काव्य किसे कहते हैं | परिभाषा एवं भेद | Kavya Kise Kahate Hain

Kavya Kise Kahate Hain

इस आर्टिकल में हम काव्य किसे कहते हैं इसके बारे में एकदम विस्तार से समझेंगे। काव्य जिसे हम कविता भी कहते है, एक प्रकार का साहित्य है जो एक विचार व्यक्त करता है, एक दृश्य का वर्णन करता है या शब्दों की एक केंद्रित, गीतात्मक व्यवस्था में कहानी कहता है।

आपको बता दे की, काव्य से सम्बंधित प्रश्न बहुत से परीक्षाओं में पुछे जाते है, खासकर के बोर्ड की परीक्षा में हिन्दी के विषय में काव्य से जुड़े कई प्रश्न आते है। ऐसे में यदि आप उन छात्रों में से है, जो बोर्ड के परीक्षा की तैयारी कर रहा है। तो आप इस लेख को पूरे ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े, क्योकी इससे आपको परीक्षा में काफी मदद मिल सकती है।

यहा इस लेख में हम काव्य से सम्बंधित उन सभी प्रश्नों को समझने का प्रयास करेंगे, जो ज्यादातर विद्यार्थियों के मन में रहता है और बोर्ड के परीक्षा में भी आ सकता है, जैसे की- काव्य की परिभाषा क्या है, काव्य के भेद, काव्य कितने प्रकार के होते हैं, काव्य के कितने तत्व होते हैं, काव्य की विशेषताएं क्या हैं और महाकाव्य किसे कहते हैं आदि। काव्य से जुड़े ऐसे ही और भी बहुत से प्रश्नों के उत्तर आपको यहा पर बिल्कुल विस्तार से देखने को मिल जायेंगे। इसलिए यदि आप kavya kise kahate hain एकदम अच्छे से समझना चाहते है तो, इस लेख को पूरा अन्त तक अवश्य पढ़े। तो, चलिये अब हम काव्य किसे कहते हैं और इसके भेद को अच्छे से समझे।

काव्य किसे कहते हैं (Kavya Kise Kahate Hain)

साहित्य भाषा के माध्यम से जीवन की मार्मिक अनुभूतियों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यंजना के दो माध्यम माने गये हैं - गद्य और पद्य। छन्दबद्ध, लयबद्ध, तुकान्त पंक्ति ही पद्य मानी जाती हैं जिसमें विशिष्ट प्रकार का भाव-सौन्दर्य, सरसता और कल्पना का पुट होता है। मात्र छन्द - बद्ध रचना तब तक कविता नहीं मानी जाती जब तक उसमें सरसता युक्त भाव-सौन्दर्य न हो।

कविता की अनेक व्याख्याएँ की गयी हैं पर संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सामंजस्यपूर्ण व्यवस्थित शब्द-योजना से युक्त पंक्तियाँ, जिनमें दोष-रहित, गुण-सहित, अलंकार सहित रमणीयार्थ प्रतिपादक शब्द योजना हो, सरसता हो, विविध काव्य-गुणों का समावेश हो, गेयता, लयात्मकता, भावात्मकता और अलौकिक आनन्द या चमत्कार की योजना हो, जिसमें हृदय को आह्लादित करने की सामर्थ्य और भावोत्कर्ष की क्षमता हो, उन्हें ही कविता अथवा काव्य कहा जा सकता है।

इसी क्रम में डॉ॰ गुलाबराय की मान्यता भी विचारणीय है- काव्य, संसार के प्रति कवि की भाव-प्रधान (किन्तु क्षुद्र वैयक्तिक सम्बन्धों से मुक्त) मानसिक प्रतिक्रियाओं की कल्पना के ढाँचे में ढली हुई श्रेय की प्रेयरूप प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति है।

काव्य की परिभाषा (Kavya Ki Paribhasha)

काव्य हमारे भावो, विचारो की शाब्दिक अभिव्यक्ति है जो आनन्द की अनुभूति कराने वाली होने के कारण संरक्षणीय है। आसान भाषा में कहे तो, ऐसा वाक्य जिसे पढ़ कर आनन्द की अनुभूति होती है, उसे काव्य अथवा कविता कहते है

काव्य का विषय

काव्य को मानव-जीवन की व्याख्या माना जाता है। मानव-जीवन पर्याप्त विस्तृत व्यापक है। मानवेत्तर प्रवृत्ति भी मानव जीवन से सम्बद्ध है क्योंकि उसका भी मानव से नित्य सम्बन्ध है। फलतः कविता के विषय की सीमा आंकना सहज-सम्भव नहीं। मानव-जीवन और मानवेत्तर प्रकृति का प्रत्येक क्षेत्र, अंग, भाव-विचार, प्रकृति-प्रवृत्ति, समाज, राष्ट्र, धर्म, दर्शन, संस्कृति, आचरण, नैतिकता, मनोवेग आदि कविता के विषय बन सकते हैं।

हिन्दी साहित्य के इतिहास में यदि कविता के इतिहास पर विहंगम दृष्टि डाली जाय तो स्पष्ट हो सकेगा कि जहाँ वीरगाथा काल में वीर और शृंगार रस की प्रधानता रही और उससे सम्बन्धित सभी क्षेत्रों को स्पर्श किया गया, वहीं भक्तिकाल में भक्ति, नीति, शृंगार, वात्सल्य और प्रकृति-चित्रण के साथ-साथ मानव जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों का स्पर्श किया गया। आधुनिक काल जागरण का स्वर प्रारम्भ में फूटा, फिर हिन्दी कविता विभिन्न वादों की सीमा में सिमटती चली गयी।

काव्य ने कई रूप बदले और अनेक नवीन एवं अछूते विषय भी स्पर्श किये। मार्क्सवाद, फ्रायडवाद, भौतिकवाद, नवराष्ट्रवाद आदि की छाया में कविता रची गयी। इस काल में 'परिवर्तन' जैसे अरुप विषय भी सामने आये। प्रयोगवादी काव्य ने तो अनेक अछूते विषयों को उठाया छिपकली की पूँछ, चूड़ी का टुकड़ा जैसे विषय भी सामने आये। व्यंग्य के क्षेत्र में तो मानव जीवन की न जाने कितनी विसंगतियों को समेटा गया और इस प्रकार हिन्दी कविता असीमित क्षेत्रों और विषयों को स्पर्श करती चली आ रही है।

काव्य के सौन्दर्य तत्त्व

कविता यानी काव्य में मुख्यतः भाव सौन्दर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य और अप्रस्तुत विधान का सौन्दर्य होता है।

भाव सौन्दर्य

इसे भाव तत्त्व भी कहा जाता है। भाव तत्त्व का सौन्दर्य प्रत्येक कविता का मौलिक धर्म अथवा आत्मा होता है। भाव ही विविध अवयवों का संयोग प्राप्त करके रस रूप को प्राप्त होता है और काव्य के उद्देश्य की सिद्धि करता है। मानव-जीवन, भावों की अक्षय निधि है, उसमें विविध प्रकार के भाव प्रतिक्षण उठते रहते हैं अतः काव्य में भावों का वैविध्य अपेक्षित है। कवि विभिन्न स्थायी और संचारी भावों की चित्र-विचित्र नियोजना से कविता में भावोत्कर्ष लाकर कविता में भावों की व्यापकता लाता है। रसात्मक वाक्य ही काव्य कहलाता है।

रस नौ माने गये हैं — वीर, शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, शान्त, भयानक, वीभत्स और अद्भुत परवर्ती विद्वानों ने भक्ति और वात्सल्य को भी इस मान लिया। प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव होता है। यथा- रति, क्रोध, उत्साह, निर्वेद आदि। इन स्थायी भावों की रसात्मक स्थिति को ही भाव-सौन्दर्य माना जाता है। इन स्थायी भावों से ही जुड़े अनेक मनोवेग भी होते हैं। मनोवेग आधारित भाव चित्रण रसाधारित है और रस की पूर्णता भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों की योजना पर आधारित है। अतः पूर्ण रसात्मकता की स्थिति ही कविता का भाव-सौन्दर्य माना जा सकता है।

विचार सौन्दर्य

श्रेष्ठ काव्य की रचना का लक्ष्य मनोरंजन करना अथवा जन समुदाय को तृप्त करना नहीं होता। कवि का अपना एक जीवन दर्शन होता है, एक चिन्तन पद्धति होती है जिसके आधार पर वह काव्य रचना में प्रवृत्त होता है। भामह की मान्यता है - कवि के सक्षम जीवन और जगत के चिरन्तन सत्यों के उद्घाटन का दायित्व भी होता है। इसी कारण जब कवि अपने विचारों का समावेश काव्य में करता है तभी काव्य उत्कृष्ट बन पाता है।

काव्य तभी कल्याणकारी हो सकता है, जब उसमें भाव-सौन्दर्य के साथ विचार तत्त्व का भी समावेश हो। पर कवि से यह भी अपेक्षित है कि वह अपने विचारों को सरल ढंग से हृदयग्राही ढंग से व्यक्त करे। ऐसा प्रतीत न हो कि वह उपदेशक या धर्म प्रचारक हो गया है। साथ ही कवि को श्रेष्ठ विचारों की योजना प्रस्तुत करनी चाहिये। कबीर ने जीवन जगत की क्षण भंगुरता को कितनी सरलता और सादगी से उभार दिया है
पानी केरा बुद बुदा अस मानुस की जान ।
देखत ही छिप जायेगा तारा जस परभात । 

नाद सौन्दर्य

कविता छन्दवद्ध रचना है। छन्द मात्राओं, वर्णों तथा ध्वनियों पर आधारित है। जो गति और यति को भी साथ लेकर चलता है। जिससे कविता में प्रवाह, लय एवं संगीतात्मकता समाहित हो जाती है। इसमें स्वर, लय और ध्वनि भी महत्त्वपूर्ण है। ध्वनि को ही नाद-सौन्दर्य कहा जाता है।

यह नाद सौन्दर्य समुचित वर्णों, समुचित शब्दों के सार्थक प्रयोग और उचित विन्यास से ही उत्पन्न होता है और संगीतात्मकता की सृष्टि करता है। वर्णों की आवृत्ति, लघु दीर्घ मात्राओं की योजना, यमक, अनुप्रास आदि भी नाद सौन्दर्य की सृष्टि में सहायक होते हैं।

जनम जनम की पूँजी पाई जग में सभी खवायो।

यहाँ 'जनम' 'जनम' का प्रयोग विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न कर रहा है।
संध्या का झुटपुट
बासों का झुरमुट हैं
चहक रही चिड़ियाँ
टी. वी. टी. टुट् टुट् टुट् 
पन्त की इन पंक्तियों में 'झुरमुट' 'झुटपुट' और टी. वी. टी. टुट् टुट् टुट् में नाद सौन्दर्य बड़ा प्रभावी है जिसमें ध्वनि साम्य का आधार लिया गया है।

अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य

अप्रस्तुत, प्रस्तुत का विलोम है अर्थात् जो सामने है वह प्रस्तुत है और जो सामने न हो वह अप्रस्तुत है। जहाँ भावों का उत्कर्ष दिखाने और वस्तुओं के रूप-गुण व क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने हेतु जब उनसे मिलती-जुलती किसी वस्तु, भाव या तत्त्व को सामने लाकर खड़ा कर दिया जाता है तो वही अप्रस्तुत कहा जाता है। अलंकार प्रयोग में प्रस्तुत को उपमेय और अप्रस्तुत को उपमान कहा जाता है। इन सादृश्यों की योजना से जहाँ भाव सौन्दर्य की सृष्टि में सहायता मिलती है, वही काव्य में कलात्मक सौन्दर्य भी उभर आता है। यह सादृश्य विधान कभी रूप-साम्य पर, कभी धर्म-साम्य पर और कभी प्रभाव साम्य पर आधारित होता है।

(अ) रूप साम्य

कैधौं तरुन तमाल बेलि चढ़ि, जुग फल बिम्ब सुपाके ।
नासा कीर आइ मनु बैठ्यो, लेत बनत नहिं ताके ॥ 
यहाँ अधर बिम्बाफल और कृष्ण का तन तरुण तमाल है। नासिका तोता है। ये सादृश्य रूप साम्य पर ही आधारित हैं और एक प्रभावी बिम्ब की सृष्टि भी करते हैं अत: जहाँ सादृश्य चयन में रूप को महत्त्व दिया जाता है, वहाँ सादृश्य रूप साम्य पर ही आधारित होता है।

(आ) धर्म साम्य

जहाँ प्रस्तुत और अप्रस्तुत में एक ही धर्म की स्थिति या क्रिया की स्थिति दर्शायी जाती है, वहाँ सादृश्य धर्म साम्य पर ही आधारित होता है।
मोतियों जड़ी ओस की डार
हिला जाता चुपचाप बयार।
वृक्ष की डाल पर ओस कणों को, जो मोती से दमकते हैं उन्हें वायु गिरा देती है उसी प्रकार वैभव, विलास भरे जीवन को परिवर्तन रूपी वायु चुपचाप ढुलका देता है। इस प्रकार वायु और 'परिवर्तन' का एक ही धर्म है। दुलका देना और चुपचाप ढुलका देना। अतः यहाँ प्रभावी धर्म साम्य की योजना है।

(इ) भाव साम्य

जहाँ सादृश्य भावात्मक हो और भावात्मक स्थिति को व्यंजित करता हो, वहाँ भाव-साम्य ही माना जाता है।
अचिरता देख जगत की आप
शून्य भरता समीर निःश्वास
डालता पातों पर चुपचाप
ओस के आँसू नीलाकाश
सिसक उठता समुद्र का मन
सिहर उठने उगुनन।
यहाँ शून्य का विश्वास भरना, नीलाकाश का आँसू डालना, समुद्र की सिसकी आदि, परिवर्तन की विनाश लीला और जगत् की अचिरता को भली प्रकार उभार देते हैं।

अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य ही निराला होता है। उसके माध्यम से काव्य में सरसता, प्रभावोत्पादकता तो आ ही जाती है, साथ ही गहरी अर्थ व्यंजना भी समाहित हो उठती है और काव्य अन्त: बाह्य सौन्दर्य से युक्त हो उठता है। छायावादी काव्य में तो 'सूक्ष्म' सादृश्यों की बड़ी प्रभावी योजना हुई है। वहाँ तो 'बिजली के फूल' की भी कल्पना कर ली गयी है।

काव्य का आस्वादन

काव्य किस प्रकार समझा जाये, उसके मूल तक कैसे पहुँचा जाये, उसका सारा रस कैसे लूटा जाये यह भी एक जटिल समस्या है। इस समस्या का समाधान भी बताया गया है। काव्य का पूर्ण रस प्राप्त करने हेतु प्रथमतः शब्दार्थ का ज्ञान ही अपेक्षित है। जब शब्द का यथार्थ और मूल अर्थ स्पष्ट हो जाता है, जिसे मुख्यार्थ कहा जाता है तो उसमें निहित या ध्वनित अन्य अर्थों तक भी पहुँचा जा सकता है, जिन्हें लक्ष्यार्थ या व्यंग्यार्थ कहा जाता है। मुख्यार्थ को समझने में 'अन्वय' की प्रक्रिया बड़ी सहायक होती है अर्थात् शब्दों को इस क्रम में लिखना और उसी ढंग से लिखना जिस प्रकार उन्हें गद्य में लिखा जाता है। यह 'अन्वय' शब्दों का परस्पर सम्बन्ध स्पष्ट कर देता है।

'अन्वय' की प्रक्रिया के साथ ही शब्दों में निहित लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ भी स्पष्ट होते चले जाते हैं। इसके साथ ही शब्द-योजना की सारी बारीकी भी स्पष्ट हो जाती है। प्रायः कवि शब्दों का प्रयोग किसी विशेष अभिप्राय (साभिप्राय) से करता है तो कभी एक ही शब्द अनेक अर्थ भी धारण किये रहता है, कभी एक ही शब्द अलग - अलग अर्थों में एकाधिक बार प्रयुक्त होता है, कभी विपरीतार्थक या विरोधी शब्दों के प्रयोग से भाव सृष्टि की जाती है और कभी एक ही प्रसंग कई शब्दों से ध्वनित किया जाता है। यह सूक्ष्म भेद भी 'अन्वय' ही समझा देता है।

कविता का अर्थ ग्रहण मात्र ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, कविता का मूल कथ्य क्या है, उसमें किन तत्वों को समेटा गया है, उनके माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है , यह भी समझना आवश्यक है  इसके लिए भी एक सरल प्रक्रिया है

(i) कविता को एकाधिक बार पढ़ना, अन्वय करके लिखना, प्रत्येक शब्द का स्पष्ट अर्थ समझना।
(ii) उसमें निहित मूलभाव को समझने का प्रयास करना।
(iii) रस, अलंकार, छन्द, गुण, शब्द शक्ति को पकड़कर उनके माध्यम से अर्थ समझना।

काव्य के भेद (Kavya Ke Bhed)

भारतीय आचार्यों ने काव्य के दो भेद किये हैं - दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य। दृश्य काव्य के अन्तर्गत नाटक, एकांकी आते हैं और श्रव्य काव्य के अन्तर्गत पद्य को माना जाता है। पद्य को ही काव्य माना जाता है। इसकी श्रेणी में प्रबन्ध और मुक्तक दो भेद हैं।

प्रबन्ध काव्य के भी भेद माने गये हैं — महाकाव्य और खण्डकाव्य।

(क) महाकाव्य किसे कहते हैं

महाकाव्य एक सर्गबद्ध रचना है जो महान् चरित्रों से सम्बद्ध होता है। उसका आकार तो बड़ा होता ही है उसमें चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष) का वर्णन भी होता है। उसके प्रारम्भ में नमस्कार (स्तुति) और वस्तु-निर्देश की योजना भी होती है। उसमें विविध वर्णन, प्राकृतिक चित्रण और सामाजिक विधि विधानों का संयोजन भी अपेक्षित है। इसमें शान्त, वीर, शृंगार में से कोई एक रस प्रधान होता है तथा शेष गौण रूप में आते हैं। इसमें किसी महत् उद्देश्य का होना भी अपेक्षित है। हिन्दी में रामचरितमानस पद्मावत, सूरसागर, साकेत, प्रियप्रवास, कामायनी और लोकायतन आदि श्रेष्ठ महाकाव्य हैं।

(ख) खण्डकाव्य किसे कहते हैं

खण्डकाव्य में पूर्ण जीवन न ग्रहण करके खण्ड जीवन ही ग्रहण किया जाता है, पर उसकी रचना महाकाव्य के रचना विधान से भिन्न होकर भी उसके समान ही होती है। यह खण्ड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है, जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: पूर्ण प्रतीत होता है। उसमें महाकाव्य के लक्षण संकुचित रूप में रहते हैं। आकार की लघुता होते हुए भी इसमें समन्वित प्रभाव अपेक्षित है। अर्थात् इसमें कथा की एकता अनिवार्य है साथ ही इसमें भी महाकाव्य के समान कोई निश्चित उद्देश्य भी होना चाहिए।

हिन्दी में अनेक श्रेष्ठ खण्डकाव्य हैं। आदि काल में 'गोरा बादल की कथा' (जटमल) भक्ति काल में 'सुदामा चरित' (नरोत्तमदास) रीति काल में 'श्याम सनेही' (आलम) और आधुनिक काल में 'हल्दी घाटी' (श्याम नारायण पाण्डेय), 'संशय की एक रात' (नरेश मेहता), आदि प्रमुख हैं।

(ग) मुक्तक काव्य किसे कहते हैं

प्रबन्ध काव्य में कथा रहती है अतः उसमें पूर्वापर सम्बन्ध रहता है। परन्तु मुक्तक में पूर्वापर सम्बन्ध का मांत्र एक निर्वाह आवश्यक नहीं रहता, क्योंकि इसका प्रत्येक छन्द स्वतन्त्र रहता है और उसमें कोई कथा नहीं होती, या अनेक भाव या विचार होते हैं या किसी घटना का संकेत होता है। इसमें कवि की वैयक्तिक अनुभूतियों, भावनाओं और आदर्शों की प्रधानता रहती है।

भाव-प्रधानता के कारण इसमें गीतात्मकता का विशेष स्थान रहता है। यह मुक्तक आगे पीछे के पदों से सम्बन्ध रखकर भी एक ऐसा निरपेक्ष छन्द है जो स्वत: रसोद्रेक कराने में पूर्णत: समर्थ होता है। तुलसी की विनय पत्रिका के पद 'कबीर की साखी' बिहारी के दोहे मुक्तक काव्य के ही रूप आचार्यों ने मुक्तक के कुछ भेद भी किये हैं, जिनमें डॉ. रामसागर त्रिपाठी ने मुक्तकों को इस प्रकार बाँटा है।

(1) रसात्मक मुक्तक — इसमें भाव , भाव सबलता और रस आदि मनोवृत्तियों की समस्त दिशाएँ आती हैं।

(2) धार्मिक मुक्तक — इस श्रेणी में पौराणिक, बौद्ध और जैन आदि की धार्मिक रचनाएँ, प्रार्थनाएँ आदि 1 आती हैं।

(3) प्रशस्ति मुक्तक — इस श्रेणी में राजाओं की वह प्रशंसा आती है जो आश्रित कवियों द्वारा गायी गयी है।

(4) सूक्ति मुक्तक — जिन रचनाओं में सबल काल्पनिकता अलौकिक वर्णन एवं उक्ति वैचित्र्य की प्रधानता होती है।

FAQ: काव्य से सम्बंधित कुछ प्रश्न उत्तर

प्रश्न -- काव्य की परिभाषा क्या है?

उत्तर -- सामंजस्यपूर्ण व्यवस्थित शब्द-योजना से युक्त पंक्तियाँ, जिनमें दोष-रहित, गुण-सहित, अलंकार सहित रमणीयार्थ प्रतिपादक शब्द योजना हो, सरसता हो, विविध काव्य-गुणों का समावेश हो, गेयता, लयात्मकता, भावात्मकता और अलौकिक आनन्द या चमत्कार की योजना हो, जिसमें हृदय को आह्लादित करने की सामर्थ्य और भावोत्कर्ष की क्षमता हो, उन्हें ही काव्य कहा जाता है।

प्रश्न -- काव्य के कितने भेद है?

उत्तर -- काव्य के दो भेद हैं - दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य

प्रश्न -- काव्य के कितने सौन्दर्य तत्व होते हैं?

उत्तर -- काव्य के चार सौन्दर्य तत्व होते हैं, जो निम्न है- भाव सौन्दर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य और अप्रस्तुत विधान का सौन्दर्य

निष्कर्ष

इस लेख के माध्यम से हमने Kavya Kise Kahate Hain इसके बारे में संक्षेप से जाना। हमने यहा काव्य से सम्बंधित जितने भी महत्वपूर्ण प्रश्न है उन सभी के उत्तर को समझा, जिससे की काव्य को अच्छे से समझने में  आपको काफी असानी हुई होगी। यदि आप बोर्ड के परिक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों में से है तो, आप इस लेख में दिये गए काव्य के सभी महत्वपुर्ण प्रश्नो को एकदम ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े, ताकी आपको इससे परिक्षा में मदद मिल सके।

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