एनआरसी (NRC) क्या है | NRC का फुल फॉर्म क्या होता है

NRC क्या है

इस आर्टिकल में हम बात करने वाले है (NRC) के बारे मे, यहा पर हम बिल्कुल विस्तार से समझेंगे की nrc क्या है, nrc का full form और एनआरसी कब लागू हुआ आदि। तो अगर आप NRC के बारे में पूरी जानकारी जानना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल को पुरा शुरू से अन्त तक जरुर पढ़े। वर्ष 2019 में घुसपैठियों की पहचान के उद्देश्य से असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) की अन्तिम सूची जारी की गई, जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को बाहर कर दिया गया। एनआरसी का उद्देश्य भारतीय नागरिकों की सुरक्षा व जनकल्याण है, फिर केवल असम में इसे लागू करने से 19 लाख से अधिक लोग बाहर हो गए। 

यदि इसे पूरे देश में लागू किया गया, तो करोड़ों लोगों का भविष्य अँधेरे में चला जाएगा इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी मानवीय छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। आपको बता दे की भारत सरकार ने 2021 में इसे पूरे देश के बाकी हिस्सों में लागू करने की योजना की घोषणा की, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है। यहा इस लेख में हम आपके साथ एनआरसी के बारे में पुरी जानकारी शेयर करेंगे जैसे की एनआरसी क्या है, एनआरसी का फुल फॉर्म क्या होता है, एनआरसी की आवश्यकता क्यों आदि। इन सभी प्रश्नों को हम यहा बिल्कुल विस्तारपूर्वक से समझेंगे, जिससे की आपको nrc kya hai अच्छे समझ आ जाए। तो चलिये अब nrc details in hindi को अच्छे से समझे।


NRC का फुल फॉर्म क्या है (NRC Full Form In Hindi)

सबसे पहले हम NRC का फुल फॉर्म क्या होता है हिंदी और इंग्लिश में इसको समझ लेते है। तो, NRC का फुल फॉर्म National Register Of Citizens (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स) होता है, जिसे हम हिंदी में भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर कहते है। दोस्तो एनआरसी का उद्देश्य भारत के सभी कानूनी नागरिकों का दस्तावेजीकरण करना है ताकि अवैध प्रवासियों की पहचान की जा सके। 
NRC --- National Register Of Citizens
एनआरसी --- भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर

एनआरसी क्या है (NRC Kya Hai)

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) एक ऐसा दस्तावेज है जिससे पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। जिस व्यक्ति का इस रजिस्टर में नाम नहीं होता है, उसे अवैध नागरिक माना जाता है। इस रजिस्टर का मुख्य उद्देश्य होता है, भारत में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों विशेषकर घुसपैठियों की पहचान करना।

भारत में असम ही एक ऐसा राज्य है, जिसके पास राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर है, जिसे वर्ष 1951 की जनगणना के पश्चात् तैयार किया गया था।

एनआरसी की आवश्यकता क्यों

वर्ष 1947 में एक तरफ भारत को आजादी मिली, तो दूसरी तरफ भारत का विभाजन भी हो गया। इस विभाजन के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और विभाजन के बाद भी लोगों का आना-जाना दोनों ओर से जारी रहा। अत: असम के वैध नागरिकों की पहचान हेतु एनआरसी की आवश्यकता अनुभव की गई और वर्ष 1951 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1951 में ही असम का पहला एनआरसी जारी किया गया। एनआरसी से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण बिन्दु निम्नलिखित हैं -

▪︎ बांग्लादेश में भाषा विवाद व आन्तरिक संघर्ष के कारण लगभग 10 लाख बांग्लादेशी लोगों के असम में आगमन से यहाँ के मूल निवासियों में भाषायी, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई। फलत : असम के दो संगठनों — ऑल असम स्टूडेण्ट यूनियन और ऑल असमगण संग्राम परिषद् ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों के खिलाफ एक उग्र आन्दोलन चलाया। अन्ततः अगस्त, 1985 में केन्द्र की तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार और असम के आन्दोलन के नेताओं के बीच असम समझौता हुआ।

▪︎ असम समझौते के अन्तर्गत वर्ष 1951 से 1961 के बीच असम आए हुए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार दिया गया। इस समझौते में यह भी निर्णय लिया गया कि जो लोग वर्ष 1971 के बाद असम आए हैं, उन्हें वापस भेज दिया जाएगा तथा जो लोग वर्ष 1961 से 1971 के बीच आए हैं, उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया जाएगा, लेकिन नागरिकता के अन्य सभी अधिकार प्रदान किए जाएँगे।

▪︎ नवम्बर, 1999 में केन्द्र की तत्कालीन एनडीए सरकार ने असम समझौते के अन्तर्गत एनआरसी को अद्यतित (अपडेट) करने की बात की। फिर मई, 2005 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने भी कहा कि एनआरसी को अद्यतित करना चाहिए, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

▪︎ वर्ष 2013 में असम पब्लिक वर्क व अन्य गैर - सरकारी संगठनों ने इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। फलत: वर्ष 2015 से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और निगरानी में यह कार्य शुरू हुआ और जुलाई, 2018 में ड्राफ्ट पेश किया गया तथा वर्ष 2019 में नवीन एनआरसी सूची को अपडेट अर्थात् अद्यतन कर आँकड़े सहित इसकी अन्तिम सूची जारी की गई।

नवीन एनआरसी में नागरिकता

असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नागरिकता सिद्ध करने के लिए मूलभूत शर्त यह थी कि आवेदक के परिवार के सदस्यों के नाम या तो वर्ष 1951 में तैयार की गई पहली एनआरसी में हों या 24 मार्च, 1971 तक की मतदाता सूची में हों।

इसके अतिरिक्त लोगों को शरणार्थी पंजीकरण प्रमाण-पत्र, एलआईसी पॉलिसी, भूमि और किरायेदार रिकॉर्ड, नागरिकता प्रमाण-पत्र, आवासीय प्रमाण-पत्र, शैक्षिक प्रमाण-पत्र, न्यायालय रिकॉर्ड, पासपोर्ट आदि दस्तावेज प्रस्तुत करने का विकल्प दिया गया था। नवीन एनआरसी सूची से बड़ी संख्या में लोगों के सूची के बाहर होने पर नागरिकता को लेकर विरोध शुरू हो गया, हालाँकि भारत सरकार द्वारा सूची से बाहर हुए लोगों के लिए विकल्प दिया गया।

एनआरसी से बाहर हुए लोगों के पास बचा हुआ विकल्प

जिन लोगों का नाम एनआरसी की अन्तिम सूची में नहीं है, उनकी समस्याओं का समाधान निकालने हेतु सरकार के द्वारा निम्न विकल्प दिए गए हैं 

▪︎ केन्द्र सरकार के अनुसार, जिन लोगों के नाम छूट गए हैं या शामिल नहीं हो पाए हैं, उन्हें विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपील करनी होगी। इसके लिए असम में काफी संख्या में न्यायाधिकरणों की स्थापना की गई है। 

▪︎ अपील की सीमा 60 से बढ़ाकर 120 दिन कर दी गई।

▪︎ यदि कोई व्यक्ति विदेशी न्यायाधिकरण में अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं करता है, तो वह उच्च न्यायालय, उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय भी जा सकता है।

▪︎ भारत सरकार के अनुसार जब तक कोई व्यक्ति अपने समक्ष मौजूद सभी कानूनी विकल्पों का उपयोग नहीं कर लेता, तब तक उसे अवैध प्रवासी या राज्यविहीन नहीं माना जाएगा और वह नागरिकों के रूप में लाभ प्राप्त करता रहेगा।

▪︎ जो लोग सभी कानूनी विकल्प के उपयोग करने के बाद भी अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाएँगे, उन्हें तकनीकी रूप से राज्यविहीन व्यक्ति कहा जाएगा और उन्हें हिरासत में ले लिया जाएगा।

एनआरसी के पक्ष में तर्क

भारत स्वयं विशाल जनसंख्या वाला देश है, ऐसे में देश में बहुत बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों/शरणार्थियों को शरण देना सम्भव नहीं है।
भारत में बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) की ओर से शरणार्थियों का आगमन वर्ष 1971 के युद्ध में भारत के भाग लेने का मुख्य कारण था। अत: जिस समस्या के समाधान के लिए देश एक युद्ध लड़ चुका है, उसके बाद भी यदि वह समस्या बनी रहे तो उसके समाधान के लिए एनआरसी की प्रक्रिया का अपनाया जाना बहुत जरूरी है।
सामरिक दृष्टि से पूर्वोत्तर क्षेत्र का भारत की सुरक्षा के सन्दर्भ में काफी महत्त्वपूर्ण स्थान है। फिर यह क्षेत्र विकास की धारा से आज काफी दूर है। इस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियाँ तथा संसाधनों की सीमितता एक सीमा से अधिक आबादी का भार नहीं सह सकती है, इसलिए यहाँ अवैध प्रवासियों या घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें हटाने की जरूरत है। असम व अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की विविध जनजातियों की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है। अत: अवैध प्रवासियों के आगमन से इनकी संस्कृति पर भी खतरा हो सकता है।
भारत व बांग्लादेश की सीमा बहुत बड़ी और दुर्गम है, जिस कारण असामाजिक तत्त्वों का भारत में प्रवेश आसानी से हो जाता है और भारत की आन्तरिक सुरक्षा पर संकट छा जाता है। इस कारण समय-समय पर नागरिकों का अद्यतन रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए।
आन्तरिक सुरक्षा का यह मुद्दा असम के अतिरिक्त पूर्वोत्तर व पूरे भारत में लागू होता है, इसलिए पूरे देश में एनआरसी को लागू करने की बात की जा रही है। यद्यपि यह अभी भविष्य के गर्त में है।

एनआरसी के विपक्ष में तर्क

इसके विपक्ष में लोगों का कहना है कि अचानक से किसी भी स्थान पर 19 लाख से अधिक लोगों की नागरिकता छिनने पर संकट आ जाना लोकतान्त्रिक व मानवीय मूल्यों के विपरीत है।
सरकार द्वारा अपनी नागरिकता सिद्ध करने की बाध्यता नागरिकों पर आरोपित की गई थी और यह सिद्ध करना कि किसी व्यक्ति का नाम वर्ष 1971 के दस्तावेज में शामिल था कि नहीं, व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता।
जिन लोगों का नाम अन्तिम सभी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद राज्यविहीन श्रेणी में आएगा, उन्हें कब तक हिरासत में रखा जाएगा, साथ ही हिरासत में रखे गए लोगों के बच्चों का भविष्य क्या होगा?
इतनी विशाल आबादी की यदि नागरिकता छिन जाएगी, तो इससे देश की आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा पर और ज्यादा खतरा बढ़ सकता है। फिर पूर्वोत्तर भारत वैसे ही बहुत संवेदनशील क्षेत्र है, ऐसे में इस प्रकार का निर्णय घातक भी सिद्ध हो सकता है।
कुछ लोगों का कहना है कि सरकार ने समस्त राजनीतिक हितधारकों को विश्वास में नहीं लिया है, जबकि इस तरह का निर्णय जनतान्त्रिक रूप से होना चाहिए।
इससे भारत-बांग्लादेश के सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
एनआरसी की अन्तिम सूची में जगह नहीं पाने वालों में महिलाओं की बड़ी संख्या है, जो शादी करके राज्य में आई थीं।
लाखों लोगों की नागरिकता यदि समाप्त हो जाती है, तो इससे भारत की शान्तिप्रिय व मानवीय छवि प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगी।

निष्कर्ष

वस्तुत: मानवीय और लोकतान्त्रिक मूल्य की दृष्टि से नागरिकता प्रदान करना उचित अवश्य है, परन्तु राष्ट्रहित सर्वोपरि है। अतः राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के उद्देश्य पर सन्देह नहीं किया जा सकता है। यद्यपि यह हो सकता है कि इसकी प्रक्रिया में कुछ कमी हो सकती है, जिसे दूर किया जाना चाहिए, जिससे किसी भी नागरिक की नागरिकता अवैध रूप से छीनी नहीं जानी चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

एनआरसी क्या है वीडियो के माध्यम से समझे


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