापूर्ण ढंग से आज़ाद हिन्द सरकार का कार्य चलाने लगे।

6 जुलाई, 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गाँधी के नाम एक प्रसारण जारी किया, जिसमें उन्होंने गाँधीजी को 'राष्ट्रपिता' कहकर सम्बोधित किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगी। दिल्ली चलो 'का नारा देकर उन्होंने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया एवं कोहिमा एवं मणिपुर के युद्ध में अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए, परन्तु ब्रिटिश सरकार की वायुसेना के सामने आज़ाद हिन्द फ़ौज कब तक टिकी रहती ! सुभाषचन्द्र बोस को रंगून छोड़ना पड़ा और 19 मई, 1945 को अंग्रेज़ों ने रंगून पर पुनः कब्ज़ा जमा लिया।

आज़ाद हिन्द फ़ौज को इस युद्ध में भले ही हार का सामना करना पड़ा हो, पर ब्रिटिश सरकार के प्रशिक्षित सैनिकों के छक्के छुड़ा देने वाली झाँसी रेजीमेण्ट की वीरांगनाओं के अदम्य साहस, शौर्य और वीरता को कभी भुलाया नहीं जा सकता। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद सुभाषचन्द्र बोस को नया रास्ता ढूँढना बहुत आवश्यक था, उन्होंने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया। 18 अगस्त, 1945 को वे हवाई जहाज़ से मंचूरिया की ओर जा रहे थे। इस सफ़र के दौरान वे लापता हो गए। 23 अगस्त, 1945 को कथित रूप से एक वायुयान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

सुभाषचन्द्र बोस के प्रति लोगों के अनन्य दुर्लभ प्रेम की भावना का ही परिणाम था कि बीसवीं सदी के अन्त तक भारतवासी यह मानते रहे कि उनके प्रिय नेताजी की मृत्यु नहीं हुई है और आवश्यकता पड़ने पर वे पुनः देश की बागडोर सँभालने को कभी भी आ सकते हैं। देश के स्वतन्त्रता संग्राम में सुभाषचन्द्र बोस की भूमिका को देखते हुए जनवरी, 1992 में उन्हें मरणोपरान्त देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित करने की घोषणा हुई थी, परन्तु उनकी मृत्यु की आधिकारिक पुष्टि न होने के कारण यह पुरस्कार नहीं दिया जा सका। नेताजी आज हमारे बीच सशरीर उपस्थित नहीं हैं, पर देशभक्ति का उनका अमर सन्देश आज भी हमें देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा देता है।

सुभाष चंद्र बोस के नारे (Subhash Chandra Bose Slogans In Hindi)

▪︎ तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।

▪︎ व्यर्थ की बातों में समय खोना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता।

▪︎ सुभाष जी जान-ए-हिन्द है,
सुभाष जी शान-ए-हिन्द है।

▪︎ एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार, उसकी मृत्यु के बाद एक हजार जन्मों में अवतरित होगा।

▪︎ आजादी दी नहीं जाती, ली जाती है।

▪︎ कोई संघर्ष नहीं है, तो जीवन अपनी आधी रुचि खो देता है- अगर कोई जोखिम नहीं लेना है।

▪︎ कठिनाई में भी लड़ने की ताकत दी है,
युवा भारत को देश हित में मर मिटने की शिक्षा दी है।

▪︎ मेरा अनुभव है कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती।

▪︎ राजनीतिक सौदेबाजी का रहस्य यह है कि आप वास्तव में जो हैं, उससे अधिक मजबूत दिखना है।

▪︎ यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाएं।

▪︎ यहाँ रहे, वहाँ रहे, चाहे जहाँ रहे,
नेताजी देश प्रेम में हमेशा डूबे रहे।

▪︎ इतिहास में कोई वास्तविक परिवर्तन चर्चा से कभी हासिल नहीं हुआ है।

▪︎ याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।

▪︎ जिस व्यक्ति के अंदर 'सनक' नहीं होती वो कभी महान नहीं बन सकता. लेकिन उसके अंदर, इसके आलावा भी कुछ और होना चाहिए।

▪︎ जो सैनिक हमेशा अपने राष्ट्र के प्रति वफादार रहते हैं, जो हमेशा अपने जीवन का बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं, वे अजेय हैं।


Conclusion

यहा पर हमने biography of subhash chandra bose in hindi (सुभाषचंद्र बोस की जीवनी) को बड़े ही विस्तार से देखा। हमने सुभाषचंद्र बोस के जीवन से जुडे बहुत से सवालो के जवाब को इस लेख मे आसान भाषा में समझा। जैसे की सुभाषचंद्र बोस का जन्म कहाँ हुआ था, सुभाषचंद्र बोस के माता का नाम, सुभाषचंद्र बोस के पिता का नाम और साथ ही सुभाषचंद्र बोस के नारे आदि ऐसे ही बहुत से महत्वपूर्ण प्रश्नो के उत्तर को हमने यहा समझा। जिससे की आपको सुभाषचंद्र बोस की जीवनी अच्छे से समझ में आ गई होगी।

हमे आशा है की आपको यह आर्टिकल जरुर से अच्छा लगा होगा। और हम उमीद करते है की इस लेख की सहायता से आपको subhash chandra bose ka jivan parichay को समझने में काफी मदद मिली होगी। अगर आपके मन में इस आर्टिकल से सम्बंधित या अन्य कोई सवाल हो तो, आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है। साथ ही इस subhash chandra bose ki jeevani को आप अपने सहपाठी और मित्रों के साथ शेयर जरुर करे।

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