वायुमंडल किसे कहते हैं ? वायुमंडल की संरचना और संघटन


वायुमंडल किसे कहते हैं (vayumandal kise kahate hain)

पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए, रंगहीन, गंधहीन, एवं स्वादहीन गैसों का आवरण 'वायुमण्डल' Atmosphere कहलाता है। दुसरे शब्दो में वायु का वह आवरण जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है, उसे हम वायुमण्डल कहते है। पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिसके वायुमंडल में प्राणदायिनी ऑक्सीजन गैस पाया जाता है।

वायुमंडल का संघटन (Atmosphere In Hindi)

वायुमंडल के निर्माण में मुख्यतः तीन तत्वों का योगदान है।
(1) गैसें (2) जलवाष्प (3) धूल के सूक्ष्म कण।

1) गैसें 

वायुमंडल में गैसों का प्रतिशत 
नाइट्रोजन (N2)   ---   78.3%
ऑक्सीजन (O2)   ---   20.93%
ऑर्गन (Ar)   ---   0.93%
हाइड्रोजन (H2)   ---   0.01%
मीथेन   ---   0%
अमोनिया   ---   0%

2) जलवाष्प

▪︎ आयतन की दृष्टि से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा बहुत कम (0-4%) होती है 
▪︎ वायुमंडल की निचली परत में जलवाष्प की उपस्थिति के कारण ही अनेक मौसमी परिवर्तन जैसे-- बादलों का बनना, बिजली का चमकना, तूफान आना, हिमपात एवं वर्षा होना आदि संभव हो पाते है।

3) धूल के सूक्ष्म कण

▪︎ धूल के सूक्ष्म कण भी वायुमंडल की निचली परत तक ही सीमित रहते हैं।
▪︎ यह वायुमंडल में लटके रहते है तथा प्रकाश की प्रकीर्णन करते हैं।
▪︎ इनमें आद्रताग्राही गुण होता है जिसके कारण ये 'द्रवण' की क्रिया में 'न्यूक्लियाई का कार्य करते हैं।


वायुमंडल की संरचना (vayumandal ki sanrachna)

हजारों किलोमीटर की ऊँचाई तक फैले वायुमण्डल का निम्न भाग ही मनुष्य के लिए युगों में महत्त्वपूर्ण रहा है। किन्तु 20 वीं शताब्दी में पदार्पण करते ही वायुयान तथा रेडियो युग का आरम्भ हुआ तथा इस प्रसंग में वायुमण्डल के ऊपरी भाग का ज्ञान अनिवार्य हो गया। 

विभिन्न प्रकार के मौसमसूचक गुब्बारों और रॉकेटों, वायुयान की उड़ानों, ध्वनि तथा रेडियो तरंगें, कृत्रिम उपग्रहों, अन्तरिक्ष यानों तथा विभिन्न प्रकार के आकाशीय पिण्डों के निरीक्षण व अध्ययन से इस कार्य में बड़ी सहायता मिली।

अन्तर्राष्ट्रीय भू-भौतिक वर्ष (1957-62) के अन्तर्गत भी वायुमण्डल के विषय में महत्त्वपूर्ण शोधकार्य किये गये तथा अनेक नये तथ्य प्रकाश में आये। तिसरॉ द बोर, सर नैपियर शॉ, पिकर्डो, कैडले, कैनेली, हैवीसाइड तथा फेरेल आदि अनेक अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने वायुमण्डल के रहस्योद्घाटन जैसे कठिन कार्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिये हैं।

अब तक प्राप्त ज्ञान के आधार पर अन्तरिक्ष वैज्ञानिकों ने वायुमण्डल को अनेक समानान्तर परतों या स्तरों में विभाजित किया है। इन परतों के आधार पर वायुमण्डल के विभाजन के सम्बन्ध में सामान्य तथा नवीन विचारधारा का संक्षिप्त वर्णन को देख लेते हैं।

वायुमण्डल की संरचना सम्बन्धी सामान्य विचारधारा

इस विचारधारा अनुसार वायुमण्डल को पाँच प्रमुख परतों में विभाजित किया जाता है। इस विभाजन का आधार वायुमण्डल में तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण है। वायुमण्डल की प्रमुख परतें निम्नलिखित हैं --

1. क्षोभ मण्डल (troposhere)
2. समताप मण्डल (stratosphere)
3. ओजोन मण्डल (ozonosphere)
4. आयन मण्डल (ionosphere)
5. बर्हिमण्डल (exosphere)

1). क्षोभ मण्डल किसे कहते हैं (Troposphere)

यह वायुमण्डल की सबसे निचली और सघन परत है जिसमें वायुमण्डल के सम्पूर्ण भार का 75 प्रतिशत पाया जाना है। "ट्रांपोरेफीयर" शब्द तिसराँ द बोर नामक अन्तरिक्ष वैज्ञानिक की देन है। ट्रोपोज (tropos) ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है "मिश्रण" अथवा "विक्षोभ"। इस प्रकार "ट्रोपोस्फीयर" का अर्थ हुआ "मिश्रण प्रदेश" (region mising) धरातल से इस परत को औसत ऊँचाई लगभग 14 कि० मी० मानी जाती है। यह परत भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर पतली होती गयी है। भूमध्य रेखा पर इसकी ऊँचाई 18 कि० मी० तथा ध्रुवों पर 8.10 कि० मी० होती है। 

जलवायु विज्ञान की दृष्टि से इस परत का विशेष महत्त्व है क्योंकि सभी मौसमी घटनाएँ, इसी के भीतर सीमित होती है। ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान में गिरावट इस स्तर की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें ताप ह्रास दर 6.50 सेल्सियस प्रति किलोमीटर होती है तथा इसे सामान्य ताप ह्रास दर (normal lapse rate) कहते हैं।

2). समताप मण्डल किसे कहते हैं (Stratosphere)

वायुमण्डल के इस स्तर का प्रारम्भ ट्रोपोपाज से होता है। धरातल से इसकी औसत ऊँचाई लगभग 30 कि० मी० मानी जाती है। इस स्तर की खोज तथा इसके नामकरण का श्रेय भी तिसराँ द बोरको है। स्ट्रेटोस्फीयर का अर्थ होता है "स्तरण मण्डल" यह मण्डल वस्तुत: अनेक स्थायी परतों में विभक्त होता है। इस स्तर में ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान का नीचे गिरना समाप्त हो जाता है। समताप मण्डल के निचले भाग में विभिन्न ऊँचइयों पर समान तापमान पाया जाता है तथा समताप रेखाएँ समानान्तर न होकर लम्बवत् होती है। इसी विशेषता के कारण समताप मण्डल कहा जाता है। इस स्तर के ऊपरी भाग में ऊँचाई के साथ तापमान में थोड़ी वृद्धि भी सम्भव है। यह मण्डल जल-वाष्प एवं धूल कणों से लगभग रहित होता है जिससे इसमें मेघ नहीं बनते। कभी-कभी कुछ विशेष प्रकार के मेघों की उत्पत्ति होती है जिन्हें मुक्ताभ मेघ (mother of pearl cloud) कहते हैं।

3). ओजोन मण्डल किसे कहते हैं (Ozonosphere)

स्टैटोपाज के ऊपर धरातल से 30 कि० मी० से 60 कि० मी० के मध्य वायुमण्डल में ऐसा स्तर पाया जाता है जिसमें ओजोन गैस की अधिकता रहती है। इसी से इसका नाम ओजोन मण्डल पड़ा। कई वैज्ञानिक इस स्तर को समताप मण्डल का ही ऊपरी भाग मानते हैं। अन्य गैसों की अपेक्षा ओजोन और विकिरण का अधिक भाग सोखती है। इसकी सर्वप्रमुख विशेषता यह है कि सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (ultraviolate rays) का अधिकांश यह अवशोषण कर लेती है। वस्तुत: यह स्तर पराबैंगनी किरणों के छानने का कार्य करता। इसीलिए इस स्तर पर तापमान सदैव ऊँचा बना रहता है।

वैज्ञानिकों के मतानुसार यदि ओजोन मण्डल न रहता तो अत्यधिक प्रचण्ड एवं प्रखर पराबैंगनी किरणें धरातल पर पहुँचकर उसे झुलस देती तथा भीषण गर्मी के कारण पृथ्वी पर रहना कठिन हो जाता। इन पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी अन्धे हो जाते। इस स्तर में तापमान ऊँचाई के साथ 5° सेल्यिस प्रति किलोमीटर की दर से ऊपर उठता है और 60 कि० मी० तक तापमान से अधिक होता है। धरातल पर जब कभी बड़े भयंकर विस्फोट किये जाते हैं तो वायुमण्डल में "ध्वनि एवं नीरवता के वलय" उत्पन्न हो जाते हैं। इसकी उत्पत्ति का कारण ओजोन मण्डल का ऊँचा तापमान बताया गया है।

इस ऊष्ण स्तर को कभी-कभी मेसोस्फीयर भी कहा जाता है। रासायनिक प्रक्रियाओं की प्रधानता की दृष्टि से कुछ वैज्ञानिक इसे केमोस्फीयर कहना अधिक पसन्द करते हैं। मेसोस्फीयर की बाह्य सीमा को मेसोपाज कहा जाता है।

4). आयन मण्डल किसे कहते हैं (Ionosphere)

आयन मण्डल ओजोन मण्डल के ऊपर स्थित है धरातल से लगभग 60 कि० मी० की ऊँचाई पर इस स्तर का प्रारम्भ होता है। इसकी ऊपरी सीमा कुछ वैज्ञानिक 500 कि० मी० तथा कुछ हजारों किलोमीटर की ऊंचाई पर मानते हैं। वायुमण्डल के इस स्तर के सम्बन्ध में निरन्तर अधिकाधिक जानकारी प्राप्त हो रही है। इस स्तर के अस्तित्व का आभास सर्वप्रथम रेडियो तरंगों द्वारा मिला। इसके पश्चात् ध्रुवीय ज्योति (aurora), ध्वनि तरंगों तथा राकेटों आदि के द्वारा इसके सम्बन्ध में और अधिक जानकारी प्राप्त की गयी।

ओजोन मण्डल के समाप्त होते ही तापमान पुनः ऊपर से नीचे की ओर लगता है और 80 कि० मी० की ऊँचाई पर घटकर - 380 सेल्सियस हो जाता है। इसके ऊपर एक बार फिर तापमान ऊँचाई के साथ बढ़ने लगता है और 95 कि० मी० की ऊँचाई पर 10° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। तापक्रम ऊपर की ओर बढ़ता ही जाता है और ऐसा अनुमान है कि 250 कि० मी० की ऊँचाई पर तापमान बढ़कर लगभग 700° सेल्सियस हो जाता है।

5). बर्हिमण्डल किसे कहते हैं (Exoshphere)

वायुमण्डल की इस सबसे ऊपरी परत का विशेष अध्ययन Lyman Spitzer ने किया है। इसकी ऊँचाई 500 से 1000 कि० मी० तक मानी जाती है। इतनी अधिक ऊँचाई पर वायुमण्डल नीहारिका के रूप में हो जाती है। यहाँ की वायु में हाइड्रोजन तथा हेलियम गैसों की प्रधानता रहती है। वायुमण्डल की बाह्य सीमा पर तापमान लगभग 5568 सेल्सियस तक पहुँच जाता है, किन्तु यह तापमान धरातलीय तापमान से सर्वथा भिन्न होता है। यदि अन्तरिक्ष यात्री इतने अधिक तापमान में अपना हाथ यान से बाहर निकाले, तो शायद उसे गरम भी मालूम नहीं होगा।


इस आर्टिकल में वायुमंडल किसे कहते हैं, वायुमंडल क्या है, वायुमंडल की संरचना, वायुमंडल में कौन से गैस पाये जाते है, इन सभी सवालो के उत्तर विस्तार से जाना। हमे उमीद है की, इस आर्टिकल में हमने वायुमंडल के बारें में जोभी जानकारी दी उससे आपको वायुमंडल किसे कहते हैं अच्छे से समझ में आ गया होगा। यदि आपके मन में कोई सवाल हो तो आप हमें नीचे कमेंट में पुछ सकते हैं। और इस आर्टिकल को आप अपने दोस्तो के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरुर करे।

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