अमीर खुसरो की कविताएं | Amir Khusro Ki Kavitayen

Amir Khusro Ki Kavitayen

इस लेख में हम अमीर खुसरो की कविताएं को विस्तार से देखेंगे। अमीर खुसरो का जन्म 1253 ईस्वी में पटियाली, कासगंज जिले, आधुनिक (उत्तर प्रदेश), भारत में हुआ था, जो उस समय दिल्ली सल्तनत में था। अमीर खुसरो का पूरा नाम अबू अल हसन यामिन उद दीन खुसरो है। वह एक इंडो-फ़ारसी सूफी गायक, संगीतकार, कवि और विद्वान थे, जो दिल्ली सल्तनत के अधीन रहते थे। इस लेख में हम उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताओं को आपके साथ शेयर करेंगे। अगर आप कविताएं पसंद करने वालों में से हैं, तो इस लेख में दी गई अमीर खुसरो की कविताएं जरूर पसंद आएंगी। तो अगर आप amir khusro ki kavitayen को एकदम अच्छे से पढ़ना चाहते हैं, तो इस लेख को बहुत ध्यान से और अंत तक पढ़ें।

यहां पर अमीर खुसरो की कविताओं की एक पीडीएफ फाइल भी शेयर की गई है, जिसे आप बड़ी आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं। और उस पीडीएफ की मदद से आप अपने समयानुसार कभी भी अमीर खुसरो की कविताएं पढ़ सकते हैं। अमीर खुसरो की हिंदी कविता pdf नीचे इस लेख में दिया गया है।

अमीर खुसरो की जीवनी (Amir Khusro Ki Jivani)

नाम अमीर खुसरो
असली नाम अबुल हसन यामीन उद-दीन खुसरौ
उपनाम "भारत की आवाज़" या "भारत का तोता" (तूती-ए-हिंद) "उर्दू साहित्य का पिता"
जन्म तिथि 1253
जन्म स्थान स्थानपटियाली, दिल्ली सल्तनत (अब उत्तर प्रदेश, भारत में)
मृत्यु तिथि 1325
मृत्यु स्थान दिल्ली, दिल्ली सल्तनत (अब दिल्ली, भारत में)
आयु मृत्यु के समय 71–72 वर्ष
राष्ट्रीयता भारतीय
पिता का नाम अमीर सैफ उद-दीन महमूद
माता का नाम हज़रत बीबी दौलत नाज़
शैलियां ग़ज़ल, रुबाई, कव्वाली, तराना
पेशा नसूफी, कवि, लेखक, गायक, संगीतकार, विद्वान

अमीर खुसरो की कुछ प्रसिध्द कविताएं (Amir Khusro Ki Kavitayen)

Amir Khusro Ki Kavitayen

परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना

परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना।
बिर का दुख बहुत कठिन है प्रीतम अब आजावना।
इस पार जमुना उस पार गंगा बीच चंदन का पेड़ ना।
इस पेड़ ऊपर कागा बोले कागा का बचन सुहावना।

छाप तिलक सब छीन्हीं रे

अपनी छबि बनाई के जो मैं पी के पास गई,
जब छबि देखी पी की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिला के।
बलि बलि जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा,
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
प्रेम भटी का मदवा पिलाय के, 
मतवारी कर दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
गोरी गोरी बहियाँ हरी हरी चूरियाँ
बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
खुसरो निजाम के बलि-बलि जाइए
मोहे सुहागन किन्हीं रे मोसे नैंना मिलाई के।
ऐ री सखी मैं तोसे कहूँ, मैं तोसे कहूँ, छाप तिलक..।

Amir Khusro Ki Kavitayen

बहुत कठिन है डगर पनघट की

बहुत कठिन है डगर पनघट की।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निज़ाम पिया।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
ज़रा बोलो निज़ाम पिया।
पनिया भरन को मैं जो गई थी।
दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी।
बहुत कठिन है डगर पनघट की।
खुसरो निज़ाम के बलि-बलि जाइए।
लाज राखे मेरे घूँघट पट की।
कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की।

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए, 
भाग लगे इस आँगन को।
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
देख सूरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहिं, आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ।
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।

Amir Khusro Ki Kavitayen

मेरे महबूब के घर रंग है री

आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री।

मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, 
निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
 अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, 
फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
 कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया, 
मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
 आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया। 
 वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।

अरे ऐ री सखी री, वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री, वो तो मुँह माँगे बर संग है री।

निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो, 
जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री। 
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
रंग सकल मोरे संग है री। 
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देख्यो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग। 
देस-बिदेस में ढूँढ़ फिरी हूँ, देस-बिदेस में।
आहे, आहे आहे वा, 
ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।

सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा। 
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री। 
आज रंग है ए माँ रंग है री।

ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। 
मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री। 
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी। 
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही। 
मेरे महबूब के घर रंग है री।

अमीर खुसरो की कविताएं pdf

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निष्कर्ष

इस लेख में हमने आपके साथ अमीर खुसरो की कुछ बेहतरीन कविताएँ साझा की हैं, जो आपको ज़रूर पसंद आई होंगी। इस लेख में दिये गए कविताएं आपको कैसा लगा कमेंट के माध्यम से आप अपनी राय हमारे साथ जरुर शेयर करें। हम आशा करते हैं कि आपको यह लेख पसंद आया होगा और हमें उमीद हैं कि यहां शेयर किये गए amir khusro ki kavita in hindi को पढ़कर आपको काफी अच्छा लगा होगा। यदि आपके मन मे इस लेख से संबंधित कोई प्रश्न है, तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। और साथ ही इस amir khusro ki kavita को आप कविता पसंद करने वाले अपने सभी दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें।

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