सजीव किसे कहते हैं? परिभाषा, लक्षण और सजीव निर्जीव मे अंतर | Sajiv Kise Kahate Hain

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इस लेख में हम सजीव एवं निर्जीव किसे कहते है इसके बारे में एकदम विस्तारपूर्वक से समझेंगे। यह लेख उन सभी विद्यार्थियों के काफी उपयोगी है, जो कक्षा 9 से 12 तक के क्लास में पढ़ रहे है। ऐसा इसलिए क्योकी इन कक्षाओं के छात्रों के जीव विज्ञान की परीक्षा में सजीव एवं निर्जीव से सम्बंधित बहुत से प्रश्न पुछे जाते है जैसे की- सजीव किसे कहते हैं उदाहरण सहित, निर्जीव किसे कहते हैं उदाहरण सहित, सजीव की परिभाषा क्या है, सजीव के उदाहरण, सजीव के लक्षण, सजीव वस्तु क्या है, सजीव कैसे बने होते हैं, सजीव और निर्जीव क्या होता है और सजीव और निर्जीव चीजों में क्या अंतर है आदि।

इस प्रकार के सजीव एवं निर्जीव से जुड़े प्रश्न कक्षा 9 से 12 तक के जीव विज्ञान की परीक्षा में पुछे जाते है। ऐसे में यदि आप भी उन विद्यार्थियों में से है, जो इस समय कक्षा 9 से 12 तक के किसी क्लास में पढ़ रहा है। तो आप इस लेख को पूरे ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े, क्योकी इससे आपको परीक्षा में काफी सहायता मिल सकती है। तो चलिये अब sajiv kise kahate hain एकदम विस्तार से समझे।


सजीव किसे कहते हैं (Sajiv Kise Kahate Hain)

संसार में पाये जाने वाले पदार्थों को मुख्यतः दो समूहों में बाँट लेते हैं सजीव तथा निर्जीव (living and non -living)। सामान्यतया हम देखते हैं कि सजीवों में जीवन होता है। जीवद्रव्य की परिवर्तनशील दशा को जीवन कहते हैं। मृत्यु हो जाने पर अर्थात जीवद्रव्य के परिवर्तनशील स्वरूप के समाप्त हो जाने के पश्चात जीवधारी की मृत्यु हो जाती है।

इस प्रकार जो पदार्थ कभी जीवित था, उसे हम मृत (dead) कहने लगते हैं। इसमें सजीवों की भाँति क्रियायें नहीं होती है। जैविक लक्षणों के आधार पर सजीव और निर्जीव वस्तुओं को सुगमता से पहचान सकते हैं। जीवन को इस रूप में परिभाषित कर सकते हैं --
जीवन जीवधारियों की वह शक्ति है जिसके द्वारा वे स्वयं को बनाये रखते हैं तथा अपने ही समान सन्तानें उत्पन्न करते हैं। जीवन के लक्षण ही जीवधारियों की विशेषता है।

सभी पदार्थों को हम तीन समूहों में बाँट सकते हैं

(i). सजीव
(ii). निर्जीव
(iii). मृत

(i). सजीव (Living) --- मनुष्य , बन्दर , गाय , घोड़ा , हिरन , बिल्ली , कुत्ता , पौधे आदि सजीव हैं। इनमें विभिन्न जैविक क्रियायें , जैसे पोषण , उपापचय , श्वसन , उत्सर्जन , गति , वृद्धि , जनन आदि क्रियायें होती हैं। पौधे एक स्थान पर स्थिर रहकर गति करते हैं।

(ii). निर्जीव (non-living) --- पत्थर , बाल्टी , जग , मोमबंती , कार , जहाज , स्कूटर , पंखा आदि निर्जीव होते है। इनमें जैविक क्रियायें नही होती। स्वचालित वाहनो मे बाह्य शक्ती स्रोत के कारण गती होती है।फिटकरी , तूतिया आदि के क्रिस्टल संतृप्त घोल में रखने पर आकार में बड़े हो जाते है । निर्जीवों में होने वाले इस बढ़ोतरी को बाह्य वृद्धि अथवा अभिवृद्धि कहते है ।

(iii) मृत (Dead) --- प्रत्येक जीवधारी एक निश्चित जीवन अवधि के पश्चात मृत हो जाता है। इसके शरीर का विघटन हो जाता है। शरीर में पाये जाने वाले जटिल पदार्थ सरल पदार्थों में टूटकर वातावरण मे मिल जाते हैं जिससे इनका पुनः उपयोग हो सके। मृत शरीर के कुछ अवशेष आसानी से विघटित नहीं होते और मनुष्य के द्वारा विभिन्न उपयोगो में लाये जाते हैं , जैसे वृक्षों से लकड़ी , कॉर्क प्राप्त होती है। हाथी से दाँत तथा पशुओं की खाल से चमड़ा आदि प्राप्त होता है।

सजीवों के लक्षण (Sajiv Ke Lakshan)

जीव के शरीर में सभी जटिल क्रियायें सदा साथ-साथ होती रहती हैं। इन क्रियाओं में जहाँ एक ओर रचनात्मक (constructive) क्रियायें होती हैं, जैसे -- पोषण , वहीं दूसरी ओर विघटनकारी (destructive) क्रियायें भी होती हैं , जैसे श्वसन।

रचनात्मक क्रियाओं के कारण शरीर के आयतन एवं शुष्क भार में वृद्धि होती है। इन क्रियाओं को उपचय (anabolism) भी कहते हैं। विनाशात्मक क्रियाओं के कारण शरीर के शुष्क भार में कमी आती है। जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा श्वसन के फलस्वरूप प्राप्त होती है इन क्रियाओं को अपचय (catabolism) कहते है। उपचय तथा अपचय क्रियाओं में सन्तुलन होना आवश्यक है। शरीर की मरम्मत तथा वृद्धि के लिए अपचय की तुलना में उपचय क्रियाओं का अधिक मात्रा में होना आवश्यक है।

सजीवों में निम्न जीवन के लक्षण पाये जाते है

क्रम संख्या सजीवों में जीवन के लक्षण
(1). निश्चित आकृति तथा आकार (Definite shape and size)
(2). कोशिकीय संरचना (Cellular structure)
(3). शारीरिक संगठन (Body organization)
(4). पोषण (Nutrition)
(5). प्रचलन तथा गति (Locomotion and movement)
(6). श्वसन (Respiration)
(7). उत्सर्जन (Excretion)
(8). अनुकूलनता (Adaptability)
(9). वृद्धि (Growth)
(10). जनन (Reproduction)
(11). उत्तेजनशीलता (Irritability)
(12). जीवन चक्र (Life-cycle)

1). निश्चित आकृति तथा आकार --- सभी पौधों एवं जन्तुओं की एक निश्चित आकृति एवं आकार होता है। जैसे -- गाय , भैस , बकरी , मनुष्य आदि को उनकी विशेष आकृति द्वारा पहचाना जा सकता है। इसी प्रकार आम , नींबू , खजूर आदि के पौधों की भी अपनी एक निश्चित आकृति होती है। निर्जीव पदार्थों ; जैसे पत्थर और मिट्टी के ढेर का आकार और आकृति अनिश्चित होती है।

2). कोशिकीय संरचना --- सजीवों की शारीरिक संरचना कोशिकाओं से होती है। कोशिका शरीर की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई है। कोशिका में जीवद्रव्य पाया जाता है। कोशिका की सभी जैविक क्रियायें जीवद्रव्य के द्वारा सम्पन्न होती हैं। सभी जीवधारियों (जन्तु एवं पौधे) की कोशिकाओं की मूल संरचना समान होती है। जीवाणु तथा नीले-हरे शैवालों की कोशिकायें पूर्वकेन्द्रकीय होती हैं। इनमें संगठित केन्द्रक नहीं पाया जाता है। विषाणु कोशिका से बने नहीं होते हैं, इनका निर्माण प्रोटीन तथा न्यूक्लीक अम्ल से होता है। विषाणु निर्जीव तथा सजीव के मध्य की कड़ी कहलाते हैं।

3). शारीरिक संगठन --- जीवधारियों के शरीर का संगठन कोशिका , ऊतक , अंग तथा अंगतन्त्रों से होता है। अंगतन्त्रों द्वारा शरीर की जैविक क्रियायें सम्पन्न होती हैं , जैसे पोषण श्वसन , उत्सर्जन , जनन आदि।
कोशिका → ऊतक → ऊतक तन्त्र → अंग → अंगतन्त्र → शरीर संगठन 
निर्जीवों का निर्माण छोटे-छोटे कणों (particles) से होता है। मानव निर्जीव वस्तुओं से विभिन्न प्रकार के उपयोग उपकरण , वाहन आदि बना लेता है। इसके लिए निर्जीव वस्तुओं को व्यवस्थित करना होता है।

4). पोषण --- जैविक क्रियाओं को सुचारु रूप से चलाने के लिए जीवधारियों को आवश्यक ऊर्जा भोजन के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। अतः जीवधारियों को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है । जन्तुओं द्वारा भोजन ग्रहण करना , पाचन , अवशोषण , स्वांगीकरण तथा बहिःक्षेपण पोषण के अन्तर्गत आते हैं। पौधे प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं।

प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में पौधे CO² तथा जल से प्रकाश तथा पर्णहरिम की उपस्थिति में कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। कार्बनिक पदार्थों में प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित हो जाती है। हरे पौधों  को उत्पादक कहते हैं। जन्तु अपने भोजन के लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधो पर निर्भर रहते है। जन्तुओं को उपभोक्ता कहते है।

5). प्रचलन तथा गति --- जन्तुओं में प्रचलन तथा पौधों में गति होती है। यह आन्तरिक कारणों से स्वतः होती है। जन्तु भोजन एवं सुरक्षा के कारणों से स्थान परिवर्तन करते हैं। इस क्रिया को प्रचलन कहते हैं। पौधे अपना भोजन स्वतः बना लेते हैं , अतः पौधे स्थान परिवर्तन नहीं करते हैं। पौधे स्थिर रहकर उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया को प्रदर्शित करते हैं। सामान्य स्थिति में होने वाले परिवर्तन को गति (movement) कहते हैं।

जैसे तना प्रकाश की ओर तथा जड़ भूमि की ओर मुड़ जाती है। छुई-मुई का पौधा छूने से मुरझा जाता है। सूर्यमुखी के पुष्प सूर्य की स्थिति के अनुसार अपनी स्थिति को बदलते रहते हैं। एककोशिकीय शैवाल क्लेमाइडोमोनास (Chlamydomonas), बहुकोशिकीय शैवाल वालबॉक्स (Volvox), अनेक पौधों के युग्मक (gametes), चल बीजाणु (zoospores), आदि सीलिया या फ्लैजिला की सहायता से स्थान परिवर्तन करते हैं ड्रोसेरा (Drosera) कीटभक्षी के स्पर्शक कीट के सम्पर्क में आने पर बन्द हो जाते हैं।

6). श्वसन --- जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा श्वसन से प्राप्त होती है। इसमें कार्बनिक पदार्थों का जैव- रासायनिक ऑक्सीकरण होता है। श्वसन में जीवधारी O2 , ग्रहण करते हैं और CO2 , मुक्त करते हैं।

C6 H12 O6 + 60₂ → 6CO2 + 6H2O + उर्जा

कार्बनिक पदार्थों (ग्लूकोस) से मुक्त रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में बदलकर ATP में संचित हो जाती है। ATP से जैविक कार्यों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। कार्य सम्पन्न होने के पश्चात यह ऊर्जा ताप के रूप में बदलकर वातावरण में चली जाती है। श्वसन एक अपचय क्रिया (catabolic activity) या विनाशात्मक (destructive) क्रिया है। यह सामान्य ताप पर एन्जाइम्स की सहायता से होती है। इसमें ऊर्जा विभिन्न चरणों में मुक्त होती है। इसके विपरीत दहन क्रिया उच्च ताप पर होती है। इसमें ऊर्जा एक साथ मुक्त होने के कारण कुछ ऊर्जा प्रकाश में बदल जाती है। निर्जीव स्वचालित वाहनों, जैसे स्कूटर, कार, हवाई जहाज, रेलगाड़ी आदि की यान्त्रिक गति बाह्य ऊर्जा के कारण होती है।

7). उत्सर्जन --- शरीर की उपापचय क्रियाओं के कारण अनेक ऐसे पदार्थों का निर्माण होता है जो शरीर के लिए बेकार ही नहीं बल्कि हानिकारक भी होते हैं, जैसे CO2, अमोनिया , यूरिया , यूरिक अम्ल आदि। उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बने नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन को उत्सर्जन कहते हैं। पौधे भी विभिन्न पदार्थ उत्सर्जित करते हैं , जैसे गोंद , रेजिन , टेनिन आदि ! लेकिन ये पौधों के विभिन्न भागों में ही संचित रहते हैं। निर्जीव पदार्थों में उत्सर्जन क्रिया नहीं होती है।

8). अनुकूलनता --- जीवधारियों में अपने को वातावरण के अनुकूल बनाने की क्षमता होती है ; जैसे -- मछलियों के शरीर की संरचना जलीय जीवन के लिए और पक्षियों की संरचना वायवीय जीवन के लिए अनुकूलित होती है। शीत प्रदेशों में रहने वाले जन्तुओं के शरीर पर घने बाल तथा त्वचा के नीचे चर्बी की मोटी पर्त होती है। मरुस्थलीय पौधे शुष्क वातावरण में रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। इनकी पत्तियाँ सामान्यतया काँटों में बदल जाती हैं।

9). वृद्धि --- सजीवों में वृद्धि आन्तरिक कारणों से होती है। यह कोशिका विभाजन के फलस्वरूप होती है। इसके फलस्वरूप जीवधारी का आकार एवं भार बढ़ जाता है। निर्जीवों में वृद्धि “बाह्य अभिवृद्धि" के फलस्वरूप होती है ; जैसे फिटकरी के क्रिस्टल को फिटकरी के संतृप्त घोल में लटका देने से उसका आकार बढ़ जाता है। इसी प्रकार बालू के टीले बड़े हो जाते हैं। 

सजीवों में वृद्धि शरीर के विभिन्न भागों में एक निश्चित अनुपात में होती है जबकि निर्जीवों में बाह्य वृद्धि समान अनुपात में होती है। प्रत्येक प्राणि जन्म के समय बहुत छोटा होता है, पोषण के फलस्वरूप उसका आकार क्रमशः बढ़ता रहता है। निश्चित आकार तथा आकृति प्राप्त कर लेने के पश्चात वृद्धि लगभग रुक जाती है। पौधों में सामान्यतया जीवन पर्यन्त वृद्धि होती रहती है।

10). जनन --- जीवधारियों में अपने जैसी सन्तान उत्पन्न कर अपनी वंश-परम्परा को निरन्तर बनाये रखने की क्षमता होती है। बच्चों में अपने माता - पिता से मिलते - जुलते ही लक्षण पाये जाते हैं। कुत्ते के पिल्ले कुत्ते ही होते हैं। बहुधा जन्म के समय शिशु प्रौढ़ से भिन्न होता है किन्तु कालान्तर में यह बढ़कर प्रौढ़ का रूप धारण कर लेता है।

11). उत्तेजनशीलता --- सजीव वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उद्दीपनों को ग्रहण कर अनुक्रिया प्रदर्शित करते हैं। जैसे -- छुई-मुई का पौधा छूने पर मुरझा जाता है। गर्म वस्तु पर हाथ-पैर पड़ने पर हाथ-पैर हट जाता है। अधिक ठण्ड होने पर चिड़िया अपने परों को फुला लेती हैं। इनमें हवा भर जाने से शरीर से ताप की हानि नहीं हो पाती है। कीटभक्षी पौधों के स्पर्शक कीट के सम्पर्क में आने पर बन्द हो जाते हैं , इससे कीट इनके मध्य फँस जाता है। निर्जीवों में उत्तेजनशीलता का गुण नहीं पाया जाता है।

12). जीवन-चक्र --- जीवधारियों में एक निश्चित जीवन-चक्र होता है। इनका जन्म होता है, ये वृद्धि करते हैं और वयस्क होकर जनन क्रिया में भाग लेते हैं। वृद्धावस्था के बाद इनकी मृत्यु हो जाती है। जीवों की एक निश्चित जीवन अवधि होती है। निर्जीवों मे निश्चित जीवन-चक्र नहीं पाया जाता है, जैसे -- स्कूटर , कार आदि के सही रख-रखाव से इनकी कार्य अवधि बढ़ाई जा सकती है।

सजीव और निर्जीव चीजों में क्या अंतर है

लक्षण सजीव निर्जीव
आकृति सजीवों की आकृति निश्चित होती है जिससे वह पहचाने जाते हैं निर्जीव वस्तुओं की कोई निश्चित आकृति नहीं होती है, एक ही वस्तु की कई आकृतियाँ हो सकती हैं।
संरचना का कोशिकीय आधार सजीवों का शरीर एक अथवा अनेक कोशिकाओं का बना होता है। कोशिका मे जीव द्रव्य पाया जाता है। इनकी संरचना कणों से अथवा विभिन्न भागों के जुड़ने से होती है। परन्तु इनमें कोशिकीय संरचना नहीं पायी जाती है।
शारीरिक संगठन जीवों में शारीरिक संगठन कोशिका, ऊतक, अंग, अंगतन्त्रों से होता है एककोशिकीय जीवों में भी बहुधा अलग-अलग कार्यों के लिए अंगक होते हैं। इनके आकार का गठन इनके तत्वों से होता है। मिट्टी, रेत के कणों से ढेला, पत्थर बनते हैं। विभिन्न धातुओं के बने भागों से स्कूटर, रेल, कार, जहाज की रचना होती है।
पोषण प्रत्येक जीवधारी को अपनी शारीरिक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। भोजन के पाचन, अवशोषण एवं स्वांगीकरण को पोषण कहते हैं। इनको भोजन की आवश्यकता नहीं होती है।
वृद्धि सजीव में आन्तरिक वृद्धि होती है। इनमें बाह्य वृद्धि होती है।
श्वसन सजीवों में श्वसन क्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है। इनमें श्वसन क्रिया नहीं होती है।
उपापचय इनमें रचनात्मक तथा विघटनात्मक क्रियायें होती हैं। इनमें ऐसी क्रियायें नहीं होती हैं।
उत्सर्जन सजीवों के शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न बेकार एवं हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। इनमें यह क्रिया नहीं होती।
गति सजीवों में आन्तरिक कारणों से गति होती है। निर्जीवों में गति नहीं होती है और यदि होती है तो बाह्य शक्तियों के कारण होती है।
उत्तेजन इनमें बाह्य उद्दीपनों के प्रति प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है। इनमें इसका अभाव होता है।
प्रजनन सजीव अपने जैसे जीवों को उत्पन्न करते हैं। इनमें ऐसी क्षमता नहीं होती है।
जीवन-चक्र इनमें निश्चित जीवन-चक्र होता है। इनमें ऐसा नहीं होता है।

FAQ:- सजीव एवं निर्जीव से सम्बंधित कुछ प्रश्न

प्रश्न -- सजीव किसे कहते हैं? उदारहण सहित
उत्तर -- जिनमे विभिन्न जैविक क्रियायें, जैसे पोषण, उपापचय, श्वसन, उत्सर्जन, गति, वृद्धि, जनन आदि क्रियायें होती हैं, वे सजीव कहलाती है जैसे --  मनुष्य, बन्दर, गाय, घोड़ा।

प्रश्न -- निर्जीव किसे कहते हैं? उदारहण सहित
उत्तर -- जिनमे जैविक क्रियायें नही होती। स्वचालित वाहनो मे बाह्य शक्ती स्रोत के कारण गती होती है। वह निर्जीव कहलाती है जैसे -- जग, मोमबंती, कार, जहाज।

प्रश्न -- सजीव के 10 लक्षण क्या है?
उत्तर -- सजीव के 10 लक्षण निम्न है-
1). निश्चित आकृति तथा आकार
2). कोशिकीय संरचना
3). शारीरिक संगठन
4). पोषण
5). प्रचलन तथा गति
6). श्वसन
7). उत्सर्जन
8). अनुकूलनता
9). वृद्धि
10). जनन

प्रश्न -- सजीव शब्द का विलोम शब्द क्या है?
उत्तर -- सजीव शब्द का विलोम शब्द निर्जीव होता है।

निष्कर्ष

यहा पर इस लेख में हमने सजीव और निर्जीव क्या होता है इसके बारे में एकदम विस्तारपूर्वक से समझा। जैसे की हमने आपको ऊपर ही बताया की यह लेख कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों के लिये काफी उपयोगी है, क्योकी 9 से 12 तक कक्षाओं के छात्रों के जीव विज्ञान की परीक्षा में सजीव एवं निर्जीव से सम्बंधित प्रश्न जरुर पुछे जाते है। 

आपको बता दे की यह लेख केवल कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों के लिये ही नही उपयोगी है, बल्की यह लेख उन सभी विद्यार्थियों के लिये भी काफी महत्वपूर्ण एवं उयोगी है, जो किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है। ऐसा इसलिए क्योकी प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सजीव एवं निर्जीव से जुड़े बहुत से प्रश्न पुछे जाते है। ऐसे में यदि आप भी उन्हीं छात्रों मे से है, जो इस समय किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा है, तो आप इस लेख में दिये गए सजीव एवं निर्जीव को बिल्कुल अच्छे से पढ़े।

हम आशा करते है की आपको यह लेख जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की इस लेख की सहायता से सजीव किसे कहते हैं उदाहरण सहित एवं निर्जीव किसे कहते हैं उदाहरण सहित आप बिल्कुल अच्छे से समझ गए होंगे। यदि आपके मन में इस लेख से सम्बंधित कोई सवाल या सुझाव है, तो आप नीचे कमेंट कर सकते हैं। और साथ ही इस sajiv kise kahate hain को आप अपने सभी मित्रों के साथ शेयर भी जरुर करे।

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