डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय | Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography In Hindi

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography In Hindi

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय, जीवनी, बायोग्राफी, जन्म, धर्म, जाति, शिक्षा, माता-पिता, पुरस्कार, मृत्यु (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan ki Jivani, Biography, Religion, Caste, Family, award, death)

इस आर्टिकल में हम भारत के पहले उपराष्ट्रपति तथा द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जीवन परिचय को विस्तार में समझेंगे, यहा पर हम इनके जीवन से सम्बंधित बहुत से प्रश्नों को देखेंगे जैसे की, सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कहां हुआ और कब हुआ, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के माता-पिता का नाम, डॉक्टर राधाकृष्णन की शादी कब हुई, सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कितने बच्चे थे, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति कब बने आदि। इन सभी सवालों के जवाब आपको इस लेख में बिल्कुल विस्तार से मिल जायेंगे तो अगर आप सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय अच्छे से समझना चाहते है तो, इस आर्टिकल को पुरा शुरू से अन्त तक अवश्य पढ़े। 

बीसवीं सदी की शुरुआत में जब वैज्ञानिक प्रगति अपने चरम पर थी, तब विश्व को अपने दर्शन से प्रभावित करने वाले महान् आध्यात्मिक नेताओं में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सर्वप्रमुख थे। उन्होंने कहा - "चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद, अब हमें मनुष्य की तरह ज़मीन पर चलना भी सीखना है।" इसी क्रम में मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा- "मानव का दानव बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना, उसका चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है।"

नाम सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जन्म तिथि 5 सितंबर 1888
जन्म स्थान तिरुट्टनी, तमिल नाडु (भारत)
मृत्यु तिथि 17 अप्रैल 1975
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिल नाडु (भारत)
आयु (मृत्यु के समय) 86 वर्ष
मृत्यु का कारण हृदयाघात
पिता सर्वपल्ली वीरासमियाह
माता सीताम्मा
पत्नी सिवाकामू
संतान 6
पुत्रियां पद्मावती, रुक्मिणी, सुशीला, सुंदरी और शकुंतला
पुत्र सर्वपल्ली गोपाल
राष्ट्रीयता भारतीय
धर्म हिन्दू
जाति ब्राह्मण
राजनीतिक दल स्वतंत्र
पुरस्कार भारत रत्न (1954), टेंपलटन पुरस्कार (1975)


डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय एवं शिक्षा (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Ka Jivan Parichay)

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर, 1888 को मद्रास (चेन्नई) शहर से लगभग 50 किमी दूर तमिलनाडु राज्य के तिरुतनी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी तथा माता का नाम सिताम्मा था। उनके पूर्वजों का गाँव 'सर्वपल्ली' था, जिसके कारण उन्हें अपने नाम के आगे 'सर्वपल्ली' विरासत में मिला। उनका परिवार अत्यन्त धार्मिक था। 

उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल, तिरुपति तथा बेल्लौर कॉलेज, बेल्लौर में प्राप्त की। वर्ष 1905 में उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया और यहाँ से बी ए तथा एम ए की उपाधि प्राप्त की। वे अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान् आध्यात्मिक राजनेता थे, जो सभी धर्मावलम्बियों के प्रति गहरा आदरभाव रखते थे। राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल में कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा शिष्टमण्डलों का नेतृत्व किया। 21 वर्ष की अल्पायु में ही वर्ष 1909 में वे मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक नियुक्त हुए। 

बाद में उन्होंने मैसूर एवं कलकत्ता विश्वविद्यालयों में भी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके बाद कुछ समय तक वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। इसके अतिरिक्त , काशी विश्वविद्यालय में भी उन्होंने कुलपति के पद को सुशोभित किया। वर्ष 1939 में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राच्य धर्म और आचार विभाग का विभागाध्यक्ष बना दिया गया। वे वर्ष 1948 - 49 में यूनेस्को के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1950 में उन्हें रूस में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया था। वर्ष 1952 - 62 की अवधि में वे भारत के उपराष्ट्रपति रहे। बाद में वे वर्ष 1962 में राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए और इस पद पर वर्ष 1967 तक बने रहे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का साहित्यिक योगदान

राधाकृष्णन ने दर्शन और संस्कृति पर अनेक ग्रन्थों की रचना की, जिनमें 'द फ़िलॉसफी ऑफ़ द उपनिषद्स' , 'भगवद्गीता' , 'ईस्ट एण्ड वेस्ट-सम रिफ्लेक्शंस' , 'ईस्टर्न रिलीजन एण्ड वेस्टर्न थॉट' , 'इण्डियन फिलॉसफी' , 'एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ़ लाइफ' , 'हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ' इत्यादि प्रमुख हैं। भारतीय संस्कृति, सत्य की खोज एवं संस्कृति तथा समाज हिन्दी में अनुवादित उनकी लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं।

डॉ. राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल में लगभग 150 पुस्तकों का लेखन तथा सम्पादन किया था। 'गीता का अनुवाद' नामक कृति को उन्होंने बापू को समर्पित किया। उनकी प्रथम पुस्तक का नाम था - 'द फिलॉसोफ़ी ऑफ रवीन्द्रनाथ टैगोर'। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए भारत तथा विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉ. राधाकृष्णन को मानद उपाधियों प्रदान कीं। दुनियाभर के प्रमुख विश्वविद्यालयों ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।

इनमें हॉवर्ड विश्वविद्यालय तथा ओबर्लिन कॉलेज द्वारा प्रदत्त 'डॉक्टर ऑफ लॉ' की उपाधियाँ प्रमुख हैं। उनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर पोप ने उन्हें सम्मानित किया था। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया। 'भारत रत्न' से सम्मानित किए जाने वाले वह भारत के प्रथम तीन गौरवशाली व्यक्तियों में से एक थे।

ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वर्ष 1937 में सर, जर्मनी ने वर्ष 1954 में जर्मन बीयर ले मेरिट, मंगोलिया ने वर्ष 1957 में मास्टर ऑफ़ विजडम तथा जर्मनी ने एक बार फिर गोयथे प्लेक्यूटे एवं इंग्लैण्ड ने ऑर्डर ऑफ़ मेरिट से सम्मानित किया। डॉ. राधाकृष्णन भाषण कला में इतने निपुण थे कि उन्हें विभिन्न देशों में भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शन पर भाषण देने के लिए बुलाया जाता था। 

उनमें विचारों, कल्पना तथा भाषा द्वारा लोगों को प्रभावित करने की ऐसी अद्भुत शक्ति थी कि उनके भाषणों से लोग मन्त्रमुग्ध रह जाते थे। उनके भाषणों की यह विशेषता दर्शन एवं अध्यात्म पर उनकी अच्छी पकड के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिक शक्ति के कारण भी थी। उनके राष्ट्रपतित्व काल के दौरान वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध तथा वर्ष 1965 में भारत-पाक युद्ध लड़ा गया था। इस दौरान उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों से भारतीय सैनिकों के मनोबल को ऊँचा उठाने में अपनी सराहनीय भूमिका अदा की।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दार्शनिक के रूप में

राधाकृष्णन के कुछ प्रसिद्ध विचार ये हैं- "दर्शनशास्त्र एक रचनात्मक विद्या है। प्रत्येक व्यक्ति ही ईश्वर की प्रतिमा है। अन्तरात्मा का ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता है। दर्शन का उद्देश्य जीवन की व्याख्या करना नहीं, बल्कि जीवन को बदलना है। एक शताब्दी का दर्शन ही दूसरी शताब्दी का सामान्य ज्ञान होता है। दर्शन का अल्पज्ञान मनुष्य को नास्तिकता की ओर झुका देता है, परन्तु दार्शनिकता की गहनता में प्रवेश करने पर मनुष्य का मन, धर्म की ओर उन्मुख हो जाता है।

धर्म और राजनीति का सामंजस्य असम्भव है, एक सत्य की खोज करता है, तो दूसरे को सत्य से कुछ लेना-देना नहीं।" वर्ष 1967 में राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद वे संन्यासी दार्शनिक के रूप में एकान्तवास करने लगे थे। 16 अप्रैल, 1975 को डॉ. राधाकृष्णन की मृत्यु हो गई, परन्तु अपने जीवनकाल में अपने ज्ञान से जो आलोक उन्होंने फैलाया था, वह आज भी पूरी दुनिया को आलोकित कर रहा है। 

बड़े-से-बड़े पद पर रहकर भी वे हमेशा विनम्र बने रहे और राजनीति के दाँव-पेंच ने उन्हें कभी भी विचलित नहीं किया। वे उदारता, कर्त्तव्यपरायणता, सनातन मंगल भावना, ईमानदारी और सहजता इन सबके साकार प्रतिबिम्ब थे। का उन्हें गर्व था। यही कारण है कि उनके जन्मदिन 5 सितम्बर को वे एक महान् शिक्षाविद् भी थे और शिक्षक 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

भारत सरकार ने शिक्षा जगत में सुधार लाने के लिए उनकी अध्यक्षता में राधाकृष्णन आयोग का गठन किया। इस आयोग ने शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए अनेक सुझाव दिए। 'गीता' में प्रतिपादित कर्मयोग के सिद्धान्त के अनुसार, वे एक निर्विवाद निष्काम कर्मयोगी थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति के उपासक तथा राजनीतिज्ञ दोनों ही रूपों में एक विश्व नागरिक की भाँति मानव समाज का प्रतिनिधित्व किया। वे आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका ज्ञानालोक हमेशा हमारा मार्ग प्रदीप्त करता रहेगा।

FAQ : डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन से सम्बंधित कुछ प्रश्न उत्तर

प्रश्न -- सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म कब हुआ?
उत्तर -- सर्वपल्ली राधा कृष्ण का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था

प्रश्न -- सर्वपल्ली राधा कृष्ण का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर -- सर्वपल्ली राधा कृष्ण का जन्म तिरुट्टनी, तमिल नाडु (भारत) में हुआ था

प्रश्न -- सर्वपल्ली राधाकृष्णन के माता-पिता का नाम?
उत्तर -- सर्वपल्ली राधाकृष्णन के माता का नाम सीताम्मा और पिता का नाम सर्वपल्ली वीरासमियाह है

प्रश्न -- डॉ राधाकृष्णन की शादी कब हुई?
उत्तर -- 1904 में जब वे 16 वर्ष के थे

प्रश्न -- डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पत्नी का नाम क्या है?
उत्तर -- डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पत्नी का नाम सिवाकामू है

प्रश्न -- सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कितने बच्चे थे?
उत्तर -- सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 6 बच्चे थे जिनमें से 5 पुत्री और 1 पुत्र है

प्रश्न -- डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति कब बने?
उत्तर -- 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने

Conclusion

यहा पर हमने Sarvepalli Radhakrishnan Ka Jeevan Parichay को विस्तार से समझा, हमने यहा इनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़े कई सारे सवालों के जवाब जाने जिससे की आपको सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी को समझने में काफी असानी हुई होगी। हम आशा करते है की आपको इनकी जीवनी जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की इस आर्टिकल की सहायता से आपको Sarvepalli Radhakrishnan Ki Biography अच्छे से समझ में आ गया होगा। अगर आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल हो तो, आप हमे नीचे कमेंट करके पुछ सकते है और साथ ही इस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बायोग्राफी को आप अपने मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करे।

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